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आत्मा का परमात्मा से मिलन ही महारासः आचार्य सतीश जगूडी

उत्तराखंड

देहरादून: मानस मन्दिर बकरालवाला मन्दिर प्रगंण में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में सभी भक्तों को छठे दिन में कथा प्रवक्ता आचार्य सतीश जगूडी ने बताया की आत्मा का परमात्मा से मिलन ही महारास है. साथ ही  भगवान श्री कृष्ण की रास लीला का सुन्दर वर्णन श्रोताओं के श्रवण कराया, और श्री कृष्ण को पाने के लिए त्याग किया परंतु हम चाहते हैं कि हमें भगवान बिना कुछ किये ही मिल जाये, जो की असम्भव है। और दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता ओर गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं, गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गायी जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा ।

श्रीमद् भागवत रसवर्षा जिसमे प्रसिद्ध कथा प्रवक्ता आचार्य सतीश जगूडी ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं, जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा।

1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं।

2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे।

3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही।

आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों में आते हो? भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं, दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन, संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं, लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं-आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं, पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं, कृतघ्न दृ जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं, गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं, गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाइ जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा, पहले तो भगवान ने रास किया था लेकिन अब महारास में प्रवेश करने जा रहे हैं। तीन तरह से भगवन ने रास किया है। एक गोपी और एक कृष्ण, दो गोपी और एक कृष्ण, अनेक गोपी और एक कृष्ण इस महारास में कामदेव ने गोपियों को माध्यम बनाकर 5 तीर छोड़े थे, अब महारास के समय कामदेव ने 5 तीर छोड़े- 1. आलिंगन 2. नर्महास 3. करळकावलिस्पर्श ४. नखाग्रपात 5 . षस्मित्कटाक्षपात, ये पांच तीर कामदेव ने गोपियों के माध्यम से छोड़े थे लेकिन भगवान ने हर तीर को परास्त किया।

इस  अवसर आचार्य पंकज डोभाल, उपाचार्य रितिक नौटियाल, राकेश गोड, आशीष जी मुख्य यजमान नीलम अग्रवाल अनिता जी एवं बकरालवाला, डोभालवाला, राजपूर रोड एवं दूर-दूर से आये भक्तजन व समस्त भक्त मण्डली आदि मौजूद थे।

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