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प्रधानमंत्री ने उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह को संबोधित किया

देश-विदेश

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज यहां उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह को संबोधित किया। इस अवसर पर भारत के प्रधान न्यायाधीश श्री न्यायमूर्ति एन वी रमण, केंद्रीय मंत्री श्री किरेन रिजिजू, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश, भारत के महान्यायवादी श्री के के वेणुगोपाल और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री विकास सिंह उपस्थित थे।

प्रधानमंत्री ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वह आज सुबह विधायिका और कार्यपालिका के सहयोगियों के बीच थे और अब वह न्यायपालिका से जुड़े सभी विद्वान सदस्यों के बीच हैं। उन्होंने कहा, “हम सभी की अलग-अलग भूमिकाएं, अलग-अलग जिम्मेदारियां, काम करने के तरीके भी अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन हमारी आस्था, प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत एक ही है – हमारा संविधान।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने हजारों साल की महान भारतीय परंपरा को संजोते हुए और देश की आजादी के लिए जीने-मरने वाले लोगों के सपनों को ध्‍यान में रखते हुए हमें संविधान दिया है।

प्रधानमंत्री ने विशेष जोर देते हुए कहा कि आजादी के इतने साल बाद भी देश के नागरिकों के ए‍क विशाल वर्ग को पेयजल, शौचालय एवं बिजली जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित रहने पर विवश किया गया। इन समस्‍त लोगों की जिंदगी अधिक-से-अधिक आसान बनाने के लिए कार्य करना ही संविधान का सर्वश्रेष्ठ सम्‍मान एवं आदर है। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि देश में बुनियादी जरूरतों से अब तक वंचित रहे लोगों को इस तरह की समस्‍त सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एक व्यापक अभियान चल रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना काल में 80 करोड़ से अधिक लोगों को पिछले कई महीनों तक निरंतर मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया गया। सरकार ‘पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना’ पर 2 लाख 60 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च कर गरीबों को मुफ्त अनाज दे रही है। उन्होंने यह भी कहा कि कल इस योजना की अवधि को अगले साल मार्च तक बढ़ा दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब गरीबों, महिलाओं, ट्रांसजेंडरों, रेहड़ी-पटरी वालों, दिव्यांगों एवं समाज के अन्य वर्गों की जरूरतों को पूरा किया जाता और उनकी चिंताओं को दूर किया जाता है, तो वे राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में शामिल हो जाते हैं और इसके साथ ही संविधान में उनका विश्‍वास और भी अधिक बढ़ जाता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास, ये संविधान की भावना की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है। संविधान के प्रति समर्पित सरकार विकास में भेदभाव नहीं करती और हमने यह करके दिखाया है। आज गरीब व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना की वही सुविधा मिल रही है, जो कभी साधन संपन्न लोगों तक सीमित थी। उन्होंने कहा कि आज देश लद्दाख, अंडमान और पूर्वोत्तर के विकास पर उतना ही ध्यान दे रहा है, जितना दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों पर।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के हाल में जारी परिणामों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि लैंगिक समानता के मामले में अब पुरुषों की तुलना में बेटियों की संख्या बढ़ रही है। गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में प्रसव के लिए अधिक अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। इससे मातृ मृत्यु दर तथा शिशु मृत्यु दर में कमी आ रही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज पूरे विश्व में कोई भी देश ऐसा नहीं है जो किसी अन्य देश के उपनिवेश के रूप में मौजूद हो। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उपनिवेशवादी मानसिकता समाप्त हो गई है। उन्होंने कहा, “हम देख रहे हैं कि यह मानसिकता अनेक विकृतियों को जन्म दे रही है। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण हमें विकासशील देशों की विकास यात्राओं में आ रही बाधाओं में दिखाई देता है। जिन साधनों से, जिन मार्गों पर चलते हुए, विकसित विश्व आज के मुकाम पर पहुंचा है, आज वही साधन, वही मार्ग, विकासशील देशों के लिए बंद करने के प्रयास किए जाते हैं।” प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को समय से पहले हासिल करने की ओर अग्रसर है। फिर भी पर्यावरण के नाम पर भारत पर भांति-भांति के दबाव बनाए जा रहे हैं। यह सब उपनिवेशवादी मानसिकता का ही परिणाम है। उन्होंने कहा, ” लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हमारे देश में भी ऐसी ही मानसिकता के चलते अपने ही देश के विकास में रोड़े अटकाए जाते हैं। कभी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर तो कभी किसी और चीज़ का सहारा लेकर।” उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन में जो संकल्पशक्ति पैदा हुई, उसे और अधिक मजबूत करने में ये उपनिवेशवादी मानसिकता बहुत बड़ी बाधा है। उन्होंने कहा, “हमें इसे दूर करना ही होगा। और इसके लिए, हमारी सबसे बड़ी शक्ति, हमारा सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत, हमारा संविधान ही है।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका, दोनों का ही जन्म संविधान की कोख से हुआ है। इसलिए, दोनों ही जुड़वां संतानें हैं। संविधान की वजह से ही ये दोनों अस्तित्व में आए हैं। इसलिए, व्यापक दृष्टिकोण से देखें तो अलग-अलग होने के बाद भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने सत्ता के पृथक्करण की अवधारणा के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि, इस अमृत काल में, संविधान की भावना के अंतर्गत सामूहिक संकल्प दिखाने की आवश्यकता है क्योंकि आम आदमी उससे अधिक का हकदार है जो उसके पास वर्तमान में है। उन्होंने कहा, ‘‘सत्ता के पृथक्करण की मजबूत नींव पर, हमें सामूहिक उत्तरदायित्व का मार्ग प्रशस्त करना है, एक रोडमैप बनाना है, लक्ष्य निर्धारित करना है और देश को उसकी मंजिल तक ले जाना है ।”

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