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श्री राजेन्द्र चैधरी का अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान लखनऊ में ‘‘बौद्ध धर्म एवं समाजवाद’’ विषय पर संबोधन

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: मै मानता हॅू कि महात्मा बुद्ध का रास्ता उनकी शिक्षा, दर्शन और धर्म मानव समाज के संकट को दूर करने के लिए 2560 वर्ष पहले दुनिया को संदेश केे तौर पर बताया गया था। वर्षो से संकट दूर होना तो दूर की बात है दुनिया और भारत में बुद्ध के विचार खुद ही संकट में फंस गये हैं। चाहे जितना उपदेश बुद्ध धर्म के जरिये फैलाया जाता हो उनके अनुयायी, उनके मानने वाले हो, चाहे दुनिया के दूसरे हिस्सों या भारत में इन सबका आचरण, बुद्ध दर्शन के ठीक विपरीत चलता है। यही सच्चाई है कि जो विचार मानव के संकट को दूर करने के लिए महात्मा बुद्ध ने तपस्या के बाद समाज का ध्यान करके अपने शरीर को गलाया गवांया और कोशिश यह की कि जो संकट मानव के सामने है, उन्हें दूर किया जा सके। बुद्ध के समय में, जब वे सत्य की बात बोलते हैं तो इसका यह भी अर्थ होगा कि ढाई हजार वर्ष पहले भी असत्य रहा होगा, हिंसा तो थी, जब वे अपरिग्रह की बात बोलते है, यानी अपनी जरूरत से ज्यादा संपत्ति का संचय न हो तो इसका अर्थ यह भी है कि कुछ लोगों के पास बहुत ज्यादा संपत्ति रही होगी। कुछ के पास बहुत धन रहा होगा, बाकी लोग घोर दरिद्रता में रहे होगे। जब महात्मा बुद्ध करूणा की बात बोलते हैं तो इसका आशय है कि लोग ढाई हजार वर्ष पूर्व करूणामय प्रवृत्ति से दूर भागते रहे होंगे या उनमें करूणा नहीं होगी। तब भी अत्याचार होते होंगे, तब भी शोषण होता होगा। तब भी समाज में गहरी खाई रही होगी। सामाजिक विषमता की, आर्थिक विषमता की। मानव-मानव के बीच में ढाई हजार वर्ष के पहले भी ऐसी स्थिति बनी हुई थी और इतनी लम्बी मानव यात्रा जिसे हम मानव विकास की यात्रा मानते हैं के बाद भी आज भी हम वहीं खड़े हैं या शायद उससे भी और दूर और बहुत दूर पहुँच गए हैं। दुनिया में बहुत सी चीजें उस वक्त नही थी जो आज हैं।
धर्म का मोटा अर्थ में मानता हूँ कि मानव कल्याण के लिए इसकी शुरुआत हुई होगी, लेकिन धर्म को भी हमारे कृत्यों ने हमारे कुकृत्यांें ने अधर्म में बदला है यह एक डरावना सत्य है और खतरनाक भी। कितना बड़ा धोखा हो सकता है। मानव जगत में कि हम एक दूसरे के विरुद्ध खडे है। मै न सिर्फ आणविक हथियारों की बात करता हूँ बल्कि नफरत से भरा हुआ समाज और संवेदनशील समाज का भी । उसका कोई तालमेल कैसे हो सकता है। महात्मा बुद्ध के रास्ते से उनके विचार पर चलनंे की हमने बहुत कोशिश किया। मानव समाज में उनकी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार हुआ। जो लोग मानते है कि बुद्ध धर्म का बड़ा विस्तार हुआ और भारत से बाहर दूसरे देशांें में भी लोग उनके अनुयायी हुए तो क्या ये माना जा सकता है कि वे बुद्ध के रास्ते पर चलते हैं? क्या वहाँ गैर बराबरी नही है? क्या वहाँ शोषण नही है? क्या वहाँ सामाजिक न्याय की व्यवस्था है? और इससे जो लड़ाई उत्पन्न हो रही है उसमें संघर्ष विचार का संघर्ष में बदल दें। धर्म का संघर्ष पैदा कर दे और नफरत वैमनश्य की हद तक धर्म का इस्तेमाल कर लें। लोग कोशिश करते हैं लेकिन असली और सत्य बात यह है कि हमारी जो वैचारिक प्रतिबद्धता है वों हमारी दिशा तय करती है। हमारी नैतिकता तय करती है। हमारा ईमान तय करती है। हम किस रास्ते पर जाना चाहते है, क्या हम स्वयं को धोखा दे रहे है। आत्मवंचना के शिकार है। हमारे साथ जो रहते है जिनके बीच में में जीवन यापन करते है। क्या वे एक दूसरे को धोखा देते हैं? समाज और कुछ नही बल्कि व्यक्तियों का एक समूह है जिससे समाज की सरंचना होती है। दुनिया में बहुत से विचार हैं बहुत से धर्म हैं बहुत से पंथ हैं बहुत से रास्ते हैं अपनी सुविधा और समझ से उनको लोग अपनाते हैं उन पर चलने की कोशिश करते हैं लेकिन जो रास्ता जो विचार जो तरीका जीवन को सार्थक बना सकता हो या जिस विचार के कथन में आचरण में कोई अन्तर न हो उसकी कोशिश भी लगातार होती रहती है, चाहे कुछ लोगों के जरिए हो रही हो।
मै सोचता हूँ कि इंसान या मानव क्यूँ पैदा हुआ। यह महात्मा बुद्ध के जरिए हम समझने की कोशिश करें तो मानव की उत्पत्ति दुःख का कारण है मानव का जाना दुःख का कारण है और इस बीच की जो यात्रा है तो वह भी दुखो से संकटों से भरी हुई है। मानव का जीवन ही निरर्थक हो जाता है पिछले दिनों मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी के साथ बोध गया के एक कार्यक्रम में भी पहुँचा। कुशीनगर भी जाना हुआ और अभी मुख्यमंत्री जी के साथ कपिलवस्तु में राजप्रसाद और बौद्ध स्तूप देखने का अवसर मिला। श्री अखिलेश यादव द्वारा वहाँ सिद्धार्थ विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है। जो इसी स़त्र से शुरु भी हो रही है। सारनाथ भी मुझे जाने का अवसर मिला है। अभी जो सदी है, इक्कीसवीं सदी यह सबसे ज्यादा मानव के लिए संकट की सदी है। दुनिया में संकट है वह मानव निर्मित है। हमने कुत्सित विचारों से अपने दिमाग में एंेसी व्यवस्था को पैदा किया है कि आदमी और संकट में चला जायेगा और सिर्फ आदमी ही नही पूरी प्रकृति ही संकटग्रस्त हो जाएगी। यह है हमारे विकास यात्रा की इक्कीसवीं सदी का मोटा-मोटा लेखा जोखा। आज बहुत सी बाते होती हैं। दुनिया में एक दूसरे को डराने के लिए एक दूसरे के सामने अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए आणविक हथियारों की होड़ लगी हुई है लेकिन यह कुछ लोगों की कोशिश है और यह कोशिश सफल नही हो सकती और अभी जब मै कह रहा हूँ तो लगभग ढाई हजार वर्षो से कोशिश हमारी सफल नही हो सकी या हम पूरे तौर पर सफल नही हो सके और विफल हुए इसलिए मैने कहा कि महात्मा बुद्ध का विचार या रास्ता मानव के संकट को दूर करने के लिए है जबकि महात्मा बुद्ध का विचार खुद ही संकट में है हमने उस विचार को संकट में फँसाया है।
हमारा जो समाज है जिसमें हम रहते है जीवन व्यतीत करते है, वह कैसा समाज है हमारी जो सामाजिक भूमिका है हम अपने परिवार में भी अंधविश्वास को दूर नही कर सकते। हम अपने परिवारों में भी कर्मकांड से मुक्ति का रास्ता लाख कोशिश के बाद भी नही निकल पा रहा है जबकि महात्मा बुद्ध का रास्ता जो बड़ा वैज्ञानिक हो सकता है। समाजवादी भी एक विचार है भारत में भी और अलग-अलग देशों में भी है जहाँ गौतम बुद्ध के विचार को मानते ही नही और यह संयोग नही है कि समाजवाद का रास्ता और गौतम बुद्ध का रास्ता एक सा है, बल्कि यह स्वाभाविक स्थिति है। चँूकि मानव का जो स्वभाव है वह प्राकृतिक तौर पर न्याय चाहता है। सम्मान के साथ जीवन चाहता है। विषमता से डरता है इसलिए समानता चाहता है। असत्य के रास्ते पर जाना उसे पाप लगता है। इसीलिए सत्य चाहता है। महात्मा बुद्ध का दर्शन हमारे पास है, विचार हमारे पास है, रास्ता हमारे पास है किन्तु जो अन्तर्विरोध है, यह बहुत खतरनाक है, इसीलिए मै कहता हूँ कि हम एक डरावने समाज में रह रहे हैं जहाँ एक दूसरे के ऊपर भरोसा नही है और एक ऐसा समाज भी निर्मित होता जा रहा है कि समाज को अपनी शर्तो के आधार पर या स्वाभाविक स्थिति से बाहर कहीं तक भी हाँका जा सकता है और यह तब जब महात्मा बुद्ध का विचार हमारे पास है।
सामाजिक व्यवस्था का जो हाल है वो किसी से छिपा नही है। कभी भी किसी उन्माद के शिकार हो सकते हैं विचार के स्तर पर अगर हम तैयार नही हुए तो आज जो व्यक्तियों का समूह है उसे भीड़तंत्र में बदला जा सकता है। ये खतरा मानव के अस्तित्व के सामने भी है कि हम बदलना नही चाहते। हम बदलते नही है। अपने स्वभाव के विपरीत मानव के कल्याण के विपरीत ऐसी प्रवृत्ति के हम शिकार हैं। जब तक ये चेतना पैदा नही होगी। जब तक ये परिवर्तन नही होगा। जब तक मन परिवर्तन नही होगा वैचारिक तौर पर तब तक हम महात्मा बुद्ध की तपस्या को निरर्थक ही कर देंगे और आज तक कर ही रहे हैं। ढाई हजार साल वर्षो से हम यही कर रहे हैं इसलिए मै इतना ही इस अवसर पर कहना चाहूँगा कि हम समाजवादी लोग हैं। समाजवादी कार्यकर्ता है। हम पूरी निष्ठा से पूरी प्रतिबद्धता से पूरे तौर पर संकल्पित होकर महात्मा बुद्ध के रास्ते पर उनके विचारों के रास्ते पर काम करने की कोशिश करते हैं।

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