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ट्राईफेड, जनजातीय मामलों का मंत्रालय जनजातीय जीवन को बदल रहा है और जनजातीय लोगों के सपनों को पंख लगा रहा है

देश-विदेश

नई दिल्ली: अब कोविड–19 महामारी से देश भर के लोगों के जीवन को प्रभावित हुए (और प्रभावित होना अब भी जारी है) चार महीने हो गए हैं। जैसे-जैसे लोग अपने जीवन एवं आजीविका को बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं, आदिवासी लोगों को मुख्यधारा के विकास की ओर ले जाने के लिए ट्राइफेड योद्धाओं की टीम लगातार आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है।

“स्थानीय के लिए आवाज़ लगाओ” (गो वोकल फॉर लोकल), इस कठिन समय का एक मंत्र, को “गो वोकल फॉर लोकल, गो ट्राइबल – मेरा वन मेरा धन मेरा उद्यम” में फेरबदल करते हुए ट्राईफेड, जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने अपने मौजूदा प्रमुख कार्यक्रमों और कार्यान्वयनों के अलावा कई बेमिसाल कदम उठाये हैं, जो ऐसे समय में संकटग्रस्त आदिवासियों के लिए एक रामबाण के रूप में सामने आये हैं। हाल के महीनों में ट्राईफेड के कुछ उल्लेखनीय प्रयास, जिन्होंने इन कठिन समय में रोजगार एवं आजीविका उत्पादन में जनजातीय लोगों को सहायता प्रदान की है, नीचे दिखाए गए हैं।

एक ऐसे समय में जब जीवन के सभी पहलू ऑनलाइन हो गए हैं, ट्राईफेड ने न केवल जनजातीय वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए एक सर्वांगीण डिजिटलीकरण अभियान शुरू किया है बल्कि अपने गांव-आधारित आदिवासी उत्पादकों और कारीगरों की पहचान करकेआधुनिक ई–प्लेटफार्मों, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं, की स्थापना के जरिएउन्हें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़ रहा है। इस रणनीति का उद्देश्य जनजातीय वाणिज्य को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देना है।

ट्राईफेड वन धन योजना, गांव हाट एवं अपने गोदामों से जुड़े वनवासियों से संबंधित सभी सूचनाओं को डिजिटल बनाने की प्रक्रिया में है। डिजिटलीकरण का यह प्रयास, जिसमें जीआईएस तकनीक का उपयोग करके सभी आदिवासी समूहों की पहचान की गई है और उन्हें चिन्हित किया गया है, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए “आत्मनिर्भर अभियान” के तहत इन लोगों को लाभ पहुंचाने में मदद करेगा।

इस महामारी की आकस्मिकता से हमारे जीवन के प्रभावित होने एवं तात्कालिक लॉकडाउन की वजह से जनजातीय कारीगरों का 100 करोड़ रुपये की लागत का उत्पादों का भंडार बिना बिक्री का पड़ा हुआ था। यह सुनिश्चित करने के लिए किये उत्पाद बेचे जायें और उनकी बिक्री के प्राप्त सभी आय प्रभावित आदिवासी परिवारों के पास जायें, ट्राईफेड ने 1 लाख से अधिक वस्तुएं खरीदी और अपनी ट्राइब्स इंडिया वेबसाइट और अमेज़न, फ्लिपकार्ट एवं जीईएम जैसे अन्य खुदरा प्लेटफ़ॉर्म के जरिए इन बिकने वाले सामानों की ऑनलाइन (पर्याप्त छूट प्रदान करते हुए) की मार्केटिंग की एक आक्रामक योजना शुरू की। ट्राईफेड योद्धाओं की टीम ने 5000 से अधिक जनजातीय कारीगरों को मुफ्त भोजन एवं राशन वितरित करने के लिए आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन के साथ भी हाथ मिलाया।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) एवं लघु वन उत्पादों (माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस, एमएफपी) के लिए मूल्य श्रृंखला के विकास के जरिए लघु वन उत्पादों (माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस, एमएफपी) के विपणन की प्रक्रिया भी परिवर्तन के एक प्रेरक के रूप में उभरा और इसका आदिवासी पारिस्थितिकी तंत्र पर असाधारण प्रभाव पड़ा है। देश के 21 राज्यों में राज्य सरकार की एजेंसियों के सहयोग से ट्राईफेड द्वारा संकल्पित और कार्यान्वित इस योजना ने अप्रैल 2020 से आदिवासी अर्थव्यवस्था में सीधे 3000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है। मई 2020 में सरकारी प्रोत्साहन की मदद, जिसमें लघु वन उत्पादों (एमएफपी) के मूल्य 90 प्रतिशत तक बढ़ाये गये और एमएफपी की सूची में 23 नयी वस्तुएं शामिल की गयीं, देने वाले जनजातीय मामलों के मंत्रालय के इस कार्यक्रम, जिसे 2005 के वन अधिकार अधिनियम से शक्ति प्राप्त होती है, का उद्देश्य वन उपजों के जनजातीय संग्राहकों को उचित पारिश्रमिक एवं मूल्य प्रदान करना है। यह मूल्य बिचौलियों द्वारा उन्हें उपलब्ध करायी जाने वाली कीमत से लगभग तीन गुणा से अधिक होगी और वह इस कठिन समय में उनकी आय को बढ़ाने में सहायक होगी।

देश के 16 राज्यों में एमएफपी योजना के लिए एमएसपी के तहत एमएफपी की चल रही खरीद की प्रक्रिया ने 1000 करोड़ रुपये की खरीद का एक उच्चस्तरीय कीर्तिमान बनाया हैऔर एमएसपी से इतर व्यापार के जरिए 2000 करोड़ रुपये की कमाई की है।

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राज्यों में, छत्तीसगढ़ 105.96 करोड़ रुपये की लागत की 46654 मीट्रिक टन लघु वन उपज की खरीद करके अग्रणी रहा। उसके बाद ओडिशा एवं तेलंगाना ने क्रमश: 30.01 करोड़ रुपये की लागत की 14188 मीट्रिक टन एमएफपी और 2.35 करोड़ रुपये की लागत की 5323 मीट्रिक टन एमएफपी की खरीद की।

वन धन विकास केंद्र / जनजातीय स्टार्ट-अप भी इसी योजना का एक घटक है, जो एमएसपी को खूबसूरती से आगे बढ़ाता है क्योंकि यह जनजातीय संग्राहकों, वनवासियों और घर में रहने वाले जनजातीय कलाकारों के लिए रोजगार सृजन का एक स्रोत बन गया है। 18500 स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में फैले 1205 जनजातीय उद्यमों को 22 राज्यों में 3.6 लाख जनजातीय संग्राहकोंएवं 18000 स्वयं सहायता समूहों को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। इस कार्यक्रम की खूबसूरती यह है कि यह सुनिश्चित करता है कि इन मूल्य वर्धित उत्पादों की बिक्री से प्राप्त आय सीधे आदिवासियों के पास जाए। ये मूल्य-वर्धित उत्पाद बड़े पैमाने पर इन जनजातीय उद्यमों द्वारा प्रदान किये गये पैकेजिंग और विपणन से लाभान्वित होते हैं। मणिपुर एवं नागालैंड जैसे राज्य इसके बेहतरीन उदाहरण के रूप में उभरे हैं जहां ऐसे स्टार्ट-अप मजबूती पा चुके हैं।

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वन उपज के मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण के लिए मणिपुर राज्य में कुल 77 वन धन केंद्र स्थापित किए गए हैं। इन वन धन केंद्रों ने सितंबर 2019 से लेकर अबतक 49.1 लाख रुपए की एमएफपी उत्पादों की बिक्री की है! इन केंद्रों द्वारा अपनाई गई अनुकरणीय खाद्य सुरक्षा एवं स्वच्छता मानक, आंवला जूस, इमली आंवला कैंडी और बेर जाम जैसे प्रसंस्करित उत्पादों की शानदार आकर्षक पैकेजिंग तथा इन उत्पादोंकी अभिनव ब्रांडिंग एवं विपणन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन उत्पादों की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए मणिपुर के एक जिले में मोबाइल वैन सेवा भी शुरू की गई है। ट्राइफेड अब अपनी गतिविधियों के अगले चरण में एमएफपी योजना के लिए एमएसपी के साथ वन धन योजना को एक साथ मिलाने की योजना बना रहा है। साथ मिलकर, ये दोनों पहल रोजगार, आय और उद्यमशीलता को बढ़ाते हुए आदिवासियों के लिए एक व्यापक विकास पैकेज प्रदान करेंगी।

पूरे देश में ऐसी व्यवस्थाएं एवं प्रक्रियाएं लागू की जा रही हैं ताकि एमएफपी की खरीद साल भर चलने वाली एक गतिविधि बन जाए और इसकी वर्तमान पहुंच 3000 करोड़ रूपए के मौजूदा स्तर से बढ़कर 6000 करोड़ रूपए से अधिक तक पहुंच जाए (और 25 लाख जनजातीय संग्राहक परिवारों को लाभान्वित किया जा सके)। उत्पादन में बढ़ोतरी को मजबूत करने एवं अतिरिक्त गतिविधियों के लिए तैयार करने के लिए, वित्तीय वर्ष 2020-21 में 9 लाख जनजातीय लाभार्थियों को शामिल कर 3000 वन धन विकास केंद्र (वीडीवीके) की स्थापना का लक्ष्य रखा जा रहा है।

44 वन धन विकास केन्द्रों, जो लगभग 14000 आदिवासियों को लाभान्वित करेंगे, की शुरुआत 14 जुलाई, 2020 की गई थी।

नामांकित जनजातीय कारीगरों को अधिक से अधिक अनुभव दिलाने और उनके हुनर एवं उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर लाने के लिए, ट्राइफेड जनजातीय कारीगरों को प्रशिक्षित करने के लिए रूमा देवी और रीना ढाका जैसे प्रसिद्ध डिजाइनरों के साथ सहयोग भी कर रहा है।

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अपने कार्यक्रम-द डिज़ाइनर एंड द म्यूज़, वर्तमान में न्यूज़ एक्स पर प्रसारित, में रीना ढाका साक्षात्कार की एक श्रृंखला के जरिए आदिवासी हस्तशिल्प और उत्पादों को बढ़ावा दे रही है। गौहर खान के साथ पहला साक्षात्कार 17 जुलाई, 2020 को प्रसारित किया गया था, जबकि दूसरा साक्षात्कार पूजा बत्रा के साथ 24 जुलाई, 2020 को प्रसारित हुआ था।

इन पहलों के सफल क्रियान्वयन और आने वाले कई नयी पहलों के साथ ट्राइफेड प्रभावित कारीगरों और संग्राहकों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करके देश भर में जनजातीय जीवन एवं आजीविका में पूर्ण परिवर्तन लाने की दिशा में काम कर रहा है।

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