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देहरादून में पहली बार, मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में एंडोस्कोपिक सबम्यूकोसल डिसेक्शन किया गया

उत्तराखंड

देहरादून: मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने हाल ही में, मलाशय से रक्तस्राव से पीडित 46 साल की महिला की ईएसडी (एंडोस्कोपिक सबम्यूकोसल डिसेक्शन) सर्जरी कर उसे एक जटिल और बडी सर्जरी से बचाया। ओपन सर्जरी की बजाय ईएसडी का विकल्प चुन कर, डॉक्टरों की टीम ने न केवल संभावित जटिलताओं, लंबे समय तक अस्पताल में रहने और अधिक खर्च से बचाया बल्कि मलाशय को सुरक्षित रखने और रोगी के प्राकृतिक रूप से मल त्याग को बरकरार रखने में भी मदद की।

इस प्रक्रिया में उच्च स्तर की विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, लेकिन मैक्स में डॉक्टरों ने आसानी से इस प्रक्रिया को अंजाम दिया और ओपन सर्जरी की बजाय उपचार के इस विकल्प का चयन करने से न केवल रोगी को तेजी से ठीक होने में मदद मिली, बल्कि अन्य ओपन या लेप्रोस्कोपिक सर्जिकल प्रक्रियाओं की तुलना में उसे कम दर्द हुआ।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर और गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ रविकांत गुप्ता ने रोगी की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा, श्श् उन्होंने फरवरी में देहरादून में एक अन्य गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट से सलाह ली थी, जिसने मलाशय में ट्यूमर पाये जाने पर कोलोनोस्कोपी की थी। इसके अलावा, जब बायोप्सी की गयी, तो  पता चला कि यह एक प्रीमैलिग्नेंट ट्यूमर था। फिर रोगी को परमानेंट कोलोस्टोमी (एक ऐसी शल्य प्रक्रिया जिसमें क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाकर मलाशय को छोटा किया जाता है और पेट की दीवार में छेद कर मल द्वार को मोड़ दिया जाता है) कर उसके पूरे मलाशय को हटाने के लिए एक बड़ी सर्जरी कराने की सलाह दी गई थी। जब वह कुछ दिन पहले हमारे पास आई तो हमने एक और कोलोनोस्कोपी, जिसमें पता चला कि ट्यूमर बहुत लंबा हो गया था। लेकिन सौभाग्य से, सीटी स्कैन से पता चला है कि यह मलाशय की दीवार से आगे नहीं फैला था। ”

टीम में डॉ रविकांत गुप्ता और डॉ मयंक गुप्ता शामिल थे। टीम के सदस्यों के बीच व्यापक विचार-विमर्श के बाद यह फैसला किया गया कि ट्यूमर को बिना किसी ओपन सर्जरी के एंडोस्कोपिक रूप से हटाया जाए ताकि मलाशय और प्राकृतिक मल मार्ग को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

डॉ रविकांत गुप्ता ने कहा, “रेक्टल सर्जरी कई बार जटिल हो सकती है क्योंकि इस सर्जरी के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। सर्जरी के दुष्प्रभावों में सर्जरी की जगह पर रक्तस्राव या संक्रमण और यहां तक कि पैरों में रक्त के थक्के हो सकते हैं। कभी-कभी, मलाशय के सिरे एक दूसरे से नहीं जुड पाते और ये लीक करने लगते हैं जिसके कारण पेट दर्द, बुखार या यहां तक कि संक्रमण हो सकते हैं और इसे ठीक करने के लिए एक से अधिक सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। यह सब ध्यान में रखते हुए और रोगी की स्थिति को देखते हुए, हमने ईएसडी एंडोस्कोपिक सर्जरी करने का फैसला किया जो लगभग ढाई घंटे तक चला। पूरे ट्यूमर को किसी रक्तस्राव या चीरे (और सर्जरी के बाद आने वाली जटिलताओं के बगैर) के बगैर हटा दिया गया। मरीज को 6 घंटे बाद खाना दिया गया और अगले दिन घर भेज दिया गया। ”

ईएसडी डे केयर या 24 घंटे की एडमिशन प्रक्रिया है जो एंडोस्कोप नामक लचीली, ट्यूब जैसी इमेजिंग टूल का उपयोग करके जठरांत्र (जीआई) पथ से गहरे ट्यूमर को हटाने में मदद करती है। ईएसडी के परिणामों को अब सर्जिकल प्रक्रियाओं की तुलना में स्वीकार किया जा रहा है और आरंभिक चरण कैंसर के ट्यूमर या कोलोन पॉलिप्स और इसोफेगस के ट्यूमर, पेट या कोलोन के वैसे ट्यूमर के इलाज के लिए किया जा रहा है जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल की दीवार में प्रवेश नहीं किया है। इसके कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं जिनमें गले में खराश, मतली, उल्टी या कुछ गैस, सूजन या ऐंठन आदि हैं।

मैक्स हॉस्पिटल, देहरादून में, अधिक से अधिक ऐसे मामलों में रोगियों को लाभ पहुंचाने के लिए एंडोस्कोपिक सर्जरी का विकल्प दिया जा रहा है। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्यूमर के एंडोस्कोपिक प्रबंधन ने पिछले दो दशकों में तेजी से प्रगति की है। इसका विकास आरंभ में गैस्ट्रिक कैंसर के इलाज के लिए हुआ था और उसके बाद से इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल अन्य बीमारियों में भी होने लगा क्योंकि यह तुलनात्मक तौर पर सरल, सुरक्षित एवं कारगर है और इन्हीं कारणों से इन्हें एसोफैगेक्टोमी जैसी सर्जिकल विधियों का एक स्वीकृत विकल्प बन गया है। इसे मिनिमली इनवेसिव विधि के रूप में तेजी से पसंद किया जा रहा हैय यह पारंपरिक तरीकों की तुलना में बहुत तेजी से स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।

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