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प्रीमियम दर को उचित स्‍तर पर लाने के लिए प्रयास करना होगा: श्री राधामोहन सिंह

देश-विदेश

नई दिल्ली: केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने आज भोपाल, मध्य प्रदेश में फसल बीमा पर आयोजित राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन को संबोधित किया। श्री सिंह ने इस अवसर पर कहा कि मौजूदा फसल बीमा कार्यक्रम के तहत किसानों की बढ़ती हुई प्रीमियम दर के मुद्दे की समीक्षा की जा रही है| हमें इस प्रीमियम दर को उचित स्‍तर पर लाने के लिए प्रयास करना होगा जो किसानों के लिए वहनीय हो। कृषि मंत्री जी के संबोधन का पूरा प्रारूप इस प्रकार है: “मैं फसल बीमा योजनाओं के जरिए फसल जोखिम प्रबंधन में सुधार करके किसानों को और अधिक सश्क्त करने के लिये कार्यनीतियों पर चर्चा एवं योजना बनाने के लिए आयोजित फसल बीमा पर राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन में भाग लेकर बहुत खुश हूं।

कृषि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार है। यह सकल घरेलू उत्‍पाद में 16 प्रतिशत का योगदान देती है, 52 प्रतिशत रोजगार देती है और 60 प्रतिशत से अधिक आबादी को आजीविका प्रदान करती है, राष्‍ट्र की सभी खाद्य एवं पोषाहारीय आवश्‍यकता के लिए उत्‍पादन करती है और कुछ मुख्‍य उद्योगों को कच्‍चा माल प्रदान करती है। मौसम की स्‍थितियों पर भारी निर्भरता और इसका लम्‍बा उत्‍पादन चक्र कृषि को जोखिम पूर्ण आर्थिक कार्यकलाप बनाते हैं। प्रौद्योगिकीय और आर्थिक प्रगति के बावजूद किसानों की स्‍थिति प्राकृतिक आपदाओं तथा पैदावार में उतार-चढ़ाव तथा साथ में कृषि उत्‍पाद एवं मूल्‍य में उतार चढाव के कारण जोखिम भरा एवं अस्‍थिर है।

यद्यपि किसान मानसून में अनिश्‍चितता के कारण फसल उत्‍पादन के जोखिमों को कम करने के लिए परम्‍परागत और उन्‍नत प्रौद्योगिकीय एवं संवर्धनात्‍मक पद्धतियों दोनों को ही अपना रहे हैं, तथापि फसल बीमा योजनाओं को, विभिन्‍न प्राकृतिक और किसानों के व्‍यक्‍तिक नियंत्रण से बाहर के मानव घटनाओं, से उत्‍पन्‍न उत्‍पादन आय के जोखिमों को प्रभावी समाधान के लिए महत्‍पूर्ण तंत्र के रूप में माना जाता है। जैसा कि आप जानते है सरकार ने प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को उनकी पैदावार के नुकसान के प्रति ऋणी किसानों को संरक्षण देने के लिए देश में वर्ष 1985 में “व्‍यापक फसल बीमा योजना’’ (सीसीआईएस) शुरू की थी। सीसीआईएस का कवरेज क्षेत्र सीमित था जिसे रबी 1999-2000 मौसम से राष्‍ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) से प्रतिस्‍थापित किया गया था। राष्‍ट्रीय कृषि बीमा योजना को कई वर्षों की तैयारी, अध्‍ययनों, नियोजन, प्रयोगों और परीक्षणों के बाद शुरू किया गया था। एनआईएस को प्राकृतिक गैर-निवार्य जोखिमों के कारण पैदावार नुकसान को कवर करने के लिए व्‍यापक साधन के रूप में माना गया था तथा इसमें ऋणी और गैर ऋणी दोनों किसानों, सभी खाद्य और तिलहन फसलों और वार्षिक बागवानी/वाणिज्‍यक फसलों के अधिक कवरेज की व्‍यवस्‍था की गई थी तथा जोखिम वचनबद्धता थ्रेसहोल्‍ड उपज के 150 प्रतिशत तक थी। प्रीमियम संरचना को तार्किक बनाने के लिये, वार्षिक बागवानी तथा वाणिज्‍यिक फसलों के लिये बीमांकिक दर पर लागू किया गया| उपर्युक्‍त सभी स्‍कीमों को बीमा की छोटी इकाई क्षेत्र- ग्राम पंचायत स्‍तर तक आर्दश रूप में कार्यान्‍वित किया जाना अपेक्षित है।

तथापि स्‍कीम के कार्यान्‍वयन में सामना की गई कुछ रूकावटों, विशेष रूप से प्रचालनात्‍मक थे, के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका| जिसमें फसल कटाई प्रयोगों (सीसीई) की अपेक्षित संख्‍या के संचालन के लिए अपर्याप्‍त आधार संरचना, राज्‍य द्धारा विलम्‍ब से उपज आंकडों को प्रस्‍तुत करने से स्‍वीकार्य दावों के निपटान में विलम्‍ब, राज्‍य सरकार के वित्‍तीय देयताओं की निर्मुक्‍ति में विलम्‍ब, छोटे तथा सीमान्‍त किसानों के संबंध में प्रीमियम राज सहायता चरणबद्ध तरीके से स्माप्त करना, बीमा के बड़े इकाई क्षेत्र, वित्‍तीय संस्‍थानों द्धारा सभी ऋणी किसानों को बीमा सुनिश्‍चित करने में कम रूचि, निम्‍न क्षतिपूर्ति दर, पर्याप्‍त रूप से क्षति पूर्ति हेतु अपर्याप्‍त गारंटीड उपज, बारहमासी बागवानी / वाणिज्‍यिक फसलों को कवर नहीं करना, उपचारित बुवाई तथा फसलोपरांत क्षति आदि के जोखिमों को कवर नहीं करना आदि शामिल हैं। जैसा कि उद्देश्य था, स्‍कीम को समय बद्ध तरीके से बीमाकिंक व्‍यवस्‍था में लागू नहीं किया जा सका| केन्‍द्र तथा राज्‍य दोनों सरकारों को प्रीमियम राजसहायता, दावे, प्रशासनिक व्‍यय, बैंक सेवा शुल्‍क प्रचार खर्चे आदि के संबंध में वित्‍तीय देयताओं के कारण अपने बजट में कठिनाइयों का सामना करना पडता है।

इस बीच, सरकार ने 10-12 वर्षो के दौरान एफआईआईएस(FIIS) नामक एकल साधन द्वारा कृषि उपज एवं मूल्‍य जोखिम का बीमा, डब्‍ल्‍यूबीसीआईएस(WBCIS) के तहत मौसम पैरामीटर के आधार पर क्षतिपूर्ति, निजी बीमा कम्‍पनियों को सूची बद्ध कर प्रतिस्‍पर्धा बढाना, मौसम तथा उपज दोनों ट्रिगर के आधार पर क्षतिपूर्ति का भुगतान, स्‍थानीय आपदाओं के कारण हुए नुकसान का क्षतिपूर्ति आदि, की शुरूआत की।

उपर्युक्त पायलट के मूल्‍यांकन और फसल बीमा योजनाओं के कार्यान्‍वयन से प्राप्त अनुभवों, पणधारियों, राज्‍य सरकारों तथा मूल्‍यांकक अभिकरणों के विचारों के आधार पर बहुत से सुधार किए गए और रबी 2013-14 से ‘’राष्‍ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम (एनसीआईपी)’’ के नाम से योजना का पुनर्गठन किया गया। तथापि अभी तक कार्यान्‍वित फसल बीमा योजनाओं की उपलब्‍धियों के बारे में राज्‍य सरकारों सहित अन्य पणधारियों के अलग-अलग राय है और यह भी सही है कि एकल फसल बीमा उपकरण द्वारा सभी क्षेत्रों एवं किसानों तथा सभी प्रकार की फसलों की रक्षा नहीं कर सकते। तदनुसार भारत सरकार ने किसानों को फसल उपज नुकसान की क्षतिपूर्ति की गणना के लिए विभिन्‍न प्रणालियों का प्रयोग करते हुए किसानों को अलग-अलग क्षतिपूर्ति देने हेतु विविध घटकों के साथ ‘’राष्‍ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम (एनसीआईपी)’’ को शुरु किया है। तथापि कुछ राज्‍यों ने अपने यहां एमएनएआईएस को अपनाया है और कुछ राज्‍यों ने इसके कार्यान्‍वयन पर अपनी अनिच्छा व्यक्त की इसलिए राज्‍यों को उनकी इच्‍छानुसार एमएनएआईएस अथवा एनएआईएस के कार्यान्‍वयन की अनुमति दी गई है।

हमने मंत्रालय में बीमा उत्‍पाद पर और अधिक सुधार के लिए राज्‍यों एवं अन्य सभी पणधारियों के साथ विचार विमर्श शुरु किया है जो किसानों को न केवल फसल हानि के विरूद्ध आश्‍वस्त करेगा बल्‍कि उनकी आय को भी सुरक्षा प्रदान करेगा। विभिन्‍न फसल योजनाओं के कार्यान्‍वयन पर बहुत से अन्‍य मुद्दे हैं जिन पर वर्तमान में विचार विमर्श किया जा रहा है। हम लोगों को सभी पणधारियों के लिए स्‍वीकार्य बीमा योजना के प्रारूप को विकसित करने के लिए आवश्‍यक इनपुट प्राप्‍त करने में यह सेमिनार लाभप्रद रहेगा। मुझे विश्‍वास है कि सम्‍मेलन में हुए विचार विमर्श, नई फसल बीमा योजना को तैयार करने में सहायक होगा जो प्रभावी रुप से किसानों के हितों की रक्षा करने में सक्षम हो ।

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