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यूक्रेन संकट: कीव से निकलने के लिए ट्रेन में चढ़ना मुश्किल हो गया… भारतीय छात्रा ने सुनाई कहानी

देश-विदेश

यूक्रेन पर रूस के हमला तेज होने के साथ यहां हालात और गंभीर हो गए हैं। भारतीय नागरिकों और छात्रों को इस युद्ध ग्रस्त देश से निकालने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन, अभी भी बड़ी संख्या में लोग खतरनाक स्थानों पर फंसे हुए हैं। मंगलवार को रूसी सेना की गोलाबारी में एक भारतीय छात्र की मौत भी हो गई। दूसरी ओर ऑपरेशन गंगा के तहत इन छात्रों को लाने के प्रयास जारी हैं।

समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार कीव में फंसे कुछ छात्रों ने ट्रेन के जरिए सुरक्षित स्थान पर पहुंचने की कोशिश की है। इनमें से एक छात्रा ने फोन पर अपनी कहानी बताई है। छात्रा के अनुसार कीव में लगभग 100 भारतीय छात्र ट्रेन स्टेशन पर थे। यहां से ल्वीव शहर तक पहुंचने के लिए इन छात्रों ने खुद को 10-10 के समूह में बांटा। हमें सुरक्षित रहने के लिए पूरी योजना खुद तैयार करनी थी।

रिपोर्ट के अनुसार इन लोगों में शामिल 20 वर्षीय छात्रा आशना पंडित ने फोन पर बताया है कि जब हम वहां फंसे थे तो हमने महसूस किया कि कोई हमारी मदद करने के लिए नहीं आ रहा है और अब यह काम हमें खुद ही करना होगा। हमने खुद को छोटे-छोटे समूहों में बांटा और किसी तरह ट्रेन में चढ़ने में सफल रहे। इस ट्रेन से वह यूक्रेन के पश्चिमी शहर पहुंचे जहां युद्ध की स्थिति कीव के मुकाबले कम गंभीर है।

इससे एक दिन पहले ही ये छात्र टारल शेव्शेंको नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में अपने हॉस्टल के पिछले दरवाजे से निकलकर राजधानी के प्रमुख ट्रेन हब वोक्जल स्टेशन पहुंचे थे। भारतीय मिशन की ओर से जारी एडवायजरी में लोगों से ट्रेन के माध्यम से यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से तक पहुंचने की अपील की थी। इन छात्रों का आरोप है कि अधिकारी हमें सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने में कोई मदद उपलब्ध नहीं करा पाए।

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की रहने वाली आशना और उसके छोटे भाई अंश ने बताया कि एडवायजरी में कहा गया था कि यूक्रेनी रेलवे निकासी के लिए विशेष ट्रेनों का संचालन कर रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। दोनों भाई बहन एक ही कॉलेज में पढ़ाई करते थे। आशना ने कहा कि हमें ट्रेन में सवार होने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, कुछ छात्रों ने कोशिश की तो गार्डों ने उन्हें धकेल दिया।

आशना ने कहा कि जब कई ट्रेनों में चढ़ने की कोशिश करते वक्त ऐसे ही हालात रहे तो हमने खुद को छोटे समूहों में बांटा और किसी तरह ल्वीव के लिए ट्रेन में सवार होने में सफल हो पाए। ट्रेन में बहुत भीड़ थी और नौ घंटे का सफर हमें खड़े-खड़े पूरा करना पड़ा। यहां पहुंचने के बाद छात्रों ने तय किया कि वह यूक्रेन से निकलने के लिए या तो पोलैंड की ओर जाएंगे या हंगरी सीमा की ओर जाने की कोशिश करेंगे।

सोर्स: यह Amar Ujjala न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ श्रमजीवी जर्नलिस्ट टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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