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‘‘हर ग्रामीण के लिए आवास’’ कार्यशाला को सम्बोधित करते हुएः कैबिनेट मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह

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नई दिल्ली: केंद्रीय ग्रामीण विकास, पंचायती राज और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने नई दिल्ली में आज ‘हर ग्रामीण के लिए आवास’ पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित किया। ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री सुदर्शन भगत ने भी इस कार्यशाला में संबोधन किया।

इस अवसर पर ग्रामीण विकास और पंचायती राज सचिव श्री एस एम विजयानंद, ग्रामीण विकास विभाग में अवर सचिव श्री अमरजीत सिन्हा, ग्रामीण विकास विभाग में संयुक्त सचिव श्री राजीव सदानंदन मौजूद थे। कार्यशाला में राज्यों के ग्रामीण विकास सचिवों, कार्यान्वयनकर्ता, योजनकार, वास्तुकार और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि ने भी भागीदारी करी।

अपने संबोधन में चौधरी बीरेंद्र सिंह ने जोर देते हुए कहा कि “सभी के लिए आवास” मोदी सरकार की प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में है। उन्होंने कहा, ‘गरीबों को मकान उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है। सरकार 2022 तक हर किसी को अच्छे मकान उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जाहिर कर चुकी है। इसके तहत हमने प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) पेश की है। इस योजना के शहरी भाग को 2015 में ही मंजूरी दे दी गई थी। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि इस योजना के ग्रामीण भाग को कैबिनेट ने 23 मार्च, 2016 को मंजूरी दी ।’

उन्होंने कहा कि पूरे ग्रामीण आवास कार्यक्रम से प्रधानमंत्री आवास योजना का पुनर्निर्माण किया गया है। राज्य और केंद्र को दी जाने वाली सब्सिडी बढ़ाकर 70 फीसदी से ज्यादा कर दी गई है। आवंटन 70,000 रुपए से बढ़ाकर 1,20,000 रुपए कर दिया गया है। पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में इसे 75,000 रुपए से बढ़ाकर 1,30,000 रुपए कर दिया गया है। इसके अलावा सरकार ने हाल में मनरेगा से अकुशल कामगारों को 90 दिनों की लागत उपलब्ध करा दी है और स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालयों के लिए अतिरिक्त 12,000 रुपये उपलब्ध कराए गए हैं। मनरेगा के तहत पारिश्रमिक को भी हाल में संशोधित किया गया है। इन सभी को मिलाएं तो एक ग्रामीण लाभार्थी को मकान के निर्माण के लिए 1,50,000 रुपये से ज्यादा मिलते हैं।

1985 से 2015 के बीच लगभग 3.5 करोड़ मकानों का निर्माण किया गया। चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के अंतर्गत हमारा उद्देश्य तीन साल में 1 करोड़ मकानों का निर्माण करना है। यह एक चुनौतीपूर्ण काम है। हम ऐसा निर्वाचित प्रतिनिधियों और हर स्तर विशेषकर पंचायत स्तर के अधिकारियों के सहयोग से ही कर सकते हैं। हमें सरकार के वादे को पूरा करने के लिए व्यवस्था के पुनर्निर्माण और कड़ी मेहनत करने की जरूरत है।

केंद्र सरकार ग्रामीण आवास योजना पर 2018-19 तक 81,975 करोड़ रुपए व्यय करेगी। इसके अलावा राज्यों को अपने हिस्से से 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा व्यय करने होंगे। केंद्र सरकार से सालाना आवंटन 10,025 करोड़ रुपए से बढ़कर 27,000 करोड़ रुपए से ज्यादा हो जाएगा।

राजग सरकार ने मनरेगा का पुनर्निर्माण किया है और आवंटन व कार्य दिवसों में इजाफा किया है। मनरेगा की तरह प्रधानमंत्री आवास योजना से भी रोजगार और ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति पैदा होती है। इस्पात और सीमेंट को ग्रामीण आवासों में लगने वाली लकड़ी, रेत, ईंट गांवों में ही बनती हैं। निर्माण में लगने वाले मजदूर भी स्थानीय होते हैं।

लाभार्थी के पास प्राथमिक ऋणदाता संस्थानों से 70,000 रुपये तक का कर्ज लेने का विकल्प भी होगा। राष्ट्रीय आवास बैंक और नाबार्ड आवास क्षेत्र के लिए दिए जाने वाले कर्ज के वास्ते नियामक हैं। लाभार्थियों के चयन में पारदर्शिता लाई गई है। 2011 में हुई सामाजिक आर्थिक जनगणना (एसईसीसी) से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाएगा। प्रधानमंत्री आवास योजना ऐसा पहला कार्यक्रम होगा, जिसमें एसईसीसी से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाएगा। लाभार्थियों की सूची सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होगी। चयन की प्रक्रिया पारदर्शी होगी।

एसईसीसी आकंडों से बनी इस सूची को ग्राम सभा में पेश किया जाएगा, जो इस महीने की 21 से 24 तारीख तक होने वाले ‘ग्रामोदय से ग्राम भारत उदय’ के तहत आयोजित होगी। यदि शिकायतें आती हैं तो ग्राम सभा इसकी वजहों को रिकॉर्ड करके सूची में सुधार कर सकती है। इस प्रक्रिया के खत्म होने के बाद उन सभी लोगों की सूची अगले कुछ महीनों में उपलब्ध होगी, जो प्रधानमंत्री आवास योजना के दायरे में होगी। सूची तैयार होने के बाद लाभार्थियों को बताया जाएगा कि उनका नंबर कब आएगा।

इतनी कम अवधि में इतने सारे मकानों के निर्माण से निर्माण सामग्री की कमी के हालात पैदा हो सकते हैं। फ्लाई ऐश से ईंटों और मिट्टी के अर्थ ब्लॉक्स के निर्माण जैसी निर्माण सामग्रियों के उत्पादन को मनरेगा के तहत आने वाली गतिविधियों में शामिल कर दिया गया है। कार्यशाला में बांस के इस्तेमाल पर भी प्रस्तुतीकरण दिया गया। मंत्रालय इस बात का परीक्षण करेगा कि क्या बांस से संबंधित गतिविधियों को मनरेगा विशेषकर पूर्वोत्तर में, के दायरे में लाया जा सकता है।

श्री बीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘निर्माण रोजगार के लिहाज से तेजी से बढ़ता क्षेत्र है। जब तक हम अच्छे मिस्त्री तैयार नहीं करते हैं, तो हमारे लिए मकानों के लक्ष्य को हासिल करना खासा मुश्किल होगा। इसलिए हमने मिस्त्री प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की है।’

भारतीय राष्ट्रीय निर्माण कौशल विकास परिषद ने ग्रामीण मिस्त्री तैयार करने की पहल की है। इसे अभी अपनी वेबसाइट पर जगह दी गई है, जिसे जल्द ही मंजूरी दे दी जाएगी। इससे राष्ट्रीय पर स्वीकृत प्रक्रिया के तहत प्रशिक्षण देना संभव होगा और ग्रामीण मिस्त्री को प्रमाणित किया जा सकेगा।

कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षण सामग्री और अन्य के लिए एक स्टैंडर्ड किट भी पेश की गई। इसके अलावा इस पाठ्यक्रम का इस्तेमाल करते हुए ग्रामीण मिस्त्रियों के लिए पायलट प्रशिक्षण की शुरुआत झारखंड और महाराष्ट्र में कर दी गई है। जल्द ही छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तराखंड में भी इसकी शुरुआत कर दी जाएगी। मिस्त्री प्रशिक्षण के अनुभवों को कार्यशाला में भी सामने रखा गया। एनआईआरडी में एक रूरल टेक्नोलॉजी पार्क की स्थापना भी कर दी गई है। राज्यों में हुए सर्वेक्षणों में मिली जानकारी को भी यहां उपलब्ध कराया जाएगा। यह सभी जानकारी और बाद में मिली जानकारियां भी रूरल हाउसिंग नॉलेज नेटवर्क वेबसाइट पर भी उपलब्ध होगी, जिसे आज ही शुरु किया गया है।

श्री बीरेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के ग्रामीण भाग को सहायक और उपलब्ध माहौल उपलब्ध कराया गया है। हालांकि इसे सफल बनाने के लिए हमें हर स्तर के लोगों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, केंद्र, राज्य और जिला स्तर के अधिकारियों, तकनीक विशेषज्ञ और सिविल सोसायटी के संगठनों की मदद की जरूरत होगी। सबसे बड़ा योगदान लाभार्थी का है। हर किसी के सहयोग से मुझे भरोसा है कि हम इस कार्यक्रम के महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने में सफल होंगे।

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