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एक मुलाकात कार्यक्रम में श्री कैलाश सत्यार्थी और श्री यतींद्र मिश्रा एक साथ

उत्तराखंड

देहरादून: सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर लोक-कल्याण एवं मानवता की भलाई के लिए समर्पित संगठन, प्रभा खेतान फाउंडेशन ने एक मुलाकात नामक अपनी पहल के जरिए नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी तथा मशहूर कवि एवं राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्तकर्ता श्री यतींद्र मिश्रा से एक-साथ बातचीत के सत्र का आयोजन किया, और इस वर्चुअल सेशन के माध्यम से बड़े स्तर पर समाज एवं जनकल्याण के लिए श्री सत्यार्थी के योगदान पर चर्चा की गई। प्रभा फाउंडेशन प्रदर्शन कला, संस्कृति एवं साहित्य को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, और भारत में सांस्कृतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक और सामाजिक कल्याण से संबंधित परियोजनाओं को अमल में लाने के लिए देखभाल कर्ताओं, इस कार्य में पूरी लगन से समर्पित व्यक्तियों तथा समान विचारधारा वाले संस्थानों के साथ सहयोग करता है। एक मुलाकात समाज के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को एक मंच प्रदान करता है, जहां वे अपनी कहानियों को साझा करते हैं।

इस वर्चुअल सेशन के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए, प्रभा खेतान फाउंडेशन की कम्युनिकेशन एवं ब्रांडिंग प्रमुख, श्रीमती मनिषा जैन ने कहा, “प्रभा खेतान फाउंडेशन हमेशा से कला, संस्कृति एवं साहित्य का समर्थक रहा है। लॉकडाउन की वजह से फिलहाल हम सभी अपने-अपने घरों में ही रह रहे हैं, इसलिए हमने अपने वर्चुअल सेशन के माध्यम से पूरे देश की महानतम हस्तियों को एक-साथ लाने का प्रयास किया है, ताकि संकट की इस घड़ी में हमारे साथी देशवासियों को उनसे प्रेरणा मिल सके। हम आशा करते हैं कि, श्री सत्यार्थी के जीवन एवं उनकी कृतियों से हमारे सभी दर्शकों को समाज की भलाई के लिए काम करने का प्रोत्साहन मिलेगा, खासकर ऐसी परिस्थितियों में जब हम सभी के लिए अपने समक्ष मौजूद शत्रु, यानी कि कोविड-19 के खिलाफ संघर्ष हेतु एकजुट होना आवश्यक है। भविष्य में भी हम इस प्रकार के कई ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायक सत्रों के साथ उपस्थित होंगे। सत्र चाहे वास्तविक हो या आभासी, प्रभा खेतान फाउंडेशन संस्कृति एवं ज्ञान को बढ़ावा देने में समुदायों को जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है।”

सत्र के दौरान अपने विचार व्यक्त करते हुए, श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा, “फिलहाल हम जिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, उसे मानव सभ्यता पर संकट कहना ज्यादा उचित होगा। हर दिन अपने आसपास हो रही दुखद घटनाओं के बारे में सुनकर तो यही लगता है कि, हमने प्रकृति को काफीनुकसान पहुंचाया है और अब वह हमसे इसका बदला ले रही है। मैं हमेशा से कहता आया हूं कि, दया की भावना का वैश्वीकरण भी कृतज्ञता की आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ा हुआ है। कोरोना को मानवजाति के लिए करुणा के अंतहीन सागर की तरह देखा जाना चाहिए, जहां इंसान के भीतर की अच्छाई की बुनियाद पर अर्थव्यवस्था का निर्माण होता है। सबसे जरूरी यह है कि, विपत्ति की इस घड़ी में हमारे भीतर करुणा मौजूद होनी चाहिए। इसे सांप्रदायिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। वास्तव में, करुणा आपको साहसी बनाती है, तथा आंतरिक भय एवं सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के लिए आपके भीतर सहनशीलता एवं धैर्य की भावना का संचार करती है।”

उन्होंने आगे कहा, “इस तरह के हालात आने वाले 4 से 5 सालों तक बरकरार रह सकते हैं। लोगों की जिंदगी बचाना सरकार की पहली प्राथमिकता है। विश्व स्तर पर मानवता को इस संकट से बचाना अत्यंत आवश्यक है। ऐसे में हमें समाज के सुविधाहीन एवं सबसे कमजोर तबकों के लोगों को ध्यान में रखना चाहिए। इसके अलावा, हाल के आँकड़ों से तो हमारे देश में बच्चों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है, जहाँ हर घंटे 4 बच्चों के साथ बलात्कार होता है और 8 बच्चे लापता हो जाते हैं। लॉकडाउन की शुरुआत के बाद कई अध्ययन किए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि हाल के दिनों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।”

प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक मुलाकात नामक वर्चुअल सेशन के दौरान, श्री कैलाश सत्यार्थी ने घोषणा की, बच्चे मेरी प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत रहे हैं। इसलिए, वैश्विक स्तर के अन्य नेताओं और नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ मिलकर मैंने यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ली है कि, जी20 फोरम द्वारा कोविड-19 राहत कोष के लिए घोषित की गई धनराशि के एक निश्चित प्रतिशत का इस्तेमाल समाज के सबसे निचले और कमजोर तबके के लोगों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए, जिसमें उनके बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, दवाइयां तथा अन्य जरूरतें शामिल हैं। इस संदर्भ में हम जी20 के नेताओं और युएनओ के साथ बातचीत कर रहे हैं।

एक घंटे तक चलने वाली परस्पर-बातचीत के इस सत्र के दौरान, श्री कैलाश सत्यार्थी ने अपने जीवन पर बात की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि एक बाल अधिकार कार्यकर्ता के रूप में उनकी यात्रा किस तरह शुरू हुई और आगे बढ़ी, साथ ही उन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार जीतने के अपने अनुभव, अपने पसंदीदा पुस्तकों, अभिनेत्री, राजनेता के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि, वह किस तरह महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने बहुत पहले लिखी गई अपनी पहली कविता की पंक्तियां भी सुनाई, जो उनकी पत्नी को समर्पित है। इसके अलावा, उन्होंने इस वैश्विक महामारी की मौजूदा स्थिति पर भी प्रकाश डाला और बताया कि ऐसी निराशाजनक परिस्थितियों को देखकर उन्हें कितना दुख होता है। उन्होंने रेल की पटरियों पर सोते समय दुर्घटनावश मारे गए कुछ प्रवासी मजदूरों की मौत पर गहरा दुःख जताया, तथा इस विषय पर अपनी लिखी एक कविता भी सुनाई। उन्होंने अपनी लिखी कविता का पाठ किया तथा अपनी अन्य साहित्यिक रचनाओं के कुछ अंश भी पढ़े। श्री सत्यार्थी मशहूर बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं जिन्हें पूरी दुनिया में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, साथ ही वह पिछले चार दशकों से बिना थके बाल अधिकारों का समर्थन कर रहे हैं। बच्चों को गुलामी, तस्करी, बंधुआमजदूरी, यौन शोषण तथा हिंसा के सभी रूपों से बचाने के लिए वह दुनिया के 140 से अधिक देशों में बच्चों के कल्याण से जुड़े कार्योंका संचालन कर रहे हैं। बाल शोषण के खिलाफ दुनिया भर में आंदोलनों के संचालन तथा शांति, सुरक्षा, स्वास्थ्य, कल्याण एवं शिक्षा के लिए बाल अधिकारों को कायम रखने के पक्ष में आंदोलनों के अलावा, बच्चों से जुड़ी समस्याओं को वैश्विक और राष्ट्रीय विकास एजेंडे में शामिल कराने में उनकी अहम भूमिका रही है। पूरी दुनिया में सबसे अधिक कमजोर एवं शोषित समुदाय के बच्चों के अधिकारों को बहाल कराने की दिशा में अविश्वसनीय प्रयासों के कारण उन्हें वर्ष 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया।

जाने-माने कवि एवं सिनेमा जगत के जानकार, श्री यतींद्र मिश्रा ने कहा, “इस सत्र का अनुभव मेरे लिए अविस्मरणीय था। श्री कैलाश सत्यार्थी जैसे महान परंतु अत्यंत विनम्र व्यक्तित्व के साथ बातचीत करने का अवसर मिलने से व्यक्ति के साथ-साथ बड़े पैमाने पर पूरी मानवजाति के विचार समृद्ध होते हैं। इस अद्भुत पहल के लिए मैं प्रभा खेतान फाउंडेशन को बधाई देना चाहूंगा। मुझे यकीन है कि इस सत्र से बहुत से दर्शकों को प्रेरणा मिलेगी तथा वे समाज के हित में काम करेंगे।”

जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना एवं उनका सम्मान करना इस फाउंडेशन का ध्येय रहा है, और इससे उन्हें देश भर के लगभग 30 शहरों में अत्यंत सुनियोजित तरीके से साहित्यिक सत्रों के आयोजन की प्रेरणा मिली है। भारत में उत्साहजनक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद, फाउंडेशन ने वैश्विक स्तर पर इसी प्रकार के विभिन्न सत्रों के आयोजन के लिए कदम बढ़ाए। उन्होंने शब्दों की दुनिया के कुछ महान दिग्गजों के साथ सत्रों की मेजबानी की

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