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46वें अंतर्राष्‍ट्रीय भारतीय फिल्‍म समारोह के दौरान आईसीएफटी-यूनेस्को संगोष्ठी में शारदा रामनाथन, फिलिप क्यू(फ्रांस) और चार्ल्स वैलांर्ड

देश-विदेश

नई दिल्ली: फिल्में क्रांति नहीं कर सकती, लेकिन वे शोर में इजाफा कर सकती हैं – कभी ज्यादा और कभी कम। यह आकलन है हेमल त्रिवेदी का। त्रिवेदी `अमंग द विलिवर्स’ की निर्देशक हैं। भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह, गोवा में त्रिवेदी ने मीडिया के लोगों के बातचीत के दौरान अपना यह आकलन पेश किया। हेमल ने पाकिस्तान में आतंकवाद का हवाला देते हुए कहा कि कुछ कट्टरपंथियों की वजह से पूरे देश को नुकसान उठाना पड़ता है। लोगों को ही खुद इसका हल निकालना होगा। उन्होंने कहा कि इस फिल्म के अप्रैल 2015 में रिलीज के बाद खुद उन्हें धमकियां मिली थीं। अक्टूबर, 2015 में इस फिल्म को दोबारा लांच किया गया।

यह फिल्म पाकिस्तान के एक करिश्माई धर्मगुरु के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। यह फिल्म दो ऐसे किशोरों की भी कहानी है, जिन्होंने धर्मगुरु के नेटवर्क की ओर से चलाए जाने वाले मदरसे में शिक्षा पाई है।

मीडिया के लोगों से बातचीत के दौरान `होस्टेज’ के निर्माता मरियन अरबन ने कहा कि लोग संघर्षों और विभाजन की वजह से दुख झेल रहे हैं। लिहाजा भविष्य की पीढ़ी को ऐसी सड़क बनानी चाहिए, जिसमें कोई बाड़ न हो और न ही कोई सीमा इसे बांटे। उन्होंने कहा कि दुनिया में हर कोई शांति चाहता है लेकिन विभाजन में लगी ताकतें शांति के रास्ते में अड़चन पैदा कर रही हैं। यह पूरी दुनिया में हो रहा है।

फिल्म `होस्टेज’ एक हास्य और दुख से भरी फिल्म है। इसकी कहानी एक स्थानीय वामपंथी अफसर के बेटे और उसके दोस्त के बारे में है। दोनों कम्यूनिस्ट शासन के बंधक हैं। यह फिल्म वयस्कों के दुनिया से उनके पहले संपर्क, रिश्तों की भद्दी असलियत, राजनीति, आप्रवास, धोखाधड़ी और मृत्यु से उनका साक्षात्कार कराती है।

फिल्म `पेत्रोव फाइल’ के निर्देशक जॉर्ज बल्वानोव ने बुल्गारिया में साम्यवाद के खात्मे के बाद सत्ता के हस्तांतरण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हालांकि साम्यवाद की अपनी बुराइयां थीं लेकिन पूंजीवाद ने लोगों को भटकने को छोड़ दिया है। यह फिल्म एक ऐसे शख्स की कहानी है, जिसे साम्यवाद के दिनों में अनजान कारणों से अभिनय करने से रोक दिया गया है।

लेकिन जब बुल्गारिया में साम्यवाद खत्म होता है और अभिनय के लिए जब वह दोबारा मंच पर आता है तो उसे महसूस होता है उसके मार्गदर्शक ने उसके साथ धोखा किया था। उस मार्गदर्शक ने, जिसे उसने सबसे ज्यादा चाहा था। वह अपने आप को एक अजीब दुविधा में पाता है और फिर वह अपने देश को बचाने के लिए नई राजनीतिक पार्टी खड़ी करता है।

फिल्म `ब्लडी जनवरी’ के अजरबैजानी निर्माता कामरान गसिमोव ने कहा, यह फिल्म युद्ध के बारे में नहीं है। यह युद्ध के दौरान लोगों की स्थिति के बारे में है। उन्होंने कहा कि गोवा फिल्म समारोह फिल्मों के प्रदर्शन के लिए बहुत अच्छी जगह है। यह व्यवस्थित समारोह है।

फिल्म `ब्लडी जनवरी’ 20 जनवरी, 1990 के ऐतिहासिक दिन के बारे में बताती है। यह अजरबैजान के लोगों की जिंदगी का ऐतिहासिक दिन था। इस दिन यह छोटा देश जो बाद में अजरबैजान गणराज्य के तौर पर मान्य हुआ, अपनी स्वतंत्रता और आजादी के लिए सोवियत संघ से लड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ था। इस युद्ध ने निर्दोष नागरिकों के नरसंहार का दरवाजा खोल दिया था।

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