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सुप्रीम कोर्ट ने सैरीडॉन को दी ‘सिरदर्द’ से राहत, तीन दवाओं से बैन हटाया

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सैरीडॉन और दो अन्य दवाओं की बिक्री से प्रतिबंध हटा दिया है. इससे पहले सरकार ने पिछले सप्ताह 328 दवाओं की बिक्री पर बैन लगा दिया था. सरकार के फैसले के खिलाफ दवा कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी, जिसके बाद ये फैसला आया. कोर्ट ने फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन या एफडीसी दवाओं के बारे में केंद्र का जवाब मांगा है.

पेनकिलर सैरीडॉन और स्किन क्रीम पैनड्रम उन 328 एफडीसी दवाओं में थे जिन्हें सरकार ने उनके ‘अनुचित उपयोग’ को रोकने के लिए प्रतिबंधित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सिर्फ इसलिए इन दवाओं को बंद कर दिया जाए क्‍योंकि ये 1988 से पहले की निर्मित हैं. ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड की नोटिफिकेशन के मुताबिक 328 कॉम्बिनेशन मेडिसिन बंद की गई हैं. ये फिक्‍स्‍ड डोज कॉम्बिनेशन में आती है. इन्‍हें इसलिए बंद किया जा रहा है क्‍यों इनका कोई थेरेप्टिक जस्टिफिकेशन नहीं है. बोर्ड का कहना है कि ये दवाएं रोगियों के लिए रिस्‍की भी हैं.

सैरीडॉन को मिली राहत 
सरकार ने सिर दर्द में ली जाने वाली सैरीडॉन को तो बंद कर दिया लेकिन डीकोल्‍ड टोटल, फेंसेडाइल और ग्राइलिंकट्स को बंद नहीं किया है. हालांकि अब कोर्ट के फैसले के बाद सैरीडॉन को भी राहत मिल गई है. इससे पहले सरकार ने कहा था कि वो छह और दवाओं के उत्‍पादन, बिक्री और वितरण पर रोक लगाएगी. इस प्रतिबंध से 1.18 लाख करोड़ रुपए के फार्मा उद्योग से 1500 करोड़ रुपए का कारोबार बंद होने का अनुमान है. जिन दवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें सिरदर्द समेत कई रोगों की दवाएं शामिल हैं.

नामचीन कंपनियों के ब्रांड शामिल
सरकार के नोटिफिकेशन के मुताबिक जुकाम, खांसी और डिप्रेशन की दवाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. जिन ब्रांडों की दवाएं बंद की गई हैं उनमें माइक्रोलैब ट्राईप्राइड एबॉट ट्राइबेट और ल्‍यूपिन ग्‍लूकोनॉर्म शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 328 फिक्स्ड डोज मिश्रण (एफडीसी) वाली दवाओं का फिर से परीक्षण कराने को कहा था. इससे पहले इन दवाओं पर लगाई गई रोक को दिल्ली हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था.

केन्द्र सरकार ने कोकाटे समिति की सिफारिश पर 10 मार्च 2016 को एफडीसी दवाओं पर रोक लगा दी थी. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था, ‘‘मामले का गहराई से विश्लेषण करने के लिए हमारा मानना है कि इन मामलों को डीटीएबी या फिर डीटीएबी द्वारा गठित उप-समिति को भेजा जाना चाहिए, ताकि इन मामलों में नये सिरे से गौर किया जा सके.’’ न्यायालय ने कहा था कि डीटीएबी और इस कार्य के लिये गठित होने वाली उप-समिति दवा विनिर्माताओं का पक्ष सुनेगी. समिति इस मामले में गैर-सरकारी संगठन आल इंडिया ड्रग्स एक्शन नेटवर्क की बात भी सुनेगी.

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