नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 30 सितंबर, 2015 को मध्यान्ह भोजन (मिड डे मील) नियम 2015 अधिसूचित कर दिए। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 (एनएफएसए, 2013) में मध्यान्ह भोजन योजना समेत कल्याण योजनाओं से जुड़े प्रावधान शामिल हैं।
- कानून के प्रावधानों के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राज्यों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों से विचार-विमर्श के बाद मध्यान्ह भोजन नियम तय किए हैं। इन्हें मध्यान्ह भोजन नियम 2015 के बतौर जाना जाएगा और यह भारत सरकार के राजपत्र में अधिसूचित होने के दिन से प्रभावी हो जाएगा। नियम के मुताबिक अगर स्कूल ने किसी कारणवश मध्यान्ह भोजन के लिए उपलब्ध फंड का पूरा इस्तेमाल कर लिया है तो स्कूलों के लिए उपलब्ध अन्य फंड का अस्थायी रूप से इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाती है। इस नियम के तहत अगर किसी कारणवश भोजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है तो लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जायेगा। साथ ही मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में भोजन की गुणवत्ता की अचानक मासिक जांच भी होगी। इसके अलावा नियमों के मुताबिक अगर एक महीने में तीन लगातार स्कूली दिन या पांच दिन मध्यान्ह भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो संबंधित राज्य व्यक्ति या एजेंसी पर जिम्मेदारी निर्धारित करेंगे। इन नियमों और इनके पालन से राज्य स्कूलों में मध्यान्ह भोजन को बेहतर ढंग से सुनिश्चित कर सकेंगे साथ ही इसकी गुणवत्ता भी बढ़ा सकेंगे। मध्यान्ह भोजन से जुड़े प्रावधान इस प्रकार हैं-
- बच्चों का अधिकार- छह से चौदह साल की उम्र के कक्षा एक से आठवीं तक में पढ़ने वाले बच्चों को गर्म और पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जायेगा। नियमों के मुताबिक प्राइमरी कक्षा के बच्चों को 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन युक्त भोजन दिया जायेगा। उच्च प्राइमरी कक्षा के बच्चों को 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन वाला भोजन दिया जायेगा। स्कूलों में छुट्टी के अलावा यह भोजन उन्हें हर दिन मुफ्त में दिया जायेगा। भोजन सिर्फ स्कूलों में ही दिया जायेगा।
- योजना का कार्यान्वयन- हर स्कूल में खाना बनाने की सुविधा होगी। यहां साफ सुथरे तरीके से खाना बनाने की व्यवस्था होगी। केंद्रीय सरकार द्वारा जारी निर्देशों के मुताबिक जहां जरूरत हो वहां शहरी इलाकों के स्कूल भोजन तैयार करने में केंद्रीयकृत रसोई घर का इस्तेमाल कर सकते हैं। भोजन सिर्फ संबंधित स्कूलों में ही परोसा जायेगा।
- स्कूल प्रबंधन कमेटी का दायित्व– नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के मुताबिक स्कूल प्रबंधन कमेटी को मध्यान्ह भोजन योजना के कार्यान्वयन की निगरानी का अधिकार होगा। कमेटी बच्चों को दिये जाने वाले भोजन की गुणवत्ता, साफ-सफाई, भोजन तैयार करने की जगह की स्वच्छता और साफ-सुथरे वातावरण को सुनिश्चित करेगी। यह कमेटी देखेगी कि भोजन बनाने और बांटने में उपरोक्त मानकों का पालन हो रहा है या नहीं।
- विद्यालय कोष का उपयोग– अगर स्कूलों में भोजन बनाने के लिए अन्न और पकाने के लिए फंड उपलब्ध न हो तो मध्यान्ह भोजन के लिए किसी अन्य फंड के इस्तेमाल की निगरानी का अधिकार स्कूल के प्रधानाचार्य या प्रधानाचार्या के पास होगा। मध्यान्ह भोजन के लिए राशि प्राप्त होने पर अन्य फंड से इस्तेमाल की गई राशि की भरपाई तुरंत कर दी जायेगी।
- पोषक मानक सुनिश्चित करने के लिए मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं द्वारा भोजन की जांच – सरकार के खाद्य अनुसंधान प्रयोगशालाएं बच्चों को दिये जाने वाले पकाये हुए गर्म भोजन की जांच करेंगी और प्रमाणित करेंगी। भोजन में पोषण के मानक और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है।
- भोजन में पोषक तत्व हैं या नहीं यह सुनिश्चित करने के लिए राज्यों के खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) विभाग इसके नमूने ले सकते हैं। ये नमूने स्कूल या केंद्रीयकृत रसोईघरों से अचानक इक्ट्ठे किये जा सकते हैं और इन्हें जांच के लिए मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में भेजा जा सकता है।
- खाद्य सुरक्षा भत्ता– अगर स्कूलों में या किसी स्कूल में खाद्यान्न और पकाने की व्यवस्था मसलन ईंधन या रसोईये के लिए पैसे न हों तो सरकार भोजन देने के महीने के अगले महीने की 15 तारीख को निम्नलिखित तरीके से खाद्य सुरक्षा भत्ता मुहैया करायेगी।
- बच्चों को दिये जाने वाले भोजन की मात्रा के मुताबिक
- मौजूदा राज्य में रसोई तैयार करने की लागत के मुताबिक
- अगर केंद्रीयकृत रसोईघर से भोजन की सप्लाई नहीं होती है तो खाद्य सुरक्षा भत्ता केंद्रीयकृत रसोईघर से ऊपर बताये गये तरीके से ही मिलेगा
- अगर बच्चे ने भोजन नहीं लिया या किसी कारणवश वो भोजन नहीं लेता है तो राज्य सरकार या केंद्रीयकृत रसोईघर से उसे कोई भत्ता नहीं मिलेगा।
- खाद्यान्न या भोजन की गुणवत्ता के संबंध में अगर कोई सवाल पैदा होता है तो राज्य सरकार पर कोई दावा नहीं बन सकता।
- अगर महीने में लगातार तीन स्कूली दिन या पांच दिन मध्यान्ह भोजन नहीं मिलता तो व्यक्ति या एजेंसी पर जिम्मेदारी निर्धारित करने के लिए राज्य सरकार नियमों के मुताबिक कार्यवाही करेगी।
- जहां भी इस मामले में केंद्र सरकार की कोई एजेंसी शामिल होगी वहां राज्य सरकार मामले को केंद्र सरकार के पास ले जायेगी। केंद्र सरकार इसे एक महीने के अंदर सुलझायेगी।