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ऊर्जा राज्य होने के बाद भी लोगों को लगा मंहगी बिजली का करंट

उत्तराखंड

शिमला: उत्तराखंड ऊर्जा राज्य होने के बावजूद हिमाचल में प्रदेशवासियों को मंहगी बिजली का करंट लगा है. राज्य विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2015-16 के लिए नई दरें लागू कर लोगों को तत्काल प्रभाव से झटका दिया है.

हिमाचल में 9 हजार मैगावाट से ज्यादा बिजली का उत्पादन होता है ऐसे में बिजली मंहगी करने का फैसला लोगों के गले नहीं उतर रहा. राज्य विद्युत नियामक आयोग के बिजली मंहगी करने के फैसले पर दीपक तले अंधेरे वाली कहावत चरितार्थ होती है.

देश में हिमाचल ऊर्जा उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों में से एक है और गर्मियों में पांच पड़ोसी राज्यों को बिजली भी देता है. जिस राज्य में हर रोज 9 हजार से ज्यादा मैगावाट बिजली पैदा होती हो उसी राज्य के लोगों को मंहगी बिजली मिले तो यह बात किसी के गले नहीं उतर सकती.

आयोग द्वारा तय नईं दरों के अनुसार बिजली के 300 यूनिट से अधिक बिजली इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं को अब जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी. हैरानी इस बात की है कि नियामक आयोग ने उद्योगों,वाणिज्यिक संस्थानों और स्ट्रीट लाइटों की दरों में कोई बढ़ौतरी नहीं की है जबकि सबसे ज्यादा बिजली उपयोग यहीं होता है.

आम जनता इस फैसले का विरोध जताने के साथ साथ हैरान भी है. प्रदेश में दर्जनों जल विद्युत परिजनाएं चलाई जा रहीं हैं और 1500 मैगावाट की देश की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना नाथपा-झाकड़ी भी हिमाचल के रामपूर में ही चलाई जा रही हैं.

इसके अलावा तीन दर्जन से ज्यादा लघु जल विद्युत परियोजनाएं भी चल रही हैं. ऐसे में जहां लोगों को राहत की उम्मीद थी वहीं प्रदेश सरकार ने मंहगाई के इस दौर में एक और चोट की है.

300 यूनिट से ज्यादा बिजली इस्तेमाल करने पर अब प्रति युनिट 4 रूपए 70 पैसे के बजाए 4.95 पैसे की दर से भुगतान करना पड़ेगा. उपभोक्ता सेवा शुल्क में भी 10 रूपए की वृद्धि की गई है. इसे 40 रूपए से बढ़ाकर 50 रूपए कर दिया गया है.

इस फैसले पर नगर-निगम शिमला के महापौर संजय चौहान ने भी ऐतराज जताया है. प्रदेश में बिजली को लेकर सरकार के सभी संसाधन मौजूद हैं और विकल्प भी खुले हैं लेकिन फिर भी जन विरोधी फैसले लेने में देर नहीं की जाती.

सरकार को लोगों पर बोझ डालने से पहले अपनी नीतियों में सुधार की जरूरत है. विद्युत उत्पादन कर रही निजी कंपनियां मालामाल हो रही हैं और आम जनता की जेब ढीली हो रही है. इस फैसले से एक ओर जहां आम जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा. वहीं दूसरी ओर सरकार नीयत और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होंगे.

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