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देहरादून के एस्लेहाल चैक से प्लास्टिक से निर्मित सडक के निर्माण कार्य का शुभारम्भ करते हुएः जिलाधिकारी रविनाथ रमन

उत्तराखंड

देहरादून: हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तरखण्ड में प्लास्टिक रोड़ निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है, जिसका शुभारम्भ आज जिलाधिकारी देहरादून रविनाथ रमन व विभागाध्यक्ष लो.नि.वि एच.के उपे्रती ने यहां एस्लेहाल चैक से कार्य का शुभारम्भ किया गया। इस अवसर पर जिलाधिकारी रविनाथ रमन ने कहा कि घरों एवं दुकानों से संकलित अनुपयोगी प्लास्टिक मटीरियल को बिटूमिन के साथ 10 प्रतिशत् अनुपात के साथ मिलाकर सड़कों का डामरीकरण किये जाने की रणनीति बनाई गई है। जिसे प्रयोग के तोर पर प्रथम चरण में एस्लेहाॅल चैक से विकासभवन चैक तक 200 मीटर निर्माण किया जा रहा है, लागत 5 लाख रू0 आ रही है। उन्होने कहा कि इसके अच्छे परिणाम आने पर मुख्यमंत्री द्वारा पूरे प्रदेश में प्लास्टिकयुक्त सड़क निर्माण करवाने की योजना है। उन्होने कहा कि इस प्रकार की सड़क निर्माण करने से जहां रख-रखाव की अवधि 20 प्रतिशत् बढ जाती है वहीं सड़क निर्माण की लागत में 25 प्रतिशत की कमी अनुमानित है। उन्होने कहा की पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से यह निर्माण वातावरण सन्तुलन में सहायक है। उन्होने कहा कि लो.नि.वि ने वेस्ट प्लास्टिक (अनुपयोगी प्लास्टिक) का संकलन कर एस.ओ.पी में शामिल किया जायेगा। उन्होने कहा कि नगर निगम द्वारा इस कार्य हेतु लोक निर्माण विभाग को 1.6 टन प्लास्टिक/पाॅलिथिन उपलब्ध कराया गया है।
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष लो.नि.वि एच. के उपे्रती ने कहा कि भारत सरकार द्वारा भी इस प्रकार की सड़कों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है, जिनसे पर्यावरण संवर्द्धन में सहायक होगा तथा जिसे स्वच्छ भारत मिशन में शामिल किया गया है। उन्होने कहा कि प्रदेश में इस तरह की सड़कें हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर बनाई जायेंगी।
अपर सचिव मुख्यमंत्री सचिवालय हिमाचल प्रदेश राकेश कपूर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में अब-तक लगभग 340 कि.मी. लम्बाई की प्लास्टिक /पाॅलिथिन निर्मित रोड निर्माण किया जा चुका है। जिसकों देखते हुए केन्द्र द्वारा इसको प्रोत्साहन दिये जाने का प्रयास किया जा रहा है। उत्तराखण्ड सरकार ने इस योजना में रूची दिखाई जिसके फलस्वरूप आज प्लास्टिक निर्मित सड़क निर्माण कार्य का शुभारम्भ किया गया है। उन्होने कहा कि ’ठोस कचरा प्रंबधन’ की इस विकराल समस्या व कचरे के रोज ऊंचे होते पहाड़ को आखिर पहाड़ का ही सहारा मिला। ठोस कचरे में सबसे विकट व अक्षरणीय कचरे का प्रंबधन सबसे बडी चुनौती है। इसका अनुभव पूना महानगर पालिका, नगर निगम शिमला व धर्मशाला के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। वर्ष 2006 में मात्र 640 मी0 टन ठोस कचरा उत्सर्जित करने वाले पूना महानगर पालिका क्षेत्र में वर्ष 2014 में यह मात्रा 1680 मी0 टन पहुंच गई। “ठोस कचरा“ प्रबंधन के कथित वैज्ञानिक प्रबंधन व कचरे से उर्जा बनाने वाले सभी प्रयासों में अक्सर कुछ समय बाद कचरे के ढेर को षडयन्त्र कारी योजनाबद्ध तरीके से आग लगाकर धू-धू जलाया जाता है, और ठोस कचरे में मौजूद “प्लास्टिक कचरा“ जलने पर वायू प्रदूषण का एक बडा कारण महानगरों में बनता जा रहा है जिसे कैंसर-श्वसन तन्त्र की गम्भीर बीमारियों में वृ़िद्ध होती जा रही है। इस प्रकार के प्रबन्धन से इसे रोका जा सकता है।

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