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आरटीआई प्रश्‍नों में शुल्‍क संरचना या शब्‍द सीमा में कोई परिवर्तन नहीं

देश-विदेश

नई दिल्ली: मीडिया के एक भाग में तथ्‍यात्‍मक रूप से गलत और भ्रामक समाचार रिपोर्ट आई हैं कि आरटीआई नियमों का एक नया सैट तैयार किया गया है, जो सरकार से जानकारी हासिल करने के लिए नागरिकों के अधिकार में कठिनाइयां और बाधाएं पैदा करता है। यह भी आरोप लगाया गया है कि आरटीआई के आकार को 500 शब्‍दों तक सीमित कर दिया गया है और नियमों में गलत तरीके से शुल्‍क के प्रावधान की भी शुरूआत की है। ये तथ्‍य पूरी तरह गलत हैं।

      31 जुलाई, 2012 को केंद्र सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 27 के तहत आरटीआई नियमों को अधिसूचित किया था। मौजूदा नियमों की एक प्रति कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्‍ध है। इन नियमों में प्रावधान है कि आरटीआई का आवेदन सामान्‍य रूप से 500 शब्‍दों (अपवाद को छोड़कर) से बड़ा नहीं होगा और प्रत्‍येक आवेदक से मामूली शुल्‍क लिया जाएगा। इन नियमों को तैयार करके 2012 में अधिसूचित किया गया था।

      केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) (प्रबंधन) विनियम, 2007 की वैधता को दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती दी गई थी। जिसे न्‍यायालय ने रद्द कर दिया था। मामला उच्‍चतम न्‍यायालय में लंबित है। सरकार ने सीआईसी के परामर्श से यह निर्णय लिया है कि सीआईसी (प्रबंधन) विनियमों और प्रावधानों के साथ-साथ 2012 के नियमों को मजबूत करके व्‍यापक सैट अधिसूचित किया जाए। इसे टिप्‍पणी के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में डाल दिया गया है।

      आरटीआई नियम 2012 के मुख्‍य प्रावधानों को शब्‍दश: शामिल किया गया है। आरटीआई की शुल्‍क संरचना में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। सरकार सूचना के अधिकार के पूरे और सरल कार्यान्‍वयन को सुनिश्‍चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

      प्रस्‍तावित नियमों की वास्‍तविक स्‍थिति इस प्रकार है:

  1. मौजूदा आरटीआई नियम 2012 को 31 जुलाई, 2012 को अधिसूचित किया गया है। विशेष रूप से धारा 3 में यह प्रावधान है कि किसी आवेदन में सामान्‍य रूप से अनुलग्‍नक को छोड़कर 500 से ज्‍यादा शब्‍द नहीं होंगे। यह भी प्रावधान है कि किसी भी आवेदन को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जाएगा कि उसमें 500 से ज्‍यादा शब्‍द हैं। नए नियमों में इन प्रावधानों के बारे में कोई बदलाव प्रस्‍तावित नहीं है।
  2. चार्जिंग दरों के संबंध में प्रावधान मौजूदा आरटीआई नियम में निहित प्रावधान के समरूप हैं, जिसमें किसी प्रकाशन के लिए निर्धारित मूल्‍य के अनुसार दर चार्ज करने या प्रकाशन के उद्धरण के लिए दो रूपये प्रति पृष्‍ठ की फोटो कॉपी लेने का प्रावधान है। नियम 5 में यह भी प्रावधान है कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले किसी व्‍यक्‍ति से नियम 3 और 4 के तहत कोई शुल्‍क नहीं लिया जाएगा। नए प्रस्‍तावित नियमों में इस प्रस्‍ताव को ज्‍यों का त्‍यों रखा गया है। इस प्रकार शुल्‍क और मौजूदा नियमों में कोई परिवर्तन न करके इन्‍हें जारी रखने का प्रस्‍ताव किया गया है।
  3. सूचना भेजने के लिए डाक दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
  4. प्रस्‍तावित नियमों में शिकायत दायर करने या ऑनलाइन अपील करने की कोई सीमा नहीं रखी गई है। नियम 8 और नियम 13 विशेष रूप से ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन अपीलें और शिकायतें दायर करने से संबंधित हैं।
  5.  अपील वापस लेने का प्रावधान जो पहले केंद्रीय सूचना आयोग (प्रबंधन) विनियम 2007 में शामिल था उसे नए नियमों में भी शामिल किया गया है। इसी प्रकार आवेदक या शिकायतकर्ता की मृत्‍यु पर अपील/शिकायतें समाप्‍ति का प्रावधान जो पहले केंद्रीय सूचना आयोग (प्रबंधन) विनियम 2007 में शामिल था उसे भी शामिल किया गया है।
  6. झूठी सूचना के दावों पर कार्रवाई करने के लिए अधिकारियों को दस्‍तावेज दायर करने की अनुमति देने के संबंध में यह स्‍पष्‍ट किया जाता कि वर्तमान में सीआईसी की प्रक्रिया के अनुसार एक बार अपील का संज्ञान लिए जाने पर सीपीआईओ को अपील के निर्धारण से पहले अपना जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस दिया जाता है। यह भी केंद्रीय सूचना आयोग (प्रबंधन) विनियम 2007 का हिस्‍सा था जिसे अब नियमों में शामिल किया जा रहा है, इसलिए मौजूदा परिचालन प्रक्रिया को नियमों में शामिल करने का प्रस्‍ताव किया गया है।

        उपरोक्‍त से यह भी स्‍पष्‍ट रूप से देखा जा सकता है कि आरटीआई प्रावधानों को हल्‍का करने का आरोप निराधार है। नियमों में प्रस्‍तावित संशोधन टिप्‍पणी के लिए 15 अप्रैल, 2017 तक सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गए हैं और इन्‍हें इस बारे में प्राप्‍त सार्वजनिक प्रक्रिया को ध्‍यान में रखते हुए अंतिम रूप दिया जाएगा। इनके बारे में टिप्‍पणियां ऑनलाइन के साथ-साथ विभाग को हार्डकॉपी के रूप में भी भेजी जा सकती हैं।

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