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उनगालाई काशीयिल वरावेरकिरोम (काशी में आपका स्वागत है): मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के एंफीथिएटर परिसर में ‘काशी तमिल संगमम्’ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने क्लासिकल तमिल साहित्य तिरुक्कुरल का 13 भाषाओं में अनुवाद का विमोचन भी किया।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री जी ने विश्व के सबसे प्राचीन जीवंत शहर एवं महादेव की नगरी काशी में सभी का स्वागत करते हुए कहा कि हमारे देश में संगमों की बड़ी महिमा और महत्व रहा है। नदियों और धाराओं के संगम से लेकर विचारों-विचारधाराओं, ज्ञान-विज्ञान और समाजों-संस्कृतियों के हर संगम को हमने सेलिब्रेट किया है। यह सेलिब्रेशन वास्तव में भारत की विविधताओं और विशेषताओं का सेलिब्रेशन है। इसलिए काशी तमिल संगमम् अपने आप में विशेष है, अद्वितीय है। आज हमारे सामने एक ओर पूरे भारत को अपने आप में समेटे हमारी सांस्कृतिक राजधानी काशी है तो, वहीं दूसरी ओर, भारत की प्राचीनता और गौरव का केंद्र हमारा तमिलनाडु और तमिल संस्कृति है। यह संगम भी गंगा-यमुना के संगम जितना ही पवित्र है। यह गंगा-यमुना जितनी ही अनंत संभावनाओं और सामर्थ्य को समेटे हुये है।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि हमारे मनीषियों ने कहा है कि एक ही चेतना, अलग-अलग रूपों में प्रकट होती है। काशी और तमिलनाडु के संदर्भ में इसे हम साक्षात देख सकते हैं। काशी और तमिलनाडु, दोनों ही संस्कृति और सभ्यता के पुराने केन्द्र हैं। दोनों क्षेत्र, संस्कृत और तमिल जैसी विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं के केंद्र रहे हैं। काशी और तमिलनाडु दोनों शिवमय हैं, दोनों शक्तिमय हैं। एक स्वयं में काशी है, तो तमिलनाडु में दक्षिण काशी है। ‘काशी-कांची’ के रूप में दोनों की सप्तपुरियों में अपनी महत्ता है।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि काशी और तमिलनाडु दोनों संगीत, साहित्य और कला के अद्भुत स्रोत हैं। काशी का तबला, तमिलनाडु का तन्नुमाई के साथ काशी में बनारसी साड़ी और तमिलनाडु का कांजीवरम सिल्क पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। काशी भक्त तुलसी की धरती है तो तमिलनाडु संत तिरुवल्लवर की भक्ति-भूमि है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काशी और तमिलनाडु से एक जैसी ऊर्जा महसूस होती है। आज भी तमिल विवाह परम्परा में काशी यात्रा का ज़िक्र होता है। यानी, तमिल युवाओं के जीवन की नई यात्रा से काशी यात्रा को जोड़ा जाता है। यह है तमिल दिलों में काशी के लिए अविनाशी प्रेम, जो न अतीत में कभी मिटा, न भविष्य में कभी मिटेगा। यही ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की वो परम्परा है, जिसे हमारे पूर्वजों ने जिया था, और आज ये काशी तमिल संगमम फिर से उसके गौरव को आगे बढ़ा रहा है।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि काशी के निर्माण में, काशी के विकास में भी तमिलनाडु ने अभूतपूर्व योगदान दिया है। डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन, श्री राजेश्वर शास्त्री, श्री पट्टाभिराम शास्त्री, श्री सुब्रमण्यम भारती इत्यादि महान विभूतियों के कृतित्वों एवं अनेक परम्पराओं और आस्थाओं ने काशी तथा तमिलनाडु को राष्ट्रीय एकता के सूत्र से जोड़कर रखा है। इसी क्रम में बी0एच0यू0 ने महाकवि सुब्रमण्यम भारती के नाम से पीठ की स्थापना करके गौरव को बढ़ाया है।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आज़ादी के अमृतकाल में काशी तमिल संगमम् का आयोजन हो रहा है। अमृतकाल में हमारे संकल्प पूरे देश की एकता और एकजुट प्रयासों से पूरे होंगे। भारत वो राष्ट्र है, जिसने हजारों वर्षों से एक दूसरे के मन को जानते हुये और सम्मान करते हुये स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है। हमारे देश में 12 ज्योतिर्लिंगों के स्मरण की परम्परा है। हम देश की आध्यात्मिक एकता को याद करके अपना दिन शुरू करते हैं। आज़ादी के बाद हजारों वर्षों की इस परम्परा और विरासत को मजबूत करना था। इसे देश का एकता सूत्र बनाना था। लेकिन, दुर्भाग्य से, इसके लिए बहुत प्रयास नहीं किए गए। काशी-तमिल संगमम् आज इस संकल्प के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म बनेगा। यह संगमम् हमें हमारे कर्तव्यों का बोध कराएगा, और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा प्रदान करेगा।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि हमारा देश हिमालय से हिन्द महासागर तक सभी विविधताओं और विशिष्टताओं को समेटे हुये है। देश की इन जड़ों को अनुभव करना है, तो हम देख सकते हैं कि उत्तर और दक्षिण हजारों कि0मी0 दूर होते हुये भी कितने करीब हैं। संगम काल में तमिल साहित्य में हजारों मील दूर बहती गंगा का गौरव गान किया गया। तमिल ग्रंथ-कलितोगै में वाराणसी के लोगों की प्रशंसा की गई है। हमारे पूर्वजों ने तिरुप्पुगल के जरिए भगवान मुरुगा और काशी की महिमा एक साथ गाई थी, दक्षिण का काशी कहे जाने वाले तेनकासी की स्थापना की थी। स्वामी कुमरगुरुपर, मनोन्मणियम सुंदरनार जैसे हमारे पूर्वजों ने भौतिक दूरियों, भाषा-भेद को तोड़ने और अपनत्व बढ़ाने का कार्य किया था। रामानुजाचार्य और शंकराचार्य से लेकर राजाजी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक, दक्षिण के विद्वानों के भारतीय दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आज भारत ने अपनी ‘विरासत पर गर्व’ का पंच-प्रण सामने रखा है। दुनिया में किसी भी देश के पास कोई प्राचीन विरासत होती है, तो वो देश उस पर गर्व करता है। उसे गर्व से दुनिया के सामने प्रमोट करता है। हमारे पास भी दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है। आज तक यह भाषा उतनी ही लोकप्रिय है, उतनी ही जीवन्त है। दुनिया में लोगों को पता चलता है कि विश्व की सबसे पुरानी भाषा भारत में है, तो उन्हें आश्चर्य होता है। हम सभी 130 करोड़ देशवासियों की जिम्मेदारी है कि हमें तमिल की इस विरासत को बचाना भी है और उसे समृद्ध भी करना है। अगर हम तमिल को भुलाएंगे तो देश का नुकसान होगा, और तमिल को बंधनों में बांधकर रखेंगे तो भी नुकसान है। हम सभी भाषा-भेद को दूर रखें और भावनात्मक एकता कायम करें।
प्रधानमंत्री जी ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि तमिलनाडु और दक्षिण के दूसरे राज्यों में भी इस तरह के आयोजन हों। देश के दूसरे हिस्सों से लोग वहाँ जाएँ और भारत को जियें तथा भारत को जानें। काशी तमिल संगमम् से निकले अमृत को युवा शोध एवं अनुसंधान के जरिए आगे बढ़ाएँ। यह बीज आगे राष्ट्रीय एकता का वटवृक्ष बने। राष्ट्र हित ही हमारा हित है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने ‘काशी तमिल संगमम’ कार्यक्रम में सभी अतिथियों और महानुभावों का स्वागत तमिल भाषा में ‘उनगालाई काशीयिल वरावेरकिरोम’ अर्थात काशी में आपका स्वागत है, कहकर किया। मुख्यमंत्री जी ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में तमिल कार्तिक मास की पवित्र अवधि में ‘काशी तमिल संगमम’ का आयोजन किया जा रहा है। इससे दक्षिण का उत्तर से अद्भुत संगम हो रहा है। सहस्त्राब्दियों पुराना सम्बन्ध फिर से नवजीवन पा रहा है। यह आयोजन आजादी के अमृत काल में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना को जीवन्त कर रहा है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि काशी और तमिलनाडु में भारतीय संस्कृति के सभी तत्व समान रूप से संरक्षित हैं। भगवान श्रीराम द्वारा श्री रामेश्वरम धाम में स्थापित शिवलिंग और काशी में विराजमान भगवान आदि विश्वेश्वर पवित्र ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित हैं। यह ज्योतिर्लिंग काशी और तमिलनाडु के सम्बन्धों के केन्द्र बिन्दु हैं। भगवान श्रीराम और भगवान शिव के माध्यम से निर्मित इस सम्बन्ध सेतु को परमपूज्य आदि शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों में पवित्र पीठ की स्थापना कर आगे बढ़ाया। प्रधानमंत्री जी इस महायज्ञ को वर्तमान में गति दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि तमिलनाडु की ‘तेनकाशी’ में भगवान विश्वनाथ का एक प्राचीन मन्दिर है। तेनकाशी का अर्थ है-दक्षिण की काशी। पांड्य वंश के सम्राट परक्किराम पांड्यिम ने काशी से शिवलिंग लाकर तेनकाशी में स्थापित किया था। तमिलनाडु में ‘शिवकाशी’ नामक एक पवित्र स्थान भी है। काशी के धार्मिक महत्व के कारण देश के सभी भागों के लोग सदियों से यहां आते रहे हैं, जिससे गंगा जी के तट पर बसी यह पवित्र नगरी भारत की धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र बनी हुई है। इसी प्रकार तमिलनाडु प्राचीनकाल से ही ज्ञान, कला और संस्कृति का केन्द्र रहा है, जिसे पाण्ड्य, चोल, पल्लव आदि राजाओं ने विस्तार दिया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि तमिल भाषा का साहित्य अत्यन्त प्राचीन और समृद्ध है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के मुख से जो दो भाषाएं निकलीं, उसमें तमिल एवं संस्कृत समान रूप से एक साथ निकलकर अपने समृद्ध साहित्य के लिए जानी जाती हैं। समस्त भारतीय भाषाएं और उनका साहित्य सभी को अपने में समाहित करता है। यह समावेशी सांस्कृतिक प्रेरणा का स्रोत रहा है, जो समाज में सद्भाव और समरसता बनाए हुए है। उन्होंने ‘काशी तमिल संगमम’ आयोजन के प्रति मंगलकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि इस आयोजन से तमिलनाडु के हमारे अतिथिगण काशी सहित उत्तर प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से परिचित होंगे। साथ ही, उत्तर और दक्षिण के संगम से हमारी सांस्कृतिक एकता को भी सुदृढ़ बनाने में अपना योगदान देंगे। इसी क्रम में ‘काशी तमिल संगमम’ में तमिलनाडु से छात्र, शिक्षक, शिल्पकारों, साहित्यकारों सहित अध्यात्म, उद्योग, विरासत, नवाचार, व्यवसाय, देवालय व्यवस्था, ग्रामीण पृष्ठभूमि तथा संस्कृति जगत से जुड़े 12 समूह काशी का भ्रमण करेंगे और विषय-विशेषज्ञों से संवाद करेंगे। साथ ही, प्रयागराज व अयोध्या भी जाएंगे।
कार्यक्रम को केन्द्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री डॉ0 एल0 मुरुगन एवं संगीतकार एवं राज्य सभा सदस्य श्री इलयराजा ने भी सम्बोधित किया। तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत के कलाकारों ने आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी, तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर0एन0 रवि, केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान, प्रदेश के श्रम एवं सेवायोजन मंत्री श्री अनिल राजभर, स्टाम्प तथा न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री रवीन्द्र जायसवाल, आयुष मंत्री श्री दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’, पूर्व केंद्रीय मंत्री पॉन राधाकृष्णन सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण, नौ शैव धर्माचार्य (अधीनम), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति श्री सुधीर जैन, आई0आई0टी0 मद्रास के डायरेक्टर प्रो0 कामाकोट्टि, तमिलनाडु के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के विद्यार्थी, कलाकार, विशिष्टजन व शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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