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मंत्रालय ने द्रोणाचार्य पुरस्कार से तीरंदाजी कोच तेजा का नाम हटाया

खेल समाचार

तीरंदाजी कोच जीवनजोत सिंह तेजा का नाम अनुशासनहीनता के पुराने मामले के कारण बुधवार को द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए नामितों की सूची से हटा दिया गया जबकि खेल मंत्रालय ने उन बाकी सभी नामों को मंजूरी दे दी जिनके नामों की की सिफारिश चयन समिति खेल र, अर्जुन और ध्यानचंद पुरस्कारों के लिए की थी। तेजा उन पांच प्रशिक्षकों में शामिल थे जिनके नाम की सिफारिश द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिये की गयी थी लेकिन कोरिया में विश्व विश्वविद्यालय खेलों के दौरान 2015 में अनुशासनहीनता की एक घटना के कारण उन पर एक साल का प्रतिबंध लगा था।

मंत्रालय के सूत्र ने गोपनीयता की शर्त पर पीटीआई से कहा, तेजा पर 2015 की एक घटना के कारण के कारण अनुशासनहीनता के लिये एक साल का प्रतिबंध लगा था। वह विश्व विश्विद्यालय खेलों में मुख्य तीरंदाजी कोच थे और महिला टीम समय पर प्रतियोगिता के लिये नहीं पहुंची थी और भारत को देर से पहुंचने के कारण मैच गंवाना पड़ा था। भारतीय तीरंदाजी संघ ने इस घटना के बाद उन पर एक साल का प्रतिबंध लगाया था। तीरंदाजी संघ के एक अधिकारी ने कहा कि अगर तेजा का नाम तीन साल पहले की इस घटना के आधार पर हटाया गया तो यह उनके साथ अन्याय होगा। उन्होंने कहा, यह सच है कि तेजा पर 2015 की घटना के बाद एक साल का प्रतिबंध लगा था लेकिन प्रतिबंध समाप्त होने के बाद उन्होंने अच्छे परिणाम दिये थे। अगर इस घटना के आधार पर उनका नाम हटाया गया है तो यह उनके साथ अन्याय है।

तेजा ने इस पर प्रतिक्रिया करते हुए खेल मंत्रालय के कदम को अन्यायपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि वह इसके खिलाफ अदालत में जाएंगे। वर्ष 2015 से राष्ट्रीय कंपाउंड तीरंदाजी कोच रहे तेजा ने कहा, कुछ लोग हैं जो मेरी प्रतिष्ठा खराब करना चाहते हैं। जो तीरंदाज मुझसे प्रशिक्षण लेते हैं उनसे पूछो। उनसे पूछो कि मैंने उनके अभ्यास के तरीके में क्या प्रभाव डाला। अगर इस मामले में मैं गलत था तो इसका जांच करवाएं।

भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) ने 2015 की घटना के लिये उन पर तीन साल का जबकि एएआई ने एक साल का प्रतिबंध लगाया था। तेजा ने कहा, एआईयू ने भी प्रतिबंध घटाकर डेढ़ साल का कर दिया था क्योंकि उन्होंने पाया कि गलती मेरी नहीं थी। ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया और वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। दल प्रमुख कार्यक्रम में बदलाव के बारे में जानता था लेकिन उन्होंने हमें सूचित नहीं किया। यह सरकार से मंजूरी प्राप्त प्रतियोगिता भी नहीं थी और मैं खुद से जेब से पैसा लगाकर वहां गया था। उन्होंने कहा, मैंने एएआई का एक साल का प्रतिबंध भी झेला है। जब मुझे सजा मिल चुकी है तो क्या यह घटना जिदगी भर मेरा पीछा करती रहेगी। अगर मैं गलत था तो मुझे भारतीय कोच के रूप में एशियाई खेलों में क्यों भेजा गया। मेरी 2015 के बाद की उपलब्धियों का क्या होगा, क्या उन पर विचार नहीं किया जाएगा। यह वास्तव में निराशाजनक है। द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रशिक्षकों को चार साल तक के उनके अच्छे कार्य के लिये दिया जाता है। इसमें पांच लाख रूपए का पुरस्कार मिलता है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 25 सितंबर को राष्ट्रपति भवन में खेल पुरस्कार प्रदान करेंगे।

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