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डॉ. हर्षवर्धन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की श्रवणता पर विश्व रिपोर्ट जारी की

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विश्व श्रवण दिवस पर केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष की हैसियत से डब्ल्यूएचओ की वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग जारी की।

कानों के स्वास्थ्य के महत्व को रेखांकित करते हुए डॉ हर्षवर्धन ने डब्ल्यूएचओ की 2018 की रिपोर्ट का उल्लेख किया है जिसमें कहा गया है कि भारत की दो प्रतिशत आबादी मुख्य तौर पर बच्चे ओेटिटिस मेडिया से पीड़ित हैं। उन्होंने कहा, यह इतना व्यापक है कि कुछ लोग यहां तक सोचते हैं कि बच्चों के कानों से बहाव होना स्वाभाविक है। उन्होंने कार्यस्थलों और सड़कों पर शोर के अत्यधिक स्तर के कारण श्रव्य हानि, अटोटॉक्सिक दवाओं और रसायनों के कारण श्रव्य हानि जैसी अन्य समस्याओं, तेज आवाज में संगीत सुनने और गलत तरीके से सुनने (भारत में स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने वाले 75 करोड़ लोग हैं) के कारण लोगों के श्रव्य स्वास्थ्य से जुड़े जोखिमों का उल्लेख किया।

उन्होंने उपस्थित जनसमूह को भारत के लोगों में श्रव्य हानि और उसके कारणों को लेकर हाल में संपन्न अध्ययन के संबंध में बताया : डब्ल्यूएचओ की अनुशंसा के अनुसार “आकार के अनुपात में प्रायिकता” (पीपीएस) सैम्पल तकनीक से भारत में 6 स्थलों पर विभिन्न केन्द्रों और वर्गों के 92,097 लोगों से संपर्क किया गया। डब्ल्यूएचओ के मानदंडों के अनुरूप प्योर टोन ऑडियोमेट्री, टिम्पेनोमेट्री, ओटो-अकाउस्टिक एमिशन्स, व्यवहारगत पर्यवेक्षण ऑडियोमेट्री और नाक-कान-गले की जांच सहित आयु के उपयुक्त श्रवण परीक्षण विशेष रूप से तैयार ध्वनि उपचारित ऑडियोलॉजिकल बस में किया गया। आकार के हिसाब से यह विश्व का आज तक का सबसे बड़ा अध्ययन है।

इन नतीजों में भारत की जनसंख्या में श्रव्य हानि का बदलता हुआ परिदृश्य दिखाई देता है और इसमें आर्थिक विकास के साथ दुनिया के दूसरे देशों के समान ही बदलाव हो रहे हैं। अध्ययन में दिखाया गया है कि श्रव्य निशक्तता हानि ने 2.9 प्रतिशत आबादी को प्रभावित किया है और इससे संवाद, शिक्षा और कार्य पर असर हुआ है। श्रव्य हानि की व्याप्ति ग्रामीण आबादी में कहीं अधिक है। पूरी तरह से श्रव्य हानि, एकपक्षीय और दोपक्षीय, 9.93 प्रतिशत के उच्च स्तर पर है। पूर्ण श्रव्य हानि में 40.5 प्रतिशत और सभी श्रव्य निशक्तता हानि में 72.4 प्रतिशत वृद्ध आबादी शामिल है। अध्ययन का सेंसर न्यूरल हियरिंग लॉस (एसएनएचएल) से जुड़े जोखिमों की पहचान करने में भी महत्वपूर्ण योगदान है। एसएनएचएल से जुड़े जोखिमों में तंबाखू सेवन, बहुत अधिक धूम्रपान, कार्य से संबंधित शोर या अत्यधिक रिहाइशी शोर को माना जाता है।

डॉ. हर्षवर्धन ने राष्ट्रीय बधिरता रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम के संबंध में उपस्थित जनसमुदाय को जानकारी दी जिसमें श्रव्य निशक्तता हानि से पीड़ित और उपचार की जरूरतमंद 6 प्रतिशत आबादी को लक्ष्य किया गया है। 2006 में आरंभ किया गया यह कार्यक्रम श्रव्य हानि की रोकथाम विशेषकर कानों में संक्रमण और शोर से होने वाली श्रव्य हानि, श्रवण बाधित शिशुओं और सुनने में असमर्थ लोगों की शीघ्र पहचान, समय पर उपयुक्त उपचार और दवाओं, सर्जरी, श्रवण उपकरणों तथा पुनर्वास जैसी सेवाएं उपलब्ध कराने पर केन्द्रित है। कार्यक्रम के अंतर्गत 2019-20 में 30 हजार से अधिक निशुल्क नाक-कान-गले की सर्जरी की गईं और करीब 24 हजार श्रवण उपकरण वितरित किए गए। उन्होंने कहा, भारत सरकार की पूर्ण सहायता वाले 35 करोड़ (50 लाख अमेरिकी डॉलर) के वार्षिक क्रियान्वयन बजट के साथ राष्ट्रीय बधिरता रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम देश के 595 जिलों में, देश की करीब 80 प्रतिशत आबादी तक पहुंचा है और प्रति वर्ष बढ़ रहा है।

डॉ. हर्षवर्धन ने उपस्थित लोगों को बताया कि देश में कोविड महामारी के सीमित होते जाने के साथ ही सरकार की योजना रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के आधार पर कानों और श्रव्य स्वास्थ्य की देखभाल के कार्य को और मजबूती प्रदान करने की है।

  • रिपोर्ट में सुझाई गई रणनीतियों के अनुरूप स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण के माध्यम से सामुदायिक और प्राथमिक स्तर पर सेवाओं में सुधार करना।
  • सभी जरूरतमंदों तक सस्ती श्रवण तकनीक  पहुंच का विस्तार।
  • श्रव्य हानि की रोकथाम के लिए सुरक्षित सुनने के संबंध में हमारे युवाओं में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रभाव का इस्तेमाल कर जागरूकता बढ़ाना।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एड्हनोम गैब्रेयेसस, निदेशक, गैर संक्रामक बीमारी विभाग, डब्ल्यूएचओ डॉ. बेन्टे मिकेलसेन, डब्ल्यूएचओ, हैल्थ इमरजेंसी प्रोग्राम में लर्निंग एंड कैपेसिटी डेवलपमेंट विभाग की प्रमुख डॉ. गाया मैनोरी गैम्बेरावी, कानों और श्रवण देखभाल कार्यक्रम, डब्ल्यूएचओ, की लीड अधिकारी डॉ. शेली चड्ढा और डब्ल्यूएचओ के वरिष्ठ अधिकारी कार्यक्रम में उपस्थित थे।

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