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डाॅ0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 118वीं पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में प्रतिभाग कर सम्बोधित करते हुएः राज्यपाल

उत्तराखंड

देहरादून: राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने राजभवन में डाॅ0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 118वीं पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृति व्याख्यान माला में प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में मेघालय के राज्यपाल श्री तथागत राॅय, डाॅ0 मुखर्जी स्मृति पीठ के अध्यक्ष श्री तरूण विजय तथा उपाध्यक्ष श्री नरेश बंसल भी उपस्थित थे।

 कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने कहा कि आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को प्रखर राष्ट्रवादी और कट्टर देशभक्त के रूप में याद किया जाता है। वे माँ भारती के सच्चे सपूत थे। इतिहास में डाॅ. मुखर्जी की छवि एक कर्मठ और जुझारू व्यक्तित्व वाले ऐसे इंसान की है, जो अपनी मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी हम भारतवासियों के आदर्श और पथप्रदर्शक हैं। राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि डा0 मुखर्जी को किसी एक राजनीतिक दल की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता क्योंकि उन्होंने जो कुछ किया देश के लिए किया और भारतभूमि के लिए अपना बलिदान तक दे दिया।

 राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धांतों के पक्के इंसान थे। जिस प्रकार हैदराबाद सहित अनेक देशी रियासतों के भारत में विलय करने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है, ठीक उसी प्रकार बंगाल, पंजाब और कश्मीर के अधिकांश भागों को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने में डॉ. मुखर्जी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

         राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि संसद में भी डा0 मुखर्जी ने सदैव राष्ट्रीय एकता की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्ष्य रखा था। संसद में दिए अपने भाषण में उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा था कि ‘‘राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है।’’ डाॅ. मुखर्जी एक महान शिक्षाविद् भी थे। वे भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से बेहतर स्थान दिलाने के लिए हमेशा प्रयास करते थे। डा0 मुखर्जी ने बालिका शिक्षा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया था।

राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि डाॅ. मुखर्जी का स्पष्ट मत था कि शिक्षा के माध्यम से युवाओं और समाज को प्रत्यक्ष लाभ मिलना चाहिए। हम आज अपने पाठ्यक्रमों को उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार ढ़ालने की बात करते हैं लेकिन डाॅ. मुखर्जी जैसे महान शिक्षाविद् ने आज से 80-90 वर्ष पूर्व ही इस बारे में सोचना प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने विश्वविद्यालयी शिक्षा को औद्योगीकरण से जोड़ने के लिए उस समय एप्लाइड केमिस्ट्री का विभाग खोला था।

राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि डॉ. मुखर्जी का विश्वास था कि अध्यात्म तथा विज्ञान से युक्त शिक्षा के द्वारा ही भारत ‘‘जगत गुरु’’ के रूप में निरन्तर विश्व में आगे बढ़ सकता है। श्यामा प्रसाद जी के व्यक्तित्व में अध्यात्मवाद, सहनशीलता, मानवीय गुणों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं गहरी समझ के साथ सुन्दर समन्वय हो गया था। मानव मात्र की सेवा को ही वह ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे। डाॅ. मुखर्जी के जीवन मूल्य और सिद्धांत आज युवाओं के लिए पहले से कई अधिक प्रासंगिक हैं।

मेघालय के राज्यपाल श्री तथागत राय ने कहा कि डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुआयामी व्यक्त्वि के धनी थे। वह सबसे कम आयु में किसी विश्वविद्यालय के कुलपति बनें। वह स्वतंत्रभारत के पहले उद्योगमंत्री भी थे।  उन्होंने  कश्मीर के लिये बहुत संघर्ष किया।

          कार्यक्रम के संयोजक श्री तरूण विजय ने कहा कि डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक महान शिक्षाविद और चिन्तक थे। राष्ट्रनिर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस अवसर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के उपकुलपति, प्राचार्य, शिक्षक व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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