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पर्यावरण मंत्री ने लक्‍जमबर्ग में ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर गठित प्रमुख देशों के मंच में अपनी बात कही

देश-विदेश

नई दिल्ली: कुछ देशों से प्राप्‍त उन सुझावों पर प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए कि नए समझौते में कोई नई अनुसूची नहीं दिखाई देनी चाहिए, क्‍योंकि आत्‍म-विभेद के माध्‍यम से आईएनडीसी में अपने-आप विभेद पैदा होगा, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावड़ेकर ने विकसित देशों को सतर्क किया है

कि पेरिस की सफलता के लिए और एनडीसी के अधीन कार्य हेतु अवसर देने के लिए, इस अंतिम घड़ी में कोई नया एजेंडा शामिल नहीं किया जाना चाहिए। श्री जावड़ेकर आज लक्‍जमबर्ग में ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर गठित प्रमुख देशों के मंच में अपनी बात कह रहे थे।

श्री जावड़ेकर ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे क्‍योटो संधि समाप्‍त हो जाएगी न कि यूएनएफसीसीसी। उन्‍होंने कहा कि हमें इस संधि के पुनर्लेखन का प्रयास नहीं करना चाहिए। अनुसूचियां संधि की आधारभूत संरचना का हिस्‍सा हैं, जो देशों के ऐतिहासिक उत्तरदायित्‍व से पनपती हैं। उन्‍होंने मांग करते हुए कहा कि विभेदी नए समझौते के बावजूद, पेरिस को हमें एक व्‍यापक उत्‍सव का अवसर बनने देना चाहिए, जहां प्रत्‍येक देश अपनी ओर से निर्धारित कार्रवाई करता है। इस प्रकार की सामूहिक कार्रवाई से जलवायु परिवर्तन की समस्‍या का समाधान होगा।

इससे पहले बहुत से देशों को किसी प्रकार का कार्रवाई करने का शासनादेश नहीं था। जलवायु संबंधी नई जागरूकता ने सभी देशों को कुछ कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध किया। विश्‍व तब आगे बढ़ा जब इसने डरबन में निर्णय लिया कि प्रत्‍येक देश जलवायु के मुद्दें पर कार्रवाई करेगा। वार्सा में यह निर्णय लिया गया था कि सभी देश अपना आईएनडीसी तैयार करेंगे। प्रत्‍येक देश अपनी क्षमता, उपलब्‍ध संसाधनों और समर्थन के अनुसार अपनी कार्रवाई की रूप-रेखा तैयार करेगा। राष्‍ट्रों की ओर से निर्धारित योगदान की अवधारणा से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को दूर करने में दूरगामी परिणाम प्राप्‍त होंगे। इससे एक बेहतर विश्‍व बनेगा क्‍योंकि यह एक विकसित की हुई प्रणाली है, न कि थोपी गई।

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