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Teachers play an important role in nation building: VP Venkaiah Naidu

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New Delhi: The Vice President of India, Shri M. Venkaiah Naidu has said that the role and contribution of a teacher in the formation of a nation is immense and praiseworthy. He was addressing the gathering after presenting the Malti Gyan Peeth Puraskar to 15 teachers from Government Schools from Punjab, who have shown excellence in teaching, in New Delhi today. The Union Minister for Women and Child Development, Smt. Maneka Sanjay Gandhi, the Minister of State for Rural Development, Shri Ram Kripal Yadav and other dignitaries were present on the occasion.

The Vice President said that Teachers have been given respect and honour in our culture. He further said that the word ‘guru’ means ‘source of light’ and the duty of the teacher is not only to educate the students, but also to make them enriched. They not only have to fill the word knowledge in the minds of students, but also to teach the ethics, commitment, selflessness and even the lesson of awareness, he added.

The Vice President said that in today’s changing environment, when education is being more commercialized, it is necessary for teachers to give more emphasis in the formation of their character besides providing education to the students. He quoted Mahatma Gandhi as saying “If there is no good character from education, then there is no value for education for such knowledge.

The Vice President said that usage of mother tongue is very important in the education. He further said that mother tongue is the most accessible and simple language for any person. In mother tongue we can express our views more easily and more affectively, he added.

The Vice President said that the downfall in female literacy rate has a direct impact on India’s growth, because it affects every area of development. If women remain uneducated, then it will have a direct and negative impact on the efforts made to control the country’s growing population, he added.

Following is the text of Vice President’s address in Hindi:

“मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है कि शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता को प्रोत्साहित करने के लिए मोहिन्दर सिंहसिंघल एजुकेशन एंड रिसर्च सोसाइटी सराहनीय कार्य कर रही है। इसी क्रम में विविध विषयों में पारंगत पंजाब केसरकारी स्कूलों में कार्यरत 15 शिक्षकों को मालती ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। मालती ज्ञानपीठपुरस्कार  समारोह के सुअवसर पर आप सभी के बीच उपस्थित होकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है।

मैं श्री मनोज सिंघल, मोहिंदर सिंह सिंघल एजुकेशन एंड रिसर्च सोसायटी के अध्यक्ष को बधाई देता हूँ जिन्होंने इसपुरस्कार को अपनी माताजी के नाम पर स्थापित कर पंजाब के ग्रामीण इलाकों में शिक्षण कार्य को प्रोत्साहित किया।इसके साथ-साथ मैं पंजाब सरकार के प्रयासों की भी सराहना करना चाहूंगा जो अपनी सुनियोजित चयन प्रक्रिया सेइन सुयोग्य अध्यापकों का चयन करती है।

एक अग्रणी उद्योगपति होने के नाते आप समाज के प्रति जिस प्रकार से अपना कर्तव्य  निभा रहे हैं, दूसरे लोगों केलिए भी प्रेरणादायक है। मैं समझता हूँ कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार को गुणवत्ता के साथ आगे बढ़ाने के लिए हरनागरिक को प्रयत्नशील रहना चाहिए क्योंकि हर पहल शिक्षा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होती है।

अध्यापकों को सम्मान सवरूप एक लाख की राशि व प्रशस्ति पत्र तथा एक  robe of honour दिया जा रहा है। इसप्रकार के सम्मान से नि:संदेह ही सरकारी स्कूल के अध्यापक प्रोत्साहित होते हैं तथा  शिक्षा के क्षेत्र में  और अधिककार्य करने के लिए न सिर्फ स्वयं प्रेरित होते हैं, बल्कि अन्य शिक्षकों के लिए भी प्रेरणा बनते हैं। अपने-अपने विषय मेंपारंगत जिन शिक्षकों को मालती ज्ञानपीठ पुरसकार से सम्मानित किया जा रहा है उनको मेरी हार्दिक बधाई एवंशुभकामनाएँ।

यह गर्व की बात है कि मालती ज्ञानपीठ पुरस्कार जिसे कि वर्ष 2013 में स्थापित किया गया, उससे अब तक शिक्षा केक्षेत्र में  सराहनीय योगदान देने के लिए पंजाब राज्य के 80 अध्यापकों  को सम्मानित किया जा चुका है।

श्री मालती मोहिन्दर सिंघल एक शिक्षाविद् हैं और कन्याओं की शिक्षा की प्रबल पक्षधर हैं। उनका बालिकाओं एवंमहिलाओं को शिक्षित,  स्वावलंबी एवं सशक्त बनाने की दिशा में किया गया महत्वपूर्ण योगदान सर्वविदित है। उनकेद्वारा उठाया गया यह कदम निश्चय ही सराहनीय, अभिनन्दनीय तथा अनुकरणीय है। यह कार्यक्रम माताजी केजन्म-दिवस को सार्थकता एवं गरिमा प्रदान करता है। पूज्य माताजी के 97वें जन्मदिवस के शुभ अवसर पर इनशिक्षकों को सम्मानित करना मेरे लिए निसन्देह सौभाग्य की बात है।

मित्रों, हमारी संस्कृति में शिक्षकों को आदर और सम्मान दिया गया है।  ‘गुरु’ शब्द का अर्थ ही ‘प्रकाश का स्रोत’ है। एकराष्ट्र को बनाने में शिक्षक का जितना सहयोग एवं योगदान है, उतना शायद किसी और का हो ही नहीं सकता। एकराष्ट्र को उन्नति के चरम शिखर पर ले जाते हैं उसके राजनेता, डॉक्टर, इंजीनियर, उद्योगपति, लेखक, अभिनेता,खिलाड़ी आदि और परोक्ष रूप से इन सबको बनाने वाला एक शिक्षक ही होता है।

शिक्षक देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आप राष्ट्र की भावी पीढ़ी के निर्माण का महान कार्य करते हैं।शिक्षक का कर्तव्य छात्रों को केवल शिक्षित करना ही नहीं है, अपितु उन्हें संस्कारी भी बनाना है। उनके अंदर केवलशब्द ज्ञान ही नहीं भरना है बल्कि उसे नैतिकता, कर्तव्य परायणता, सजगता का पाठ भी पढ़ाना अत्यंत आवश्यकहोता है। । अच्छे शिक्षक के इन्हीं गुणों की प्रशंसा करते हुए भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापतिडॉ. एस. राधाकृष्णन, ने कहा था, “देश की सर्वोत्तम प्रतिभाओं को शिक्षक होना चाहिए।”

आज के बदलते परिवेश में जब शिक्षा का अधिक व्यवसायीकरण हो रहा है, ऐसी स्थिति में  यह आवश्यक है किशिक्षकों को विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने के अलावा उनके चरित्र निर्माण में भी अधिक बल देना होगा। महात्मागांधी ने भी कहा है, “यदि शिक्षा से अच्छे चरित्र का निर्माण नहीं हो पाता है तो ऐसी अक्षर ज्ञान कराने वाली शिक्षा काकोई मूल्य नहीं है।

‘वास्तविक शिक्षा’ का उद्देश्य छात्रों का समग्र विकास होना चाहिए जिसमें रोजगार पाने तथा स्वरोजगार उत्पन्न करनेके अलावा, शैक्षिक उत्कृष्टता, कौशल विकास, शारीरिक क्षमता और चरित्र निर्माण पर समान रूप से जोर देनाचाहिए।

मित्रों, आज के युग को तकनीकी युग माना गया है जिससे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी, विशेष रूप सेसूचना तकनीक का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है। कई शिक्षण संस्थानों में भी इसका प्रभावी तरीके से इस्तेमाल होरहा है। इसके अधिक प्रयोग को हमें बढ़ावा देना चाहिए ताकि हम अपनी ज्ञान अर्जन प्रक्रिया को बेहतर बना सकें।

मित्रों, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में शिक्षा के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ है जिसके कारण देश ने कई क्षेत्रों में प्रगतिकी है। आज देश के 95 प्रतिशत बच्चे स्कूल जाते हैं |साक्षरता दर में भी निरंतर सुधार हुआ है जो 1947 में केवल 18प्रतिशत थी, आज वह बढ़कर करीब 80 प्रतिशत हो गई है। जहाँ शिक्षा के क्षेत्र में ये उपलब्धियाँ हमारे लिए गर्व कीबात है, वहीं हमारा उद्देश्य यह भी रहना चाहिए कि देश में 100 प्रतिशत साक्षरता हो और प्रत्येक बच्चा स्कूल जा सके।

मित्रों, आज शिक्षा के क्षेत्र में हमारे सामने कई चुनौतियाँ हैं, जिसमें मुख्य रूप से शिक्षा और शिक्षण में गुणवत्ता कीकमी, विद्यार्थियों के सीखने के स्तर में गिरावट, छात्रों द्वारा बीच में शिक्षा छोड़ देना, इत्यादि। इसकी जिम्मेदारीकेवल शिक्षकों की ही नहीं है, अपितु माता-पिता, सामाजिक संगठन, नागरिक, और लोक प्रतिनिधि आदि सबकी एकसामूहिक जिम्मेदारी है कि हम इन चुनौतियों का किस तरह से सफलतापूर्वक समाधान कर सकते हैं। आप जैसीशिक्षण संस्थाएं इस समस्या का सकारात्मक हल निकाल सकते हैं।

मित्रों, आज हम शिक्षा की बात कर रहे हैं तो मुझे मातृभाषा की महत्ता याद आ रही है। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति केलिए सबसे सुलभ और सरल भाषा होती है। मातृभाषा में हम अपने विचारों को अधिक आसानी और स्वाभाविक तरीकेसे अभिव्यक्त कर सकते हैं। इसलिए मैं हर मंच से यह कहता हूँ कि मातृभाषा का प्रयोग अन्य भाषाओं के साथ-साथनिरंतर होना चाहिए ताकि हम ऐसी पीढ़ी का निर्माण कर सकें जो अपनी मातृभाषा में सोचती हो, बोलती हो औरलिखती हो। गांधी जी ने भी शिक्षा को समाज के सांस्कृतिक परिवेश से जोड़ने पर बल दिया। भाषा और भाव भीसंस्कृति से जुड़े हैं। अत: आवश्यक है कि शिक्षा को सुगम बनाने के लिए मातृभाषा को प्रोत्साहित किया जाए। अन्यभाषाओं को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा सकता है, परंतु प्रारंभिक शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा अधिकप्रभावी होगी।

हमारी इस युवा पीढ़ी का आधा हिस्सा हमारी बेटियाँ हैं। यह देखा गया है कि अगर उनको सही शिक्षा एवं अवसर प्रदानकिए जाएं तो उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है और देश का नाम रौशन किया है। बदलते भारतकी पहचान बनकर उभर रही हमारी बेटियाँ राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। अपनी बेटियोंको शिक्षा और वह भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कराना हमारे समाज की बड़ी चुनौतियों में से एक है। इस दिशा मेंसरकार द्वारा लड़कियों को बचाने तथा शिक्षित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं। इनमें से मुख्य रूपसे “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” अभियान है। इस अभियान से समाज का बेटियों और महिलाओं के प्रति दृष्टिकोणबदला है और एक अनुकूल वातावरण बना है।

महिला साक्षारता दर में कमी का सीधा अर्थ है भारत का धीमा विकास, क्योंकि यह विकास के हर क्षेत्र को प्रभावितकरती है। अगर महिलाएं अशिक्षित रहेगी तो देश की बढ़ती जनसंख्या नियंत्रण के लिए किये गये प्रयासों पर इसकाप्रत्यक्ष और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

मित्रों, एक समय भारत ‘विश्व गुरु’ के रूप में जाना जाता था, जहाँ ज्ञान की तलाश में विश्व की कई जगहों से लोगहमारे प्राचीन शिक्षण संस्थाओं जैसे नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में आते थे। आज जब हम एक विश्वशक्ति के रूप में उभरने का प्रयास कर रहे हैं तो यह आवश्यक है कि हम पुन: ‘विश्व गुरु’ उत्कृष्ट शिक्षा केंद्र के रूप मेंअपना स्थान बनायें। यह तभी संभव हो सकता है जब हम शिक्षा को एक पवित्र मिशन के रूप में लेंगे जिससेइक्कीसवीं सदी में सभी बच्चों को आवश्यक ज्ञान, और कौशल प्राप्त हो और उनमें लोकतंत्र, समता, स्वतंत्रता, न्याय,धर्म निरपेक्षता, मानवाधिकारों और मानवीय गरिमा के प्रति सम्मान, दूसरे के कल्याण की चिंता जैसे गुणों सेशिक्षित करें।

मैं उन अध्यापकों, जिनको आज सम्मानित किया जा रहा है और जिन पर सही शिक्षा और कौशल समर्थ नागरिकतैयार करने की जिम्मेदारी है, को नमन करता हूँ। देश में शिक्षा की तस्वीर को बदलने के लिए यह आवश्यक है किशिक्षकों में  अपेक्षित योग्यता, आत्मविश्वास और समर्पण का भाव हो।

मैं इस अवसर पर पूज्य माताजी के जन्म दिवस पर उनकी सुख-शांति और दीर्घायु की कामना करता हूँ। मैं सभीपुरस्कृत शिक्षकों को पुन: बधाई देता हूँ और सभी शिक्षकों से आह्वान करता हूँ कि शिक्षा के अभियान में अपनामहत्वपूर्ण योगदान देकर समाज को सही दिशा दें और जिस कार्य को आप राष्ट्र और समाज के उत्थान के लिए कर रहेहैं, उसे अधिक विनम्रता और जोश के साथ करते रहें। इस आयोजन से जुड़े सभी महानुभावों को मैं बधाई देता हूँ।

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