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‘गुरु गोबिंद सिंह : लाइफ एंड लेगेसी’ पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया

देश-विदेश

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने कहा है कि महान योद्धा, आध्यात्मिक गुरु और प्रतिष्ठित विद्वान गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज का जीवन यह सार्वभौमिक संदेश देता है कि अत्याचारियों के खिलाफ जनता को लामबंद किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गुरु महाराज का जीवन यह दर्शाता है कि सामाजिक समावेश के बिना राजनीतिक एकता नहीं हो सकती और इस धरती की बहु-सांस्कृतिक संरचना में धार्मिक कट्टरता तथा असहिष्णुता का कोई स्थान नहीं है। उपराष्ट्रपति महोदय आज ‘गुरु गोबिंद सिंह : लाइफ एंड लेगेसी’ पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन पर बोल रहे थे। संगोष्ठी का आयोजन आज यहां भाई वीर साहित्य सदन ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सहयोग से किया था। इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, वित्त एवं कारपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली और अन्य विशिष्ट जन उपस्थित थे।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि सिखों के खिलाफ होने वाले उत्पीड़न तथा सिखों की अस्मिता के लिए गुरु महाराज ने सिख कौम को सैन्य शक्ति के रूप में संगठित किया। उन्होंने कहा कि गुरु महाराज ने संत-योद्धाओं के रूप में खालसा का गठन किया और सामाजिक समानता, सार्वभौमिक भाईचारा, दानशीलता और सामाजिक सेवा पर उन्होंने जोर दिया। गुरु महाराज ने राजनीतिक दृढ़ता के लिए सिखों को ‘शमशीर’ प्रदान की, तो दूसरी तरफ आध्यात्मिक बोध के लिए ‘शबद’ जैसा हथियार सौंपा।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने सिख गुरुओं की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और उन्होंने लंगर, संगत और कीर्तन जैसी सामाजिक संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया, जो सबको बराबरी का दर्जा देती हैं। उन्होंने कहा कि गुरु महाराज ने एक ऐसे समाज का सपना देखा था जो प्रचलित परिपाटियों, कर्मकांडो से विलग हो और सामाजिक समानता पर आधारित हो। उन्होंने एक ऐसे समाज की स्थापना की जिसके तहत ‘अलौकिक प्रकाश सभी जीवात्माओं में’ समान रूप से विद्यमान है। गुरु महाराज विद्वान कवि और दार्शनिक थे। उनकी कृतियों में अलौकिक काव्यात्मक सौंदर्य मौजूद है, जिन्हें ‘दशम ग्रंथ’ के रूप में संकलित किया गया है।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज आध्यात्मिक नेता, कवि, विद्वान और महान योद्धा थे, जिन्होंने न केवल दिल्ली दरबार के अत्याचारों और उसकी धार्मिक कट्टरता के खिलाफ युद्ध किया बल्कि जातिवाद, सामाजिक दुराव, सिखों में व्याप्त बुराइयों तथा व्यक्ति-पूजा के खिलाफ भी आवाज उठाई।

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