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प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए राष्ट्रीय मंच के तीसरे सत्र के समापन कार्यक्रम को संबोधित किया

देश-विदेश

प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव श्री पी के मिश्रा ने आज यहां आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए राष्ट्रीय मंच के तीसरे सत्र के समापन कार्यक्रम को संबोधित किया। सन 2013 से एनपीडीआरआर के तीनों सत्रों में भाग लेने वाले श्री मिश्रा ने बातचीत के विस्तृत दायरे और चर्चाओं की व्यापकता के बारे में प्रसन्नता व्यक्त की। समूचे देश में अपनी उपस्थिति से यह आयोजन प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की परिकल्‍पना के अनुसार, आपदा जोखिम न्‍यूनीकरण को एक ‘जन आंदोलन’ में परिवर्तित कर रहा है।

प्रधान सचिव ने सत्र के विषय ‘बदलती जलवायु में स्थानीय स्‍तर पर मजबूती सुनिश्चित करना’ के महत्व को रेखांकित किया, क्योंकि यह ऐसे समय में आपदा जोखिम प्रबंधन को स्थानीय बनाने की आवश्यकता के प्रति उत्‍तरदायी है, जब आपदा जोखिम बढ़ने के साथ ही साथ जोखिमों की नई परिपाटियां भी उभर रही हैं। श्री मिश्रा ने प्रधानमंत्री के 10-सूत्री एजेंडे का उल्लेख किया, जो आपदा जोखिम प्रबंधन में स्थानीय क्षमताओं और पहलों तथा विशेषकर महिलाओं के नेतृत्व के निर्माण की आवश्यकता पर बल देता है। उन्होंने कहा कि सत्र की कार्यवाहियों से प्राप्‍त सीख से प्रधानमंत्री के दस सूत्री एजेंडे और सेंदाई फ्रेमवर्क को लागू किया जाएगा।

श्री मिश्रा ने हितधारकों से दो व्यापक विषयों का अनुसरण करने का सुझाव दिया। पहला, राज्य और जिला स्तर पर आपदा जोखिम प्रबंधन के ढांचे को पेशेवर बनाने से संबंधित है, और दूसरा विषय, लोगों की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी कार्यक्रमों और हस्तक्षेपों को विकसित करना है।

पहले विषय के संबंध में, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव ने कहा कि “सभी स्तरों – राष्ट्रीय, राज्य और जिला – स्‍तर पर आपदा प्रबंधन के कार्यों के सभी पहलुओं को पेशेवर रूप से प्रशिक्षित कर्मचारियों की सहायता, उद्देश्‍य के अनुरूप संरचना, प्रशासनिक बुनियादी ढांचे, आधुनिक कार्यक्षेत्र और आपातकालीन संचालन केंद्र जैसी आवश्यक सुविधाओं की जरूरत है।” इस व्यावसायीकरण में एसडीएमएस, डीडीएमए दोनों को शामिल करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के आगमन के साथ जिस तरह आपदा प्रतिक्रिया का व्यावसायीकरण हुआ है, उसी की तर्ज पर आपदा से निपटने की तैयारी और आपदा न्यूनीकरण को भी पेशेवर बनाने की जरूरत है। श्री मिश्रा ने कहा कि राज्यों के पास पर्याप्त संसाधन हैं और उन्हें एनडीएमए, एनआईडीएम और एनडीआरएफ द्वारा समन्वित तरीके से सहायता दी जाएगी।

दूसरे विषय-कार्यक्रम विकास के संबंध में श्री मिश्रा ने कहा कि नीतियां और कार्यक्रम साथ-साथ चलते हैं। उन्होंने कहा, “कार्यक्रमों के विकास के लिए हमें सभी क्षेत्रों में काम करना होगा। इसके लिए आपदा प्रबंधन, पर्यावरण, जल संसाधन, शिक्षा, शहरी विकास, कृषि और सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्रों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता होगी।”

प्रधान सचिव ने एनडीएमए से आपदा प्रबंधन के अनुप्रयोग को आगे बढ़ाने के उपयुक्त संदर्भ के रूप में अंतर-क्षेत्रीय कार्यक्रमों को विकसित करने पर विचार करने के लिए कहा, क्योंकि विकास में आपदा जोखिम प्रबंधन को मुख्यधारा में लाना तब तक संभव नहीं है, जब तक हम यह नहीं जान लेते कि जोखिम कम करने के लिए अपने नियमित कार्यक्रमों को कैसे लागू किया जाए। उन्होंने सबसे कमजोर लोगों की जरूरतों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

उन्होंने व्यावसायीकरण और कार्यक्रम विकास दोनों कार्यों के लिए संसाधनों की उपलब्धता पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि नई प्रौद्योगिकियां चक्रवात जैसी घटनाओं में आपदा प्रबंधन उपकरणों और प्रथाओं, मजबूत बुनियादी ढांचे को अधिक प्रभावी बना सकती हैं। उन्होंने कहा कि अगले तीन साल बहुत महत्वपूर्ण हैं, और हमें इस पर ध्यान केंद्रित करके आगे बढ़ना चाहिए।

प्रमुख सचिव ने सेंदाई फ्रेमवर्क की धीमी प्रगति के बारे में हितधारकों को सचेत किया, जिसकी सप्‍ताह भर में आठवीं वर्षगांठ है। उन्‍होंने कहा, “इस 15-वर्ष के फ्रेमवर्क का आधे से अधिक समय बीत चुका है और दुनिया सेंदाई लक्ष्यों को हासिल करने से अभी तक दूर है। हमें आपदा जोखिम प्रबंधन की अधिक प्रभावी, अधिक प्रतिक्रियाशील प्रणाली बनाने के लिए खुद को फिर से समर्पित करना चाहिए ताकि अधिक मजबूत समुदायों के साथ सुरक्षित देश और सुरक्षित विश्‍व की दिशा में काम किया जा सके।

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