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जो दूसरे के दुख को अपना दुख समझता है वही सच्चा मित्रः सतीश जगूडी

उत्तराखंड

देहरादून: मानस मन्दिर बकरालवाला मन्दिर प्रगंण में सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा संपन्न हुआ. सात दिनों तक चलें इस भागवत कथा में चार वेद, पुराण, गीता एवं श्रीमद भागवत महापुराणों की व्याख्या, आचार्य सतीश जगूडी के मुखारवृंद से श्रवण कर उपस्थित भक्तगण  गदगद हो गया. सात दिनों तक भगवान श्री कृष्णजी के वात्सल्य प्रेम, असीम प्रेम के अलावा उनके द्वारा किये गये विभिन्न लीलाओं का वर्णन कर वर्तमान समय में समाज में व्याप्त अत्याचार, अनाचार, कटुता, व्यभिचार को दूर कर सुंदर समाज निर्माण के लिए युवाओं को प्रेरित किया. सात दिवसीय इस धार्मिक अनुष्ठान के सातवें एवं अंतिम  दिन आचार्य सतीश जगूडी जी ने भगवान श्री कृष्ण जी के सर्वोपरी लीला श्री रास लीला, मथुरा गमन, दुष्ट कंसराजा के अत्याचार से मुक्ति के लिए कंसबध, कुबजा उद्धार, रुक्मिणी विवाह, शिशुपाल वध एवं सुदामा चरित्र का वर्णन कर लोगों को भक्तिरस में डुबो दिया. सुंदर समाज निर्माण के लिए गीता से कई उपदेश के माध्यम अपने को उस अनुरूप आचरण करने को कहा. जो काम  प्रेम के माध्यम से संभव है वह हिंसा से संभव नहीं हो सकता है. क्षणभंगुर इस जीवन में देश एवं समाज के लिए अच्छे कामों द्वारा अपना छाप छोड़ने को कहा. समाज में कुछ लोग ही अच्छे कर्मों द्वारा सदैव चिर स्मरणीय होता है. इतिहास इसका साक्षी  है.

                श्रीमद् भागवत रसवर्षा के सातवें और अंतिम सोमवार को व्यासगद्दी से सुदामा चरित्र, नवयोगेश्वर संवाद, भक्तिज्ञान, वैराग्य, सत्संग सहित परीक्षित को अंतिम उपदेश और भागवत कथा का सार कथा वाचक आचार्य सतीश जगूडी द्वारा सुनाया गया और कथा में भाग लेने वाले समस्त श्रद्धालुओं के अच्छे भविष्य की कामना की गई, इस मौके पर भारी भीड़ पांडाल में उमड़ पड़ी, और प्रवक्ता आचार्य सतीश जगूडी ने सुदामा चरित्र की कथा सुनाई, प्रवचन में कहा कि सुदामा एक दरिद्र ब्राह्मण थे, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में शिक्षा ली थी, दरिद्रता तो जैसे सुदामा की चिरसंगिनी ही थी, एक टूटी झोपड़ी, दो-चार पात्र और लज्जा ढकने के लिये कुछ मैले और चिथड़े वस्त्र, सुदामा की कुल इतनी ही गृहस्थी थी, दरिद्रता के कारण अपार कष्ट पा रहे हैं, पद्यी के आग्रह को स्वीकार कर कृष्ण दर्शन की लालसा मन में संजोये हुए सुदामा कई दिनों की यात्रा करके द्वारका पहुंचे, द्वारपाल के मुख से सुदामा शब्द सुनते ही भगवान श्रीकृष्ण ने जैसे अपनी सुध-बुध खो दी और वह नंगे पांव ही दौड़ पड़े द्वार की ओर, दोनों बाहें फैलाकर उन्होंने सुदामा को हृदय से लगा लिया, भगवान श्रीकृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए, उन्होंने बचपन के प्रिय सखा को अपने पलंग पर बैठाकर उनका चरण धोए, कृष्ण के नेत्रों की वर्षा से ही मित्र के पैर धुल गये स सुदामा खाली हाथ अपने गांव की और लोट पड़े और मन ही मन सोचने लगे कृष्ण ने बिना कुछ दिए ही मुझे वापस आने दे दिया, सुदामा जब गांव पहुंचा तो देखा झोपड़ी के अस्थान पे विशाल महल है जिसे देख सुदामा चकित हो गए, पाठ वाचक सतीश जगूडी ने बताया की कृष्ण ने बताए बिना तमाम ऐश्वर्य सुदामा के घर भेज दिया। अब सुदामा साधारण ग़रीब ब्राह्मण नहीं रहे। उनके अनजान में ही भगवान ने उन्हें अतुल ऐश्वर्य का स्वामी बना दिया। किंतु सुदामा ऐश्वर्य पाकर भी अनासक्त मन से भगवान के भजन में लगे रहे, कथा श्रवण करने के बाद यज्ञ पूर्णाहुति, आरती एवं भोग प्रसाद (भण्डारा) का आयोजन किया गया, और कथा श्रवण एंव भोग प्रसाद (भण्डारा) में आसपास के भक्तजन प्रतिदिन की तरह बड़ी संख्या में पहुँचे थे ।

इस अवसर आचार्य पंकज डोभाल, उपाचार्य रितिक नौटियाल, राकेश गोड, आशीष, एवं बकरालवाला, डोभालवाला, राजपूर रोड एवं दूर-दूर से आये भक्तजन व समस्त भक्त मण्डली आदि मौजूद थे।

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