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राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण पर हाल की मीडिया रिपोर्टों पर तकनीकी स्पष्टीकरण

देश-विदेश

नई दिल्ली: हिंदुस्तान टाइम्स और स्क्रॉल.इन में हाल की मीडिया रिपोर्टों ने विश्व बैंक द्वारा समर्थित “स्वच्छ भारत मिशन सपोर्ट ऑपरेशन” के तहत आयोजित राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर सवाल उठाया है और नमूना आकार की पर्याप्तता और गणनाकारों के प्रशिक्षण की पर्याप्तता पर प्रश्‍न उठाया है। .ये रिपोर्ट तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण, भ्रामक और भेदभावपूर्ण है।

एनएआरएसएस 2018-19 देश का सबसे बड़ा स्वतंत्र स्वच्छता सर्वेक्षण है, जिसकी नमूना संरचना में छह हजार से अधिक गांवों, 92040 घरों, 5782 स्कूलों, 5803 आंगनवाड़ी केंद्रों, 1015 सार्वजनिक शौचालयों और 6055 सार्वजनिक स्थानों को शामिल किया गया है, जो इसे देश में स्‍वच्‍छता सर्वे का सबसे बड़ा प्रति‍निधि बनाता है। गांव का चयन, साथ ही साथ प्रत्येक गांव के भीतर घरों का चयन औचक रूप से किया गया है, जो सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है और गांव, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर किया गया है।

एनएआरएसएस  की कार्यप्रणाली और प्रक्रियाओं को एक सशक्त और स्वतंत्र विशेषज्ञ कार्य समूह द्वारा विकसित और अनुमोदित किया गया है, जिसमें सांख्यिकी और स्वच्छता के प्रमुख विशेषज्ञ शामिल हैं।  इनमें प्रो. अमिताभ कुंडू, डॉ.् एन. सी. सक्सेना, विश्व बैंक, यूनिसेफ, बीएमजीएफ, वाटर एड इंडिया, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय शामिल हैं। इस समूह ने एनएआरएसएस के संचालन की निगरानी की है और प्रश्नावली डिजाइन से लेकर नमूना लेने वालों के प्रशिक्षण से लेकर वास्तविक पूछताछ में भाग लिया है।

एनएआरएसएस ने एकत्र किए गए डेटा को फिर से सत्यापित करने के लिए सर्वेक्षण अवधि के दौरान तथा उसके बाद अपने पर्यवेक्षकों और ईडब्ल्यूजी के सदस्यों द्वारा संलग्‍न वस्‍तुओं की दोहरी जांच के माध्यम से एक मजबूत गुणवत्ता आश्वासन तंत्र का पालन किया। कुल नमूने के 5% से अधिक की दोबारा जाँच की गई थी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि निष्कर्ष विश्वसनीय हैं। बाहरी विशेषज्ञों द्वारा सख्‍ती और तटस्थता का यह स्तर एनएआरएसएस डेटा को भारत में स्वच्छता पर उपलब्ध सबसे विश्वसनीय डेटा बनाता है।

इन मीडिया रिपोर्टों ने एनएआरएसएस के निष्कर्षों पर आक्षेप लगाने के लिए समय-समय पर अलग-अलग महत्वहीन, गैर-प्रतिनिधि और भेदभावपूर्ण अध्ययन के लिए अलग-अलग समय-सीमाओं का उपयोग किया है। स्क्रॉल.इन की रिपोर्ट में वास्तव में एनएआरएसएस 2018-19 के बजाय एनएआरएसएस 2017-18 से डेटा उद्धृत किया गया है जो ग्रामीण भारत में वर्तमान स्वच्छता कवरेज का सही रूप से प्रतिनिधित्‍व नहीं करता। लेखकों के लिए यह उचित होता कि वे इसकी कार्यप्रणाली और मजबूती पर टिप्पणी करने से पहले एनएआरएसएस प्रोटोकॉल दस्तावेज़ को पढ़ते, साथ ही साथ 2017-18 और 2018-19 के सर्वेक्षण के परिणाम, जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध हैं, का अध्‍ययन करते।

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