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सर्वोंत्तम सेवा समाज को हर क्षण देने का शुभ संकल्प होना चाहिए!

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: जीवन की सफलता का एक आसान फार्मूला है, लोक कल्याण की भावना से हम हर क्षण अपनी सर्वोत्तम सेवायें समाज को दें! चरित्र व्यक्ति की सर्वोपरि पूँजी है। जीवन की स्थायी सफलता का आधार मनुष्य का चरित्र ही है। इस आधार के बिना जैसे-जैसे सफलता प्राप्त कर भी ली गई, तो वह टिकाऊ नहीं हो सकती है। जो व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को सम्भालकर, पूर्ण संयम से, अपना मार्ग निर्धारित करता है, वह जीवन में अवश्य सफल होता है। विजय मिली विश्राम न समझो। सच्ची लगन, कड़ी मेहनत और अनुशासन के साथ कुशलता हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है! यदि आगे बढ़ते रहने की जिद बरकरार हो, तो कोई कारण नहीं कि सफलता नहीं मिलेगी। हौसले बुलंद कर रास्ते पर चल दें, तुझे तेरा मुकाम मिल जायेगा, अकेला तू पहल कर, काफिला खुद बन जाएगा। किसी शायर का यह शेर हमें आगे बढ़ने का हौसला देता है।

      आगे बढ़ने वाले लोग प्राप्त उपलब्धियों से संतुष्ट होकर नहीं बैठे रहते! ऐसा इसलिए, क्योंकि इससे न केवल जीवन में नीरसता आ जाती है, बल्कि प्रगति का मार्ग भी अवरूद्ध हो जाता है। रोज यह महसूस करना चाहिए कि आप नई शुरूआत कर रहे हैं, कुछ नया कर रहे हैं! जो पत्थर लुढ़कता नहीं रहता, उस पर काई जम जाती है! जिओ ऐसे कि हमारा हर पल हंसते-गाते बीते! ‘‘नई सुबह नया जन्म, नई दृष्टि, नया उत्साह, नया मौसम, नए विचार, नए संकल्प, नव संदेश, नया उल्लास, नव गीत। नव दिन का आगाज।’’ नव युग का सुस्वागत् – यहीं जीवन का युग गायन है।

      बीते हुए कल की मन को पीड़ा देने वाली बातों को बीते हुए कल पर ही छोड़ कर भुला देना चाहिए। सोचे कि हम आज एक नये दिन में प्रवेश कर गये है। रोजाना अपने नये दिन को उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए जी-जान से जुटे रहना चाहिए। अर्थात सदैव वर्तमान में जीना चाहिए। महापुरूषों के जीवन में देखे तो हम पायेंगे कि उनके मन में किसी के लिए भी तनिक भी बदले तथा भेदभाव की भावना नहीं होती है। महापुरूषों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य सारी मानव जाति की भलाई का होता है। वे जीवन में किसी से भी शत्रुता करके अपना एक पल भी बरबाद करने से बचते है।

      जिस काम में जितने अड़ंगे, उतनी ही कार्यात्मक संतुष्टि मिलती है। मगर ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा नहीं होता। हम अड़ंगों से घबराते हैं। एक-दो झेल भी जाएं, मगर ज्यादा नहीं झेल पाते, और फिर ये रूकावटें हमारी सोच पर हावी हो जाती हैं। हम जैसे ही ढीले पड़ते हैं, यह हमारी चयन शक्ति खत्म कर देती हैं। अवरोधक आपके रवैये पर अपना रंग दिखलाते हैं। अगर आप सकारात्मक हैं, तो बाधायें सड़कों पर औंधे मुंह लेटे स्पीड ब्रेकर से अधिक कुछ नहीं। महान साहित्यकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ तो कहते थे कि रूकावटें हमारी उत्कृष्टता का पैमाना बन सकती हैं। हम जितनी बाधाएं पार करते हैं, उतने ही उत्कृष्ट बनते हैं।

      आप कोई भी काम करें, बाधाएं आएंगी जरूर। बस आपको इससे पार पाने की अपनी तैयारी रखनी चाहिए। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के रिचर्ड वाट्स ने अपनी किताब में लिखा है कि विनम्रता और शिष्टता सभ्यता की निशानी है। कवि जोसफ एडिसन की मानें, तो विनम्र होना सबसे बड़ी खूबसूरती है। विनम्र इंसान कम प्रतिभाशाली हो, तो भी वे जीवन में बहुत आगे बढ़ जाते हैं, जबकि कठोर व प्रतिभाशाली पीछे रह जाते हैं। आपका विनम्र होना एक अच्छे इंसान की पहचान है। कोशिश इतनी भर होनी चाहिए कि विनम्रता कमजोरी नहीं, ताकत बने। जो विनम्र होते हैं, उनका अस्तित्व कभी खत्म नहीं होता।

      अलवर्ट हार्वर्ड की धारणा है, ‘आप अपना जो वास्तविक मूल्य आंकते हैं, सफलता उसी का साकार रूप है।’ ‘प्रत्येक सफल मनुष्य के जीवन में अटूट निष्ठा, तीव्र प्रामाणिकता का कोई-न-कोई केंद्र अवश्य रहता है और वही उसके जीवन में सफलता का मूल-स्त्रोत होता है। सभी कार्यों में सफलता पूर्व तैयारी पर निर्भर रहती है, पूर्व तैयारी के बगैर असफलता ही हाथ लगती है! कोई, कभी, कुछ ऐसा नहीं बना, जिसने बिना कोई सपना देखे ही उठकर आकाश छू लिया हो! लक्ष्य पूरा करने के लिए जुनून, समर्पण और प्रतिबद्धता की जरूरत होती है, उसे एक छोटी-सी चींटी से समझा जा सकता है! असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया।

      सम्पूर्ण प्रकृति में प्रेरणास्त्रोत का अकूत विशाल भंडार विद्यमान है जिनके बल पर ही मानव सभ्यता ने गुफाओं से अपनी शुरूआत करके विकास के तमाम सोपान लिखे हैं। जीवन के हताशा भरे समय में महापुरूषों के सफल जीवन के सूत्र वचनों से हमारा अत्यन्त सरल पथ प्रदर्शित होता जाता है। वे हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं! जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह और शाम, काफिला बढ़ता जायेगा बन्धु! जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना आस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वो ही उसे शक्ति देता है, ऊर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है। सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है- जो उसे अनमोल बनाती है।’’

      जीवन में अगर संघर्ष न हो, चुनौती न हो तो व्यक्ति गुणहीन ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता! मानवीय गुणों की जीवनीय शक्ति तथा गुणों से जीवन महक जाता है।

प्रदीप कुमार सिंह,
लेखक एवं समाजसेवी

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