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पीड़ित को समय पर अंतरिम राहत दी जानी चाहिएः श्रीमती मेनका संजय गांधी

देश-विदेश

नई दिल्लीः महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों से संबंधित विभागों को आवश्यक निर्देश जारी करने का आग्रह किया है ताकि विभाग पीड़ित मुआवजा योजना/कोष में यौन अपराध के शिकार लड़कों को शामिल करने के आवश्यक कदम उठा सकें। पत्र में यह अनुरोध भी किया गया है कि अंतरिम मुआवजा सहित मुआवजा समय पर पीड़ित को दिया जा सकता है।

महिला और बाल विकास मंत्री ने कहा कि पोक्सो अधिनियम लैंगिंग रूप से तटस्थ है और यह केवल बालिकाओं की हितों की रक्षा ही नहीं करता बल्कि बालकों के हितों की भी रक्षा करता है। पत्र में बताया गया है कि यद्यपि एनसीपीसीआर आंकड़े के अनुसार 31 राज्य सरकारों ने पोक्सो नियम 2012 के नियम 7 के अंतर्गत पीड़ित मुआवजा योजना को अधिसूचित कर दिया है लेकिन मुआवजा का वितरण में एकरूपता नहीं है और संतोषप्रद नहीं है।

महिला और बाल विकास मंत्री ने ध्यान दिलाया कि कुछ राज्यों में यौन अपराध के शिकार बच्चों को अंतरिम मुआवजा नहीं दिया जा रहा है ताकि बच्चों की चिकित्सा तथा अन्य आवश्यकताएं पूरी की जा सकें। पत्र में इस बात पर बल दिया गया है कि बाल यौन अपराध में बालक सबसे अधिक उपेक्षित पीड़ित होता है। मुआवजा देने में इस बात की अनदेखी की जा रही है और मुआवजा योजना में बालकों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

पोक्सो नियम 2012 की पृष्ठभूमिः

पोक्सो नियम 2012 (नियम 7) में निम्नलिखित प्रावधान हैं:

  1. विशेष न्यायालय उचित मामलों में स्वयं या बच्चे द्वारा अथवा बच्चे की ओर से प्रस्तुत आवेदन पर अंतरिम मुआवजे के लिए आदेश जारी कर सकता है ताकि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद किसी भी चरण में बच्चे की राहत और पुनर्वास की तत्कालिक आवश्यकताएं पूरी की जा सकें। बच्चे को दिया जाने वाला ऐसे अंतरिम मुआवजे का समायोजन, यदि कोई हो, अंतिम मुआवजे में किया जा सकता है।
  2. विशेष न्यायालय स्वयं या बच्चे द्वारा अथवा बच्चे की ओर से प्रस्तुत आवेदन पर उन मामलों में मुआवजे की सिफारिश कर सकता है जहां अभियुक्त को सजा दी गई है या जहां मामला रिहाई या बरी होने के साथ समाप्त हो गया है या अभियुक्त का पता नहीं लग सका है या चिन्हित नहीं हुआ है तथा विशेष न्यायालय की राय में अपराध के कारण बच्चे को भारी नुकसान हुआ है।
  3. जहां विशेष न्यायालय अधिनियम के अनुच्छेद 33 के उप-अधिनियम 8 के अंतर्गत, जो आपराधिक प्रक्रिया संहित के अनुच्छेद 357ए के उप-अनुच्छेद (2) तथा (3) के साथ पढ़ा जाता है, पीड़ित को मुआवजा देने का निर्देश जारी करता है वहां न्यायालय पीड़ित को हुए भारी नुकसान से संबंधित सारे प्रासंगित कारणों को ध्यान में रखता है। इन तथ्यों में निम्नलिखित है-
  4. दुर्व्यवहार का प्रकारअपराध की गंभीरता और बच्चे को पहुंचाई गई मानसिक या शारीरिक हानि या बच्चे की पीड़ा की गंभीरता।
  5. बच्चे के शारीरिक या मानसिक आघात के लिए किए गए खर्च या होने वाले खर्च।
  • अपराध के परिणामस्वरूप शैक्षिक अवसर का नुकसान इसमें मानसिक आघात के कारण स्कूल से गैर-हाजिरी, शारीरिक चोट, चिकित्सा उपचार, जांच, मुकादमे की सुनवाई या कोई अन्य कारण शामिल है।
  1. अपराध के परिणामस्वरूप रोजगार का नुकसान इसमें मानसिक आघात के कारण रोजगार स्थल से गैर-हाजिरी, शारीरिक चोट, चिकित्सा उपचार, जांच, मुकादमे की सुनवाई या कोई अन्य कारण शामिल हैं।
  2. अपराधी के साथ बच्चे का संबंध, यदि कोई हो।
  3. क्या दुर्व्यहार की घटना अकेली घटना है या काफी समय से दुर्व्यहार किया जाता रहा है।
  • क्या अपराध के कारण बालिका गर्भवती हो जाती है।
  • क्या अपराध के परिणामस्वरूप बच्चा यौन संक्रमण बीमारी (एसटीडी) का शिकार हो जाता है।
  1. क्या बच्चा अपराध के परिणामस्वरूप एचआईवी का शिकार हो जाता है।
  2. अपराध के परिणामस्वरूप बच्चे द्वारा सहन की गई कोई भी अक्षमता।
  3. जिस बच्चे के साथ अपराध किया गया है उसकी वित्तीय स्थिति ताकि पुनर्वास के लिए उसकी आवश्यकता निर्धारित की जा सके।
  • कोई अन्य कारण जिसे विशेष न्यायालय प्रासंगिक मानता है।
  1. विशेष न्यायालय द्वारा जारी आदेश पर मुआवजे का भुगतान पीड़ित मुआवजा कोष से या किसी अन्य योजना या राज्य द्वारा आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अनुच्छेद 357ए के अंतर्गत पीड़ित को मुआवजा देने और पुनर्वास करने के उद्देश्य से स्थापित कोष से या कोई अन्य लागू कानून या जहां कोई कोष और योजना अस्तित्व में नहीं है राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा।
  2. राज्य सरकार न्यायालय द्वारा जारी आदेश के अनुसार मुआवजे का भुगतान ऐसे आदेश की प्राप्ति के 30 दिनों के अंदर करेगी।
  3. इन नियमों में कोई भी नियम बच्चा या उसके माता-पिता या अभिभावक या कोई अन्य व्यक्ति जिसमें बच्चे का विश्वास हो उसे केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के किसी अन्य नियम या योजना के अंतर्गत राहत प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत करने से नहीं रोक सकता।

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