28 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

मजनू का टीला के चाय वाले ने कैसे जीता जकार्ता में मेडल

खेल समाचार

अगर आप दिल्ली की किसी गली में निकलें और एशियन गेम्स में मेडल जीतने वाला खिलाड़ी चाय बेचता हुआ नजर आ जाए, तो…? आप जो भी सोच रहे हैं, पर यह हकीकत है. यह हकीकत है 23 साल के हरीश कुमार के संघर्ष की. वे इंडोनेशिया से मेडल जीतकर शुक्रवार सुबह स्वदेश लौटे. कुछ घंटे स्वागत और जश्न में गुजरे. इसके बाद शाम को वे अपनी चाय की दुकान पर पहुंच चुके थे…

23 साल के हरीश उस सेपक टकरा टीम के सदस्य हैं, जिसने इंडोनेशिया एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता है. यह टीम शुक्रवार को स्वदेश लौटी. एयरपोर्ट पर खूब स्वागत हुआ. हरीश के पड़ोसी तो किराए की बस लेकर एयरपोर्ट पर पहुंचे थे. ढोल नगाड़े के साथ स्वागत हुआ. घर लौटकर भी कुछ घंटे जश्न का माहौल रहा. शाम होते-होते नजारा बदल गया. हरीश रोज की तरह अपनी उस चाय की दुकान पर जा पहुंचे, जिससे उनके घर का गुजारा होता है. वे बरसों से इसी दुकान पर बैठते आ रहे हैं. उस छोटी सी उम्र से, जब हममें से कई चाय लाने वाले का नाम जाने बिना उसे बुलाते हैं, ‘छोटू चाय लाना.’ लेकिन इस ‘छोटू’ की मंजिल कुछ और थी. उसे तो देश का नाम रोशन करना था.

आखिर इस अजीबोगरीब खेल की शुरुआत कैसे हुई? हरीश इसके जवाब में कहते हैं, ‘खेल-खेल में.’ फिर विस्तार से बताते हैं, ‘मैं बचपन में दोस्तों के साथ टायर को कैंची से काटकर खेलता था. इस खेल में पैरों को ज्यादा से ज्यादा ऊपर उठाना होता था. एक दिन हम पर कोच हेमराज की नजर पड़ी. उन्होंने हमें बुलाया और सेपक टकरा खेलने को कहा. और सिलसिला चल निकला. मैं अच्छा खेलता था, पर सामने कई दिक्कतें थीं. मेरे पिता चाय की दुकान चलाते हैं. परिवार बड़ा और कमाई कम. ऐसे में जब बच्चा खेलने में समय गुजारे, तो मुश्किल होनी ही थी. एक दिन पिताजी ने कहा, खेलना छोड़ और दुकान में हाथ बंटा. कमाई बढ़ेगी तो ही दोनों जून की रोटी मिलेगी. असमंजस बड़ी थी. कोच को लगता था कि मैं बड़ा खिलाड़ी बन सकता हूं. घर के हालात कुछ कह रहे थे. हरीश की दोनों बहनें ब्लाइंड हैं.

भाई ने हौसला दिया, कोच ने किराया
हरीश को इस असमंजस से कोच हेमराज और बड़े भाई नवीन ने निकाला. नवीन खुद भी सेपक टकरा खेलते थे. उन्होंने परिवार को मनाया. दोनों भाई चाय की दुकान पर पिता का साथ देने लगे. कोच हेमराज ने हरीश को स्टेडियम आने-जाने का किराया देना शुरू किया. खेल चल निकला. हरीश पहले स्टेट और फिर नेशनल लेवल पर खेलने लगे. बतौर खिलाड़ी अच्छा किया तो साई और फेडरेशन की मदद मिलने लगी. साई ने हर साल किट देना शुरू किया. सेपक टकरा फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ट्रेनिंग की व्यवस्था की. हरीश अपने प्रदर्शन का श्रेय खुद की मेहनत के साथ-साथ कोच हेमराज और फेडरेशन के महासचिव योगेंद्र सिंह दहिया को देते हैं.

सुबह चाय की दुकान, शाम को प्रैक्टिस 
हरीश ने बताया कि पिछले कई सालों से उनका रूटीन तय है. वे सुबह भाई के साथ या कभी-कभी अकेले ही चाय की दुकान चलाते हैं. उनकी प्रैक्टिस दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक स्टेडियम जाकर प्रैक्टिस करते हैं. सुबह जब हरीश चाय की दुकान पर होते हैं, तब पिताजी किराए का ऑटो चलाते हैं, ताकि थोड़ा ज्यादा कमाया जा सके.

अब मेडल के बाद क्या 
हरीश कहते हैं, मेडल जीतने की खुश और माहौल बताने के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं. बधाइयों का तांता लगा है. अब आगे क्या? क्या सरकार की ओर से नौकरी का ऑफर है? या किसी और तरह की मदद का प्रस्ताव. हरीश कहते हैं, ‘अभी कुछ साफ नहीं है. पहले 12वीं की पढ़ाई पूरी हो जाए. फिर कुछ सोचेंगे.’ हरीश की टीम में 12 खिलाड़ी थे. टीम के 10 खिलाड़ी सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में काम करते हैं, जबकि एक फिजिकल ट्रेनर है.

और अंत में : सेपक टकरा, मलय और थाई भाषा के दो शब्द हैं. सेपक, मलय का शब्द है, जिसका अर्थ किक लगाना है. टकरा का मतलब हल्की गेंद है. इस खेल में गेंद को वॉलीबॉल की तरह नेट के दूसरे पार भेजना होता है, लेकिन इसके लिए खिलाड़ी सिर्फ पैर, घुटने, सीने और सिर का ही इस्तेमाल कर सकता है. हाथ से गेंद को नहीं छुआ जा सकता.

Related posts

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More