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नाम में क्या रखा, काम बड़ा हो तो दुनिया करती है सलाम, राष्ट्रपति ने ऐसे ही गुमनाम चेहरों को दिया सम्मान

देश-विदेश

चाहे नाम मशहूर न हो मगर आपका काम बड़ा है तो फिर देर-सबेर पहचान मिल ही जाती है और जब पहचान देश की सबसे शीर्ष हस्ती की ओर से हो तो फिर बात ही अलग होती है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कश्मीर से लेकर कच्छ और बंगाल से लेकर केरल के ऐसे ही बड़े कारनामे करने वाले गुमनाम दर्जनों चेहरों को राष्ट्रपति भवन में नये साल पर खास वीआईपी मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया। इन साधारण लोगों के बेहद खास काम को देश में सकारात्मक बदलाव के लिए अहम बताते हुए राष्ट्रपति ने इनकी दिल खोलकर प्रशंसा भी की।

अम्मा और आरिफा से रूबरू हुए राष्ट्रपति

कश्मीर की विलुप्त होती कला नुमधा आर्ट को जीवंत करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाली श्रीनगर की आरिफा जान हों या केरल के अलपूजा जिले में अपने खेत को ही 40 साल में जंगल में तब्दील करने वाली 86 साल की वयोवृद्ध महिला देवकी अम्मा इनके प्रयासों से हुए बदलाव की कहानियों से सीधे रूबरू होते हुए राष्ट्रपति ने इनके योगदानों को अनुकरणीय बताया।

साधारण लोग भी सामाजिक परिवर्तन में अहम भूमिका निभा सकते हैं

राष्ट्रपति से हुई मुलाकात के बाद अम्मा और आरिफा दोनों ने कहा कि अचानक पिछले हफ्ते जब जिला कलेक्टर के यहां से संदेश आया कि उन्हें शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया गया है तो पहले उन्हें यकीन नहीं हुआ। मगर आज राष्ट्रपति से अपने काम की तारीफ से लगा कि हम निष्ठा से बदलाव के लिए कोई काम करें तो साधारण लोग भी सामाजिक परिवर्तन में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

आरिफा ने दिया कला को नया जीवन, तो अम्मा ने किया जंगल में मंगल

किसान परिवार की देवकी अम्मा का पैर 40 साल पहले टूट गया तो खेती-बारी करना मुश्किल हो गया। ऐसे में अपने पांच एकड़ खेत में इन्होंने पेड़ लगाने शुरू किए और आज केरल के अलपूजा जिले में जहां कोई सघन वन क्षेत्र नहीं अम्मा का बाग सबसे घना जंगल है। वहीं आरिफा अपने सूबे की कला को नया जीवन ही नहीं दे रही बल्कि श्रीनगर की सैकड़ों लड़कियों को हुनर के साथ रोजगार का जरिया मुहैया करा रही हैं।

फैजल की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं

जम्मू-कश्मीर के ही बांदीपुरा के किक बॉक्सिंग चैंपियन फैजल अली जो सूबे के करीब 6 हजार बच्चों को अब तक निशुल्क अलग-अलग खेलों में प्रशिक्षण दे चुके हैं उनकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। इनके कई छात्र विश्व स्पर्धाओं में पदक जीत चुके हैं। फैजल ने बताया कि उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब राष्ट्रपति ने कहा कि उनके इस काम में सरकार की कैसे मदद हो इसके लिए वे सूबे के प्रशासन से कहेंगे।

शिक्षा की लौ जलाने वाले की कहानी को सराहा गया

नौ साल की उम्र में ही अपना स्कूल शुरू करने वाले सबसे छोटे हेडमास्टर बाबर अली की शिक्षा की लौ जलाने की कहानी भी राष्ट्रपति भवन आए इन आम मेहमानों में चर्चित रही। अब 26 साल के हो चुके बाबर ने कहा कि अपने गांव के आस पास के अपनी उम्र के स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को देख उन्होंने 9 साल की उम्र में पढ़ाने का सिलसिला शुरू किया जो आज आनंदा शिक्षा निकेतन स्कूल में तब्दील हो चुका है। जहां 10वीं तक की शिक्षा बच्चों को मुफ्त मिलती है और बिना सरकारी मदद लोगों की सहायता से उनका यह स्कूल चलता है।

जनगणना में फुटपाथ पर जिंदगी बिताने वाले बच्चों की गणना करने का दिया सुझाव

गुजरात के कच्छ के कपड़े पर ब्लॉक प्रिंटिंग को दुनिया भर में मशहूर करने वाले इस्माइल मोहम्मद खत्री और सिंचाई तकनीक के सहारे किसानों की हालत सुधारने में योगदान कर रहे बिप्लव दास, दिल्ली के फुटपाथों पर रहने वाले गरीब बच्चों के बीच काम करने वाले चेतना संगठन के संजय गुप्ता के कामों की सराहना से राष्ट्रपति अभिभूत दिखे। फुटपाथ के बच्चों के लिए निकाले जाने वाले अपने अखबार बालकनामा की प्रति राष्ट्रपति को देते हुए उन्होंने जनगणना में फुटपाथ पर जिंदगी बिताने वाले बच्चों की गणना करने का भी सुझाव दिया।

राष्ट्रपति की ओर से काम का संज्ञान लेना मेरे लिए प्रेरणा बनेगा

गरीब खासकर ग्रामीण इलाकों के युवाओं की शिक्षा और रोजगार के लिए काम करने वाली संस्था फ्यूल की मयूरी ने कहा कि राष्ट्रपति की ओर से उनके काम का संज्ञान लेना उनके लिए और बेहतर करने का प्रेरणा बनेगा। देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे ही बदलावों से फर्क लाने वाले साधारण लोगों को राष्ट्रपति ने खास तौर पर इसीलिए बुलाया था ताकि ऐसे अनाम चेहरों के योगदानों का भी नोटिस लिया जा सके। Source जागरण

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