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शिक्षा समागम भारत को ज्ञान आधारित महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक कदम: धर्मेंद्र प्रधान

देश-विदेश

वाराणसी में तीन-दिवसीय अखिल भारतीय शिक्षा समागम (एबीएसएस) आज शिक्षा जगत की हस्तियों द्वारा भारत को एक समान और जीवंत ज्ञान समाज में बदलने के लिए सामूहिक रूप से काम करने के संकल्प के साथ संपन्न हुआ।

समापन सत्र को संबोधित करते हुए शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि हमें 21वीं सदी के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए अग्रगामी, उत्तरदायी, विश्व स्तरीय उच्च शिक्षण संस्थानों को विकसित करने की आवश्यकता है। हमें उच्च शिक्षा में पहुंच, समावेशिता, समानता, सामर्थ्य और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए काम करना है।

श्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि हमें भारतीय मूल्यों, विचारों और सेवा की भावना में निहित एक परिवर्तनकारी शिक्षा प्रणाली लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमें अपनी शिक्षा को पूरा करने और आकांक्षाओं को प्राप्त करने, हमारी भाषाओं, संस्कृति और ज्ञान पर गर्व करने की दिशा और मार्ग प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि एनईपी के घटक जैसे मल्टी-मॉडल एजुकेशन, एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स, मल्टीपल एंट्री-एग्जिट, स्किल डेवलपमेंट, स्टूडेंट फर्स्ट-टीचर लेड लर्निंग की दिशा में मील के पत्थर साबित होंगे।

श्री प्रधान ने कहा कि इस तीन-दिवसीय कार्यक्रम में सभी विद्वानों, नीति निर्माताओं और शिक्षाविदों का उत्साह देखकर एक नई ऊर्जा और नया आत्मविश्वास जगा है। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा समागम भारत को ज्ञान आधारित महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक कदम है।

शिक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हमारी उच्च शिक्षा शिक्षक द्वारा छात्र के लिए होनी चाहिए। हमारा प्रशासन हमारे युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में शिक्षकों का समर्थन करने के लिए सब कुछ करेगा।

श्री प्रधान ने शिक्षा क्षेत्र से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर प्रधानमंत्री के निरंतर समर्थन और मार्गदर्शन के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। उन्होंने भारत को अनुसंधान और नवाचार के केंद्र के रूप में विकसित करने और जलवायु परिवर्तन के समाधान पर काम करने, सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए कचरे से धन के लिए प्रौद्योगिकी निर्माण के प्रधानमंत्री के सुझावों को दोहराया।

श्री धर्मेंद्र प्रधान ने आशा और विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय उद्यमशील समाज तैयार करने और रोजगार सृजन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वे समाज और मानव जाति के कल्याण और जीवन को आसान बनाने के लिए अनुसंधान की उत्पत्ति के स्थल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा के अवसर प्रदान करके हम शिक्षा प्रणाली के एक बड़े हिस्से को जोड़ने तथा अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने में सक्षम होंगे।

इस अवसर पर अपने संबोधन में श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने कहा कि आजादी के बाद पहली बार उच्च शिक्षा पर इतना बड़ा और गहन शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया है। कई संस्थान नए और बेहतर तौर-तरीकों को अपना रहे हैं। सेवानिवृत्ति, निर्माण कार्य, ग्रेडिंग और मूल्यांकन के मुद्दे को प्रभावी ढंग से निपटाया जाना चाहिए और हमें छात्रों को उनके आसपास निकटतापूर्वक सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने शिक्षाविदों से आग्रह किया कि वे परिवर्तन के अग्रदूत हैं और उन्हें बदलाव का नेतृत्व करना होगा। शिक्षकों और शिक्षा जगत की हस्तियों के रूप में यदि हम अपने संस्थानों में अपने सामान्य कामकाजी घंटों से केवल एक घंटा अतिरिक्त खर्च करते हैं, तो मेरा विश्वास करें कि यह एक बड़ा कदम होगा। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उत्तर प्रदेश ने कोविड-19 महामारी के दौरान विश्वविद्यालयों की सहायता से प्रभावित लोगों की मदद के लिए बहुत काम किया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थान आंगनबाड़ियों को अपना रहे हैं और उन्हें बुनियादी सुविधाओं के लिए किट उपलब्ध करा रहे हैं।

केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने शिक्षाविदों को संबोधित करते हुए कहा कि समग्र शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की आत्मा है। उन्होंने कहा कि विभिन्न संस्थानों के अपने दौरे के समय, उन्होंने महसूस किया कि समग्र शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति में वृहद एवं सूक्ष्म- दोनों क्रियाकलापों को आगे बढ़ाने की काफी आवश्यकता है। उन्होंने इस विषय पर मूलभूत ज्ञान से संपन्न भारतीय ज्ञान प्रणालियों के आधारभूत पाठ्यक्रम को विकसित करने के लिए विचारों को साझा किया और छात्र-शिक्षक जुड़ाव के निर्माण के महत्व पर जोर दिया।

इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ‘भारतीय भाषाओं में शिक्षा’ पर बहुत जोर देती है। हालांकि, हमारी अपनी भाषाओं में कोई विश्व स्तरीय अध्ययन सामग्री उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि हम किसी भी उधार ली गई भाषा से एनईपी-2020 के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने और 21वीं सदी की जरूरतों के अनुरूप हमारे विश्वविद्यालय और  शिक्षा जगत के दिग्गज महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

अखिल भारतीय शिक्षा समागम में 11 सत्र हुए जिनमें 9 विषयगत सत्र और सफलता की कहानियों को साझा करने और एनईपी 2020 कार्यान्वयन के सर्वोत्तम तौर-तरीकों पर दो विशेष सत्र शामिल हैं। विचार-विमर्श समग्र और बहु-विषयक शिक्षा, गुणवत्ता बढ़ाने, प्रौद्योगिकी के उपयोग से समावेशिता और पहुंच जैसे विषयों से लेकर, अनुसंधान और नवाचार के लिए एक इको-सिस्टम को बढ़ावा देने की आवश्यकता, भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने, भारतीय ज्ञान प्रणालियों और एनईपी के कार्यान्वयन पर सर्वोत्तम तौर-तरीकों को साझा करने पर केंद्रित था।

पहला सत्र ‘बहु-संकाय और समग्र शिक्षा’ विषय पर था और इसकी अध्यक्षता केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात, गांधीनगर के कुलपति डॉ. प्रो. रामा शंकर दुबे ने की। इस सत्र के पैनल सदस्य थे – डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन, निदेशक, भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु; प्रो. राज सिंह, कुलपति जैन विश्वविद्यालय, बैंगलोर; प्रो. नितिन कर्मलकर पूर्व कुलपति, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे और प्रो. एस. पी. बंसल, कुलपति, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय। यह सुझाव दिया गया कि उच्च शिक्षण संस्थान, बहु-संकाय पाठ्यक्रमों के माध्यम से छात्रों को समग्र शिक्षा प्रदान करें। एनईपी-2020 में परिकल्पित समग्र और बहु-संकाय शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए, हमें कई सुविधाएं स्थापित करने की आवश्यकता है जैसे:

  • विभिन्न पाठ्यक्रमों में निरंतरता के साथ योग्यता का एक व्यापक ढांचा (राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता ढांचा (एनएचईक्यूएफ)
  • क्रेडिट का एकेडमिक बैंक,
  • बहु-प्रवेश और निकास के लिए बहु-संकाय आधारित शिक्षा प्रावधानों के लिए दिशानिर्देश
  • भौतिक, ओडीएल/और ऑनलाइन जैसे विभिन्न तरीकों के माध्यम से मिश्रित व्यवस्था में क्रेडिट अर्जित करने के प्रावधान
  • डिग्री+ डिजिटल प्लेटफॉर्म का निर्माण, जो मुख्य विषयों के अलावा पसंद के अन्य पाठ्यक्रमों का अवसर प्रदान करता है
  • इंटर्नशिप के माध्यम से प्रयोग आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उद्योग जगत की अनुसंधान एवं विकास इकाइयों को साझा-स्थान प्रदान करना
  • उद्योग कनेक्ट के माध्यम से अनुसंधान और विकास इकाइयों की स्थापना करके परिसर में उद्योगों को साझा-स्थान प्रदान करना
  • शिक्षा में लचीलापन होना चाहिए, जिसमें प्रथम वर्ष में छात्रों को प्रत्येक विषय की झलक प्रदान की जानी चाहिए और बाद में उन्हें अपने संकाय चुनने का मौका दिया जाना चाहिए।

दूसरा सत्र ‘अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता’ विषय पर था और इसकी अध्यक्षता आईआईएससी, बैंगलोर के निदेशक प्रोफेसर जी रंगराजन ने की। इस सत्र के पैनल सदस्य थे – प्रो. वी. के. तिवारी, निदेशक, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर; प्रो. सी. मुथामिज़ चेल्वन कुलपति, एसआरएम विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, चेन्नई; डॉ. श्रीनिवास बल्ली कुलपति, नृपथुंगा विश्वविद्यालय, बैंगलोर और प्रो. के. आर. एस. संबाशिव राव, कुलपति, मिजोरम केंद्रीय विश्वविद्यालय। सत्र में निम्नलिखित पर चर्चा की गई:

  • एनईपी-2020 का उद्देश्य एचईआई में अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए एक अनुकूल इकोसिस्टम बनाना है। वित्त पोषण समर्थन, दिशा-निर्देशों/नीतियों तथा नवाचार और अनुसंधान केंद्रों की स्थापना के माध्यम से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति की शुरुआत करने और उन्हें समर्थन देने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • लीक से हटकर सोच पर जोर देने के साथ अनुसंधान और नवाचार के तरीकों तथा महत्वपूर्ण सोच क्षमताओं की गहन समझ विकसित करना।
  • समाज और अर्थव्यवस्था के साथ घनिष्ठ संबंधों के साथ अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता को गति प्रदान करने वाले कारकों के रूप में उत्कृष्टता के बहु-विषयक व परस्पर जुड़े केंद्रों का निर्माण करना।
  • अनुसंधान की विविध संभावनाओं के साथ सभी हितधारकों को एकीकृत करने के लिए एक इकोसिस्टम।
  • स्थायी प्रोत्साहन और उत्कृष्ट अनुसंधान की मान्यता के साथ योग्यता आधारित प्रतिस्पर्धी वित्त पोषण।

तीसरा सत्र ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों का क्षमता निर्माण और शासन’ विषय पर था। प्रो. एम. के. श्रीधर, सदस्य, एनईपी मसौदा समिति ने सत्र की अध्यक्षता की। विषय पर विचार-विमर्श करने वाले पैनल सदस्य थे: प्रो. अविनाश सी. पांडे, निदेशक, आईयूएसी, दिल्ली; प्रो. (डॉ.) विजय कुमार श्रीवास्तव कुलपति, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय बड़ौदा, वडोदरा, गुजरात; प्रो दिनेश प्रसाद सकलानी अध्यक्ष, एनसीटीई और प्रो संजीव जैन, कुलपति, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय। सत्र के दौरान निम्नलिखित पर चर्चा की गई:

  • एनईपी-2020 शिक्षकों के सशक्तिकरण और क्षमता निर्माण पर जोर देता है, जो गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  • शिक्षक-शिक्षण कार्यक्रमों की संपूर्ण संरचना में व्यापक बदलाव की जरूरत है और इसके लिए इसे उच्च शिक्षा का क अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिए।
  • शिक्षकों को हर साल नए पाठ्यक्रम पेश करने चाहिए, ताकि छात्रों के लिए पाठ्यक्रमों के बेहतर विकल्प मौजूद हों। शिक्षक को पेटेंट पर काम करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए और यदि उत्पाद की बाजार में मांग है, तो विश्वविद्यालय को भी स्टार्टअप का समर्थन करना चाहिए और यदि आवश्यकता होती है, तो शिक्षक अकादमिक करियर में वापस आ सकते हैं।

चौथा विषयगत सत्र गुणवत्ता, रैंकिंग और प्रत्यायन से संबंधित था। इस सत्र के वक्ताओं में प्रोफेसर जी. हेमंत कुमार, कुलपति, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर; डॉ. आर. एम. कथिरेसन कुलपति, अन्नामलाई विश्वविद्यालय; प्रोफेसर डॉ. एस. वैद्यसुब्रमण्यम, कुलपति, सस्त्र, तंजावुर और प्रोफेसर आर.पी. तिवारी, कुलपति, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय शामिल थे। राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनबीए), नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रोफेसर के. के. अग्रवाल की अध्यक्षता में विचार-विमर्श किया गया। इस सत्र के दौरान निम्नलिखित बातों पर चर्चा की गई:

  • टाइम्स हायर एजुकेशन और क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग जैसी विश्व-प्रसिद्ध रैंकिंग में उच्च रैंक प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत।
  • मार्गदर्शी-मार्गदर्शन पहल- संस्थानों के बीच मेंटर-मेंटी आधार पर पारस्परिक सहायता।
  • प्रत्यायन के प्रत्येक स्तर के लिए आवश्यक न्यूनतम मानदंड को धीरे-धीरे हासिल करने के लिए कॉलेजों को प्रोत्साहित, मार्गदर्शन, समर्थन और प्रेरित करना।
  • प्रत्यायन एजेंसियों द्वारा अपनाए गए मापदंडों पर चर्चा एवं समीक्षा।
  • गैर-मान्यता प्राप्त संस्थानों की विशाल संख्या को मान्यता ढांचे के दायरे में लाने के तरीकों की खोज।

पांचवां विषयगत सत्र डिजिटल सशक्तिकरण और ऑनलाइन शिक्षा के संबंध में था। इस सत्र की चर्चा के लिए वक्ता के रूप में प्रोफेसर कामकोटि वीझीनाथन, निदेशक, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास; प्रोफेसर पी.वी. विजयराघवन कुलपति, श्री रामचंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च, चेन्नई; श्री राहुल कुलकर्णी, मुख्य प्रौद्योगिकीविद्, समग्र तथा डून्यू के सह-संस्थापक; प्रोफेसर नागेश्वर राव कुलपति, इग्नू शामिल थे। प्रोफेसर अनिल डी. सहस्रबुद्धे अध्यक्ष, एआईसीटीई की अध्यक्षता में विचार-विमर्श किया गया। इस सत्र के दौरान निम्नलिखित बातों पर चर्चा की गई:

  • उच्च शिक्षा में वर्तमान एवं भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए मौजूदा डिजिटल प्लेटफॉर्म और वर्तमान में चल रहे आईसीटी-आधारित शैक्षिक पहल का अनुकूलन।
  • आजीवन सीखने के उन्मुखीकरण के साथ किफायती एवं न्यायसंगत आधार पर व्यापक आबादी के लिए डिजिटल संसाधनों का उपयोग करके सीखने के बेहतर अवसरों का निर्माण।
  • विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग समर्थित प्रयोगशालाओं के साथ देशव्यापी परामर्श केंद्र स्थापित करने की जरूरत।

छठा विषयगत सत्र न्यायसंगत एवं समावेशी शिक्षा के बारे में था। इस सत्र की अध्यक्षता मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के कुलपति प्रोफेसर सैयद ऐनुल हसन ने की। इस सत्र के वक्ताओं में प्रोफेसर टी. वी. कट्टिमणि कुलपति, केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश, विजयनगरम; डॉ. उज्ज्वला चक्रदेव कुलपति, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय, मुंबई; प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित कुलपति, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली और प्रोफेसर सुषमा यादव आयोग सदस्य, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं पूर्व कुलपति, भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय शामिल थीं। इस सत्र के दौरान निम्नलिखित बातों पर चर्चा की गई:

  • उच्च शिक्षा में समानता एवं समावेशन को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों (एसईडीजी) पर विशेष ध्यान देते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी छात्रों की समान पहुंच।
  • ब्रिज कोर्स, अर्न-वाइल-लर्न प्रोग्राम और आउटरीच पहल के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों (एसईडीजी) के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच की स्थिति में सुधार।
  • भागीदारी एवं प्रतिस्पर्धा की खुली भावना के साथ छात्रवृत्ति, फेलोशिप तथा शोध के लिए और अधिक अवसर प्रदान करना।

सातवां विषयगत सत्र “भारतीय भाषाओं और भारतीय ज्ञान प्रणालियों का प्रचार” विषय पर आयोजित किया गया था। भारतीय भाषाओं के प्रचार के लिए एचपीसी के अध्‍यक्ष प्रो. चामू कृष्ण शास्त्री ने पैनल चर्चा की अध्यक्षता की। भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) के समन्‍वयक प्रोफेसर गंती सूर्यनारायण मूर्ति, रामकृष्ण मिशन विवेकानंद शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान, बेलूर मठ के कुलपति स्वामी सर्वोत्तमानंद और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति के कुलपति प्रो. राधाकांत ठाकुर ने पैनलिस्ट होने के नाते उपरोक्‍त विषय पर चर्चा की।

  • भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, कला और भाषाओं को संरक्षित करने, मजबूत करने और बढ़ावा देने के तरीकों और साधनों का विकास।
  • भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) को सभी स्तरों पर पाठ्यक्रम में शामिल करना।
  • आईकेएस को फिर से जीवंत करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। संस्थागत, व्यक्तिगत, अनुसंधान और छात्र स्तर पर क्षमता निर्माण पर एक मजबूती से ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। प्रामाणिक सत्यापित संदर्भ, पाठ्यक्रम सामग्री, और अनेक पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए आवश्यक पाठ्यपुस्तकें जिनमें अध्‍ययन के विषय की विस्‍तार से जानकारी है और छात्रों के हितों और जरूरतों के अनुरूप हैं।
  • अनुसंधान, शिक्षा, परामर्श और लोगों तक बात पहुंचाने के कार्यों का समर्थन करने के लिए संस्थागत क्षमता विकसित करने के उद्देश्‍य से देश भर के विभिन्न संस्थानों में आईकेएस केन्‍द्र स्थापित करना।

श्रृंखला में तीसरे और नौवें दिन का पहला विषयगत सत्र कौशल विकास और रोजगार प्राप्‍त करने की योग्‍यता के विषय पर आयोजित किया गया था। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), तिरुपति के निदेशक डॉ. के. एन. सत्यनारायण ने सत्र की अध्यक्षता की और पैनल चर्चा एनसीवीईटी के अध्यक्ष डॉ.एन.एस.कलसी एआईसीटीई, नई दिल्ली के उपाध्‍यक्ष प्रो. एम.पी. पूनिया, विश्वकर्मा कौशल विकास विश्वविद्यालय, हरियाणा के कुलपति प्रो. राज नेहरू और दयालबाग विश्वविद्यालय, आगरा के निदेशक प्रो. प्रेम कुमार कालरा ने कराई।

  • पाठ्यक्रम संबंधी सहायता से छात्रों की रोजगार संबंधी योग्यता में सुधार करने में कौशल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • सभी शिक्षण संस्थानों में व्यावसायिक शिक्षा कार्यक्रमों को चरणबद्ध तरीके से मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करना।
  • सामान्य शिक्षा के विषयों में कौशल समान रूप से महत्वपूर्ण है और शिक्षण और अनुसंधान दोनों को उपयोगिता, आधुनिकता और लचीलेपन पर ध्यान देना चाहिए।
  • शिक्षा जगत और उद्योग के बीच सार्थक संबंधों पर अधिक जोर।
  • देश के लिए “उद्योग के लिए उपयुक्त” कुशल कार्यबल का निर्माण।
  • उद्योग आधारित, अभ्यास-उन्मुख, और परिणाम आधारित अध्‍ययन मुख्य केन्‍द्र बिन्‍दु होना चाहिए।
  • संस्थान-उद्योग संपर्क स्थापित करने के तरीकों और साधनों का पता लगाएं।
  • उच्च शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा को एकीकृत करने के लिए विभिन्न मॉडलों का पता लगाएं।
  • अंतरराष्ट्रीय रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने के उद्देश्‍य से छात्र गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए व्यवसायों के अंतर्राष्ट्रीय मानक वर्गीकरण (आईएससीओ) के साथ जोड़ने के लिए राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) की समीक्षा की जाए।

दसवां विषयगत सत्र “शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण” विषय पर आयोजित किया गया था और पैनल चर्चा की अध्यक्षता बीएचयू, वाराणसी के कुलपति प्रोफेसर सुधीर जैन ने की। सत्र के पैनलिस्ट जिन्होंने इस विषय पर चर्चा की उनमें सिम्बायोसिस, पुणे के प्रो-चांसलर प्रो. विद्या येरवडेकर; चंडीगढ़ विश्वविद्यालय अजीतगढ़, पंजाब के कुलपति प्रो. आनंद अग्रवाल;  ओपी जिंदल विश्वविद्यालय, सोनीपत के कुलपति प्रो. (डॉ.) सी. राज कुमार और चितकारा विश्वविद्यालय, पंजाब की कुलपति डॉ. अर्चना मंत्री शामिल हैं।

  • उच्च शिक्षा प्रणाली के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर जोर।
  • उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के माध्यम से वैश्विक जागरूकता और अंतर-संतुष्टि।
  • वैश्विक गुणवत्ता मानकों के लक्ष्य को ग्रहण करने की आवश्यकता है।
  • अधिक से अधिक संख्या में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करना और “देश में अंतर्राष्ट्रीयकरण” के लक्ष्य को प्राप्त करना
  • विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों के लिए अतिरिक्त सीटों का प्रावधान करना ताकि उनके दाखिले की संख्‍या बढ़ाई जा सके।
  • एचईआई के बीच समझौता ज्ञापनों के माध्यम से शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग,
  • क्रेडिट मान्यता और क्रेडिट हस्तांतरण, संयुक्त और दोहरी डिग्री का प्रावधान।
  • शीर्ष भारतीय विश्वविद्यालयों को अन्य देशों में परिसर स्थापित करने की अनुमति देना, और इसी तरह
  • शीर्ष क्रम के विदेशी एचईआई भारत में कैम्‍पस खोल सकें।
  • भारत को एक पसंदीदा वैश्विक अध्ययन गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने के तरीकों और उपायों का पता लगाएं।
  • भारतीय और विदेशी एचईआई के बीच अकादमिक सहयोग के लिए विभिन्न मॉडलों और प्लेटफार्मों पर विचार-विमर्श

शिक्षा मंत्रालय ने वाराणसी में 7 से 9 जुलाई तक शिक्षा समागम का आयोजन किया है। इसने प्रख्यात शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं और अकादमिक नेताओं को अपने अनुभवों को साझा करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के प्रभावी कार्यान्वयन के रोडमैप पर चर्चा करने के लिए एक मंच प्रदान किया है। इस कार्यक्रम में पूरे देश के विश्वविद्यालयों (केन्‍द्रीय, राज्य,डीम्ड और निजी), और राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों (आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, आईआईएसईआर) के 300 से अधिक शैक्षणिक, प्रशासनिक और संस्थागत प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

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