25 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

समाज में युवाओं की भूमिका

सम्पादकीय

युवा हमारे परिवार के कुल दीपक, समाज के भावी कर्णधार एवं राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य हैं, नई पौघ, निर्माता एवं समाज की

आधार शीला हैं। अत: हमें बालकों को कु-पोषण, संक्रामक रोग, बुरी आदतों, कु-संस्कारों, कुसंगती, बुरे-व्यसन से बचाने के लिए पूर्ण जागरूक रहना होगा। उनके बौद्धिक विकास, सु-संसकारों एवं चरित्र निर्माण हेतु हमें पूर्ण सजगता बरतनी होगी। उनके उज्जवल भविष्य के निर्माण हेतु उन्हें शिक्षा दिलाने की परम् आवश्यकता है। उनके लिए हमें विद्यालय एंव सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित करने होगें। बालकों के शारीरिक गठन को सुदृढ बनाने हेतु व्यायाशाला एवं खेल मैदान का निर्माण करना होगा। उनके सुरूचि पूर्ण साधन उपलब्ध कराने होंगे, साथ ही उनके अन्दर समाज एवं राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत करनी होगी। उन्नतशील एवं प्रगतिशील समाज के एक मात्र उपकरण चरित्रवान एवं प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के युवा ही होते हैं, इनके आभाव में अन्य सुविधा-साधन होते हुए भी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति नही की जा सकती है| युवाओं के व्यक्तित्व में सुधार लाने, उनमें नेतृत्व के गुण विकसित करने एवं उनमें ज़िम्मेदार नागरिक के गुण और The role of youth in societyस्वयंसेवा की भावना उत्पन्न करने के उद्देश्य से हर माता-पिता को चाहिए कि वे लड़के-लड़कियों के चरित्र व कार्यों पर पूर्ण निगाह रखें और उन्हें पूर्णरूप से चरित्रवान व्यक्ति बनायें, साथ ही युवाओं को समाज एवं राष्ट्र के प्रति उन्हें अपनी जिम्मेदारी एवं कर्तव्यों का पूर्ण बोध करना होगा| यूवा शक्ति समाज की रीढ़ होती है, युवा समाज के लिए प्राण-वायु के समान होते हैं, साथ ही युवाशक्ति समाज के लिए भूत और भविष्य के सेतु होते हैं, वे समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक होते हैं। उनकी आखों में सपने देखने की ज्योति और शक्ति दोनों होती है। युवा वर्ग देश का भविष्य होने के साथ-साथ हमारे समाज के विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। महान कवियित्री महादेवी वर्मा ने युवाशक्ति के बारे वर्णन करते हुए, युवाओं में तीन गुणों का संगम माना है- “अतीत की उपलब्धियों, मान्यताओं तथा आस्थाओं का, वर्तमान की समस्याओं को सुलझाने के लिए उन्हें देखने का, समाज की भावनाओं और आकांक्षाओं के स्वप्न बुनकर उनको आंखों में बसाने का|” किसी भी देश में वहां की युवा शक्ति ही समाज के जीवन मूल्यों, सभ्यता, सांस्कृतिक विरासत का प्रचार-प्रसार एवं स्थायित्व प्रदान करती है, साथ ही युवा शक्ति ही एक सुसंस्कारित समाज का निर्माण करती है| इसलिए हर युवाशक्ति में एक आदर्श व्यक्तित्व, नेतृत्व क्षमता के गुण ज़िम्मेदार नागरिक के कर्तव्य और स्वयंसेवा की भावना होनी चाहिए, साथ ही युवाओं में सदैव राष्ट्र के प्रति प्रेम, प्रेरक विचारों से उदात भावनाएं, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक आधार, स्वाभिमान, त्याग तथा आत्मगौरव की भावनाएं होनी चाहिए क्योंकि आदर्श समाज निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है| युवा वर्ग समाज का भविष्य होने के साथ-साथ ही, वे समाज के विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा भी होते हैं, वे आदर्श समाज और उन्नत समाज के आवश्यक धुरी होते हैं| हमारे देश में लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है, वर्तमान दौर में हर युवाशक्ति को समाज के विकास में अपना योगदान देना होगा, न कि वे सिर्फ उसका एक हिस्सा बनकर रह जाएँ| आज हर युवाशक्ति को अपनी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उचित अवसर प्रदान कर, भारत को विश्वगुरु बनाने में सभी को सशक्त योगदान देना होगा| कठिन परिस्थितियों से जूझने का सामर्थ्य सिर्फ युवाओं में ही है, उलटे प्रवाह को उलटकर सीधा करने का साहस सिर्फ युवा ही कर सकता हैं इसलिए युवाशक्ति को हमेशा उचित दिशा की तरफ ही प्रेरित रहना चाहिए, जिससे कि खुद भी अनेक तरह की बुरी आदतों के भटकाव से बच सके, साथ ही हमारे समाज का विकास सफलतापूर्वक हो सके और हमारा भारतीय समाज प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त कर सके| यह संसार एक लम्बा-चौड़ा बिल्लौरी काँच का चमकदार दर्पण है, इसमें अपना चेहरा हुबहू दिखायी पड़ता है, जो व्यक्ति जैसा है एवं जैसा सोचता है, उसके लिए सृष्टि में वैसे ही तत्व निकलकर आगे आ जाते हैं, इसलिए हर युवाशक्ति को हमेशा आशावादी होना चाहिए क्योंकि आशावादी व्यक्ति कठिन से कठिन और असंभव से प्रतीत होने वाले कार्यों में जहाँ सफलता प्राप्त कर लेता है, वहीं निराशावादी मनोवृत्ति वाला व्यक्ति साधारण-सी समस्या और कठिनाइयों को पार नहीं कर पाता है| सदैव राष्ट्रीय गौरव की सुरक्षा के लिए युवाओं ने ही अपने कदम बढ़ाये हैं। संकट चाहे सीमाओं पर हो अथवा सामाजिक एवं राजनैतिक, इसके निवारण के लिए अपने देश के युवक-युवतियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आवश्यकता यही है कि अपने हृदय में समाज निर्माण की कसक उत्पन्न करें और अपनी बिखरी शक्तियों को एकत्रित करके समाज की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने में लगायें। भारतीय समाज की प्रगति ही अपनी प्रगति और उन्नति है। इस श्रेष्ठ विचार के आधार पर ही युवा शक्ति, संगठन शक्ति बनकर समाज को समृद्धि, उन्नति व प्रगति के मार्ग पर ले जा सकती है। एक बार फिर युवा हृदय से यह आशा की जा रही है कि वे अपनी मूर्छा, जड़ता, संकीर्ण स्वार्थ एवं अहमन्यता को त्यागकर समाज निर्माण के अभूतपूर्व साँस्कृतिक दिग्विजय अभियान में स्वयं को जोड़कर अपने समाज, राष्ट्र व विश्व के उज्ज्वल भविष्य को साकार करने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाएँ| समाज एवं राष्ट्र निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का होता है। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भी युवा शक्ति का सर्वाधिक योगदान रहा है। कलकत्ता विश्वविद्यालय से पास हुए प्रथम दो छात्रों में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय भी एक थे। परीक्षा पास करते ही वे सरकारी नौकरी में लग गये। एक बार उनकी भेंट स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई। स्वामी जी ने पूछा, “बंकिम तुम्हारा सर (झुका हुआ) क्यों है?” इस पर बंकिम ने उत्तर दिया- अंग्रेजों की चाकरी करने से। पर इसके साथ ही उन्हें जीवन की दिशा मिल गई और उनकी दुर्गेशनंदिनी से आनन्द मठ तक की सभी रचनाएं भारतीय युवकों में सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बन गर्इं और “वन्देमातरम्” भारतीय स्वतंत्रता का नाद, मूलमंत्र तथा प्रेरणा बिन्दु बन गया। इसी भांति सीधे ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत “इंडियन सिविल सर्विस” परीक्षा पास किये सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, अरविन्द घोष तथा सुभाष चन्द्र बोस जैसे युवाओं ने सरकारी नौकरी न करके राष्ट्र सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, जिन्हें लोग “सरेण्डर नॉट” कहते थे, ने अंग्रेजों के कानूनों का विरोध किया। अरविन्द घोष ने प्रारंभ में क्रांतिकारी तथा बाद में आध्यात्मिक मार्ग अपनाया। सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के द्वारा इस देश की स्वतंत्रता के लिए अथक प्रयास किया। वहीँ स्वामी विवेकानन्द ने अपनी युवा अवस्था में न केवल भारत को सशक्त राष्ट्र के रूप में अग्रसर तथा विकसित किया बल्कि भारत को विश्व के एक महान राष्ट्र होने की स्थिति में लाकर खड़ा किया। वे सही अर्थों में भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि थे। वे समाज सुधार तथा राजनीतिक पुनरुत्थान से पूर्व धार्मिक अभ्युत्थान को आवश्यक मानते थे। उन्होंने युवाओं में वीरता, साहस का भाव जगाते हुए दुर्बलता को पाप बतलाया। उन्होंने देश के युवाओं में आत्मविश्वास तथा स्वाभिमान का भाव जागृत किया। स्वामी रामतीर्थ ने देशभक्ति तथा राष्ट्रप्रेम की भावना जगाई। स्वामी श्रद्धानन्द ने प्रत्येक भारतीय युवा को अपने घर में भारत का मानचित्र लगाने तथा उससे नित्य प्रेरणा प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। इतिहास साक्षी है जब-जब बदलाव का दौर आया है, उसमें सबसे अधिक योगदान युवाओं का रहा है| समाज को विकास पथ पर ले जाने और उसकी चुनौतियों से लड़ने में युवाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है, इसलिए युवा बुरेमार्ग, कुसंगति, बुरी-आदतों में समय और अपने जीवन को व्यर्थ न गवाएं बल्कि समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें और उनका पूर्ण रूप से निर्वाहन करें|

satyam singh baghel

सत्यम सिंह बघेल
प्रकाशक मध्य उदय पत्रिका
ब्यूरो चीफ लखनऊ
उत्तर प्रदेश

Related posts

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More