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आज से आरंभ होगी मचैल यात्रा, ये हैं मां चंडी के दरबार से जुड़े मुख्य आकर्षण

अध्यात्म

डोडा/किश्तवाड़ (अजय): श्री अमरनाथ यात्रा के बाद जम्मू-कश्मीर की बड़ी वार्षिक यात्रा मचैल यात्रा इस बार आधिकारिक रूप से 25 जुलाई से शुरू होगी, जिसके लिए प्रशासन ने कमर कस ली है, जबकि गत वर्ष छड़ी के मचैल पहुंचने पर हुए विवाद के चलते यात्रा के मुख्य आकर्षण पवित्र छड़ी को ले जाने को लेकर अभी असमंजस बरकरार है। बर्फीली चोटियों के बीच नीलम घाटी पाडर के भोट नाले के किनारे मचैल में स्थित मां चंडी का धाम प्रदक्षिणा-पथ और गर्भगृह है। यह लकड़ी का मंदिर है। इसके मुख भाग में समुद्र मंथन का दृश्य अंकित है। दक्षिण की ओर मंदिर के साथ पौराणिक एवं नाग देवताओं की कई मूर्तियां लकड़ी पर बनी हैं। मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है। इसके भीतर मां चंडी पिंडी रूप में प्रतिष्ठित हैं। इस पिंडी के साथ ही धातु से बनी देवी की मूर्तियां स्थापित है, जिनमें से एक मूर्ति चांदी की है। इतिहासकारों के अनुसार चांदी की यह मूर्ति जंस्कार से लाई गई है। कहा जाता है कि मूर्ति में देवी को जो अलंकरण पहनाए गए हैं वे स्वयं हिलने लगते हैं, भक्त इसे देवी का दर्शन मान कर मूर्ति के सम्मुख नतमस्तक होते हैं।

शक्ति पीठ की मान्यता, सदियों से माथा टेकने आते हैं श्रद्धालु

चंडी के भक्तों का मानना है कि मां चंडी के दरबार में सच्चे दिल से मांगी हर मुराद पूरी होती है और यहां से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता। इतिहासकारों के अनुसार सेनापति जोरावर सिंह वजीर लखपत और महता बस्ती राम जैसे कुशल सेनानायक विजय अभियान में भाग लेते हुए इस शक्ति पीठ पर भी आए थे। बताया जाता है कि 1947 में जब पाकिस्तान ने जंस्कार क्षेत्र को कब्जे में लिया था तो भारतीय सेना के कर्नल हुक्म सिंह यादव सैनिक दल के साथ जंस्कार जाते हुए इस मंदिर में आए थे तो उन्होंने मन्नत मांगी थी कि यदि वे जंस्कार क्षेत्र को मुक्त करवाने में सफल हुए तो वापसी पर यज्ञ करेंगे। अभियान में सफल होने के बाद कर्नल यादव देवी मंदिर में आए तो उन्होंने न केवल यज्ञ किया, अपितु यहां पर एक मूर्ति भी स्थापित की।

मचैल के लिए यात्रा की शुरूआत
मचैल में 1981 में वार्षिक यात्रा की शुरूआत भद्रवाह के देवी भक्त व तत्कालीन पुलिस अधिकारी ठाकुर कुलबीर सिंह जम्वाल ने अपने कुछ साथियों के साथ की और वह हर वर्ष भद्रवाह चिनौत से छड़ी लेकर मचैल आते रहे। मां चंडी की महिमा के चलते आतंकवाद के दौर में भी यह यात्रा बिना किसी रोक-टोक के चलती रही और चंद लोगों के साथ शुरू हुई यह यात्रा अब जनसैलाब का रूप ले चुकी है।

भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए बढ़ाया यात्रा का समय
वार्षिक यात्रा जहां पहले चंद दिनों की होती थी, अब भक्तों की संख्या को देखते हुए गत वर्ष यात्रा का समय 40 दिन निर्धारित किया गया है। 25 जुलाई से आधिकारिक रूप से यात्रा शुरू हो जाएगी और 5 सितम्बर को इसका समापन होगा। इसके चलते लंगर, सुरक्षा और यातायात व्यवस्था सहित अन्य सुविधाएं 25 जुलाई से उपलब्ध होंगी।

मचैल स्थित मां चंडी के धाम तक पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय किश्तवाड़ से गुलाबगढ़-पाडर तक का सफर गाडिय़ों पर होता है, जबकि वहां से आगे का करीब 32 कि.मी. का सफर दुर्गम पहाडिय़ों के बीच या तो पैदल अथवा हैलीकॉप्टर से तय करना पड़ता है। जिला विकास आयुक्त किश्तवाड़ अंग्रेज सिंह राणा के अनुसार 25 जुलाई से ही हैलीकॉप्टर सेवा शुरू हो रही है, जिसके लिए इस बार गुलाबगढ़ से मचैल के बीच एक तरफ का किराया 2270 रुपए प्रति व्यक्ति निर्धारित किया गया है। उनके अनुसार यात्रियों को हर संभव सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार की तरफ से सभी उचित कदम उठाए जा रहे हैं।

विवाद के चलते न्यायालय के निर्देश पर स्थानीय प्रशासन करवा रहा प्रबंध
गत वर्ष 22 अगस्त को जब पवित्र छड़ी मचैल पहुंची थी तो आयोजक संस्था के 2 गुटों के बीच हाथापाई हो गई थी और कुछ लोग घायल भी हो गए थे। इसके चलते भद्रवाह से मुख्य छड़ी लेकर आए लोग दूसरे दिन ही बिना छड़ी के वापस लौट आए थे। तब से त्रिशूल रूपी छड़ी मां चंडी के मचैल स्थित धाम में रखी हुई है। इस घटना के बाद मामला न्यायालय पहुंच गया और अब न्यायालय के निर्देश पर मंडल आयुक्त जम्मू व डी.सी. किश्तवाड़ की देख-रेख में यात्रा आयोजित हो रही है, जबकि छड़ी लेने को लेकर अभी कोई निर्णय सामने नहीं आया है। हालांकि इस संदर्भ में जम्मू, भद्रवाह से लेकर पाडर तक बैठकों का दौर चल रहा है, लेकिन अभी तक छड़ी लेने को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं हुआ है। Source पंजाब केसरी

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