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मनरेगा में कामकाज की अधिक मांग और समय पर मजदूरी का भुगतान

देश-विदेश

नई दिल्ली: इंडियन एक्सप्रेस अखबार में 13 जुलाई, 2018 को छपे डॉ. जियान ड्रेज़े के एक निबंध में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के लागू किए जाने के संबंध में चार मुद्दे उजागर किए गए।

1.    कम मजदूरी की वजह से काम की मांग में कमी

2.    देर से भुगतान एवं भुगतान से इंकार और देर से भुगतान की वजह से कामगारों को कम मुआवजा

3.    राष्ट्रीय इलेक्ट्रोनिक कोष प्रबंधन व्यवस्था (एनई-एफएमएस) और आधार भुगतान ब्रिज व्यवस्था (एपीबीएस) जैसे प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप से भुगतान में देर होना

4.    अपर्याप्त शिकायत समाधान व्यवस्था

      निबंध में दिए गए तर्क में कोई सच्चाई नही है। मनरेगा से जुड़े तथ्य इस प्रकार हैं-

      नीचे दी गई सारणी में पिछले तीन वित्तीय वर्षों और मौजूदा वित्तीय वर्ष (अब तक) में कार्य दिवस/निष्पादित कार्य के बारे में जानकारी दी गई है। इससे साफ पता चलता है कि ज्यादातर वर्षों की तुलना में इस दौरान बड़ी संख्या में कार्य दिवस सृजित हुए हैं।

वित्तीय वर्ष सृजित कार्य दिवस (करोड़ में)
2012-13 230.45
2013-14 220.36
2014-15 166.2
2015-16 235.14
2016-17 235.6
2017-18 234.26
2018-19 (अब तक) 78

ऊपर की सारणी से यह संकेत मिलता है कि मनरेगा कार्यक्रम के तहत काम की मांग में कोई कमी नही आई है। प्रधानमंत्री के जल संरक्षण पर विशेष जोर देने के साथ वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में 78 करोड़ कार्य दिवस सृजित किए गए। कम मजदूरी की वजह से मांग की गति धीमी पड़ने या मांग में कमी का कोई संकेत नहीं है। वास्तव में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण) की तर्ज पर मनरेगा मजदूरी की सूचीकरण का प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन है।

जहां तक समय से मजदूरी भुगतान और मुआवजा भुगतान की बात है, तो इसमें पिछले दो वर्षों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। नरेगासॉफ्ट 15 दिन के अंदर मजदूरी भुगतान कराने को लेकर निगरानी रखता है। भुगतान में वर्ष 2013-14 में 34 प्रतिशत से बढ़कर मौजूदा वित्त वर्ष में उल्लेखनीय तौर पर 93 प्रतिशत तक सुधार हुआ है। वित्त वर्ष 2017-18 में यह 85 प्रतिशत था। मौजूदा वित्त वर्ष में ईमानदार और प्रभावी निरीक्षण की वजह से 15 दिन के भीतर लाभार्थियों के खाते में 70 फीसदी भुगतान पहुंच चुके हैं। सरकार समय से भुगतान कराने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल्स (एसओपी) जैसे कई कदम उठा रही है। केन्द्र और राज्य सरकारों की कोशिशों के बाद वर्ष 2016-17 में लेन-देन रद्द करने की 16 फीसदी की दर अभी घटकर 2 फीसदी से नीचे आ गई है। यह बताना आवश्यक है कि कार्यक्रम के तहत खर्च में बढ़ोत्तरी की जा रही है, जो नीचे की सारणी से स्पष्ट है।

वित्तीय वर्ष कुल खर्च (रुपया करोड़ में)
2015-16 44002.59
2016-17 58062.92
2017-18 64029.74
2018-19 (अब तक) 21888.68

      पिछले वर्षों की तुलना में भुगतान की गई मुआवजा राशि में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2014-15 से लेकर आज तक 83.45 करोड़ रुपये बतौर मुआवजा दिए गए। इसके अलावा समय से मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करने और मजदूरी भुगतान से संबंधित बाधाओं को दूर करने के उपाय करने के लिए मंत्रालय ने 5 राज्यों के प्रतिनिधियों, विभिन्न बैंकों और सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन व्यवस्था (पीएफएमएस) की एक समिति गठित की है। समिति ने लगातार बैठक करना शुरू कर दिया है। नरेगासॉफ्ट को और उन्नत किया जा रहा है और समय से भुगतान के लिए मंत्रालय ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल्स (एसओपी) को मंजूरी दे दी है।

      आधार भुगतान ब्रिज व्यवस्था (एपीबीएस) के बारे में निबंध में लिखी गई बातों के संदर्भ में यह बताना जरूरी है कि मजदूरी का समय से भुगतान के रास्ते में आधार कोई बाधा नहीं है। लाभार्थियों की सहमति के बिना कोई खाता एपीबीएस में बदला नहीं जाता है।

      जहां तक शिकायत समाधान व्यवस्था की बात है तो यह बताना जरूरी है कि सरकार का सामाजिक लेखा परीक्षण पर काफी जोर है। 26 राज्यों ने सामाजिक लेखा परीक्षण ईकाइयां स्थापित की हैं और इन ईकाइयों में लगभग 4500 कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया है। लेखा परीक्षण के मानक सीएजी के साथ मिलकर बनाए गए हैं। शिकायतों के निवारण के लिए राज्य सरकार द्वारा अप्रैल 2012 से स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल्स (एसओपी) का इस्तेमाल हो रहा है। ज्यादातर राज्यों में हितधारकों की शिकायतें दूर करने के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइंस शुरू किए गए हैं।

      निबंध में उठाए गए मुद्दे तथ्यों पर आधारित नहीं लगते हैं। मनरेगा के तहत काम की भारी मांग है और सरकार कामकाज की मांगें पूरी करने और मजदूरी का समय से भुगतान सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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