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कोयला मंत्रालय ने सतत विकास प्रयासों को तेज किया: सतत विकास प्रकोष्ठ का गठन किया

देश-विदेश

‘पंचामृत रणनीति’ के तहत सीओपी 26 में प्रधानमंत्री द्वारा हाल ही में नए जलवायु लक्ष्यों की घोषणा के साथ ही भारत ने स्वच्छ ऊर्जा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। चूंकि कोयले को फिलहाल हमारे देश में बिजली उत्पादन के लिए प्राथमिक ईंधन की भूमिका तब तक निभानी है, जब तक नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत पूरी तरह से हमारी ऊर्जा मांग को पूरा नहीं कर पातेI कोयला मंत्रालय प्रतिबद्धता के अनुरूप अब व्यापक सतत विकास योजना के साथ पहले ही आगे बढ़ चुका है। इसके त्वरित क्रियान्वयन के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है। अतः अब कोयला खनन में इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सतत विकास पर विशेष जोर देना है।

    खनन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए सलाह, परामर्श और योजना कार्रवाई हेतु कोयला मंत्रालय में एक पूर्ण विकसित सतत विकास प्रकोष्ठ (एसडीसी) की स्थापना की गई है। आगे का रास्ता सुझाने और इसके कार्यान्वयन और निगरानी के अलावा यह सतत विकास प्रकोष्ठ (एसडीसी) हमारे देश के कोयला और लिग्नाइट क्षेत्र में पर्यावरणीय शमन के लिए भविष्य की नीतिगत रूपरेखा भी तैयार कर रहा है। सिंगरेनी कोल कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) और एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) के साथ कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) तथा उसकी सहायक कंपनियों द्वारा व्यापक काम पहले ही शुरू हो चुका है, जिसका प्रभाव अब इनमें से कुछ खनन कंपनियों में देखा जा सकता है।

अब से वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन तक कम करने की देश की प्रतिबद्धता के अनुरूप, सभी कोयला कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान के माध्यम से खनन की गई भूमि पर जैविक सुधार पहले ही बड़े पैमाने पर किये जा चुके हैं। अगले पांच वर्षों में वृक्षारोपण के लिए 12000 हेक्टेयर से अधिक भूमि को कवर करने का लक्ष्य है जो प्रति वर्ष एक लाख टन से अधिक कार्बन सिंक क्षमता रखने में मदद करेगा। ऐसे प्रयासों की निगरानी रिमोट सेंसिंग)के जरिए की जा रही है।

      वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने की हमारी प्रतिबद्धता में योगदान करने के लिए कोयला और लिग्नाइट कंपनियों ने 15,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के साथ अतिरिक्त 5560 मेगावाट नवीकरणीय क्षमता स्थापित करने की योजना बनाई है। इससे कुल स्थापित क्षमता 7 गीगावॉट हो जाएगी। अकेले कोल इंडिया ने अपने शुद्ध शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अगले 5 वर्षों में 3 गीगावाट सौर ऊर्जा स्थापित करने की योजना बनाई है।

पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए कोयला कंपनियों द्वारा फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी – (एफएमसी) परियोजना एक अन्य प्रमुख पहल है, जिसमें कोयले को कोल हैंडलिंग प्लांट से साइलो तक लदान के लिए कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से ले जाया जा रहा है। यह प्रक्रिया सड़क के माध्यम से कोयले की आवाजाही को समाप्त करती है। एक बड़ा कदम उठाते हुए ऐसी 39 परियोजनाओं को 2023-24 तक चालू करने की योजना बनाई गई है, जिसमें 13000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) 2023-24 तक अकेले ही कोयले के अपने यांत्रिक लोडिंग और परिवहन को 120 मिलियन टन के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर 565 मिलियन टन कर देगा। इन एफएमसी परियोजनाओं से हर वर्ष 2100 करोड़ रुपये के डीजल की बचत होगी। वाहन घनत्व में 2770 ट्रक प्रति घंटे की कमी आएगी तथा इससे कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी का मार्ग प्रशस्त होगा।

इसी तरह सिन गैस (एसवाईएन) उत्पादन के लिए भूतल कोयला गैसीकरण परियोजनाओं की योजना बनाई गई है जिसका उपयोग आगे या तो मेथनॉल / इथेनॉल, यूरिया या फिर पेट्रो रसायनों के उत्पादन के लिए किया जाएगा। 2.5 एमटीपीए क्षमता की एक ऐसी अपेक्षाकृत कम कार्बन फुटप्रिंट और पर्यावरण प्रदूषण के साथ  पर्यावरण  अनुकूल (हरित) कोयले के रूप में सूखे ईंधन के उपयोग के लिए सीआईएल की संयुक्त उद्यम परियोजना पहले से ही ओडिशा के तालचर कोयला क्षेत्र में चल रही है। लगभग 30,000 करोड़ रुपये के निवेश वाली अन्य पांच परियोजनाएं सीआईएल की विभिन्न सहायक कंपनियों द्वारा तैयार की जा रही हैं।

खनन और कोयला परिवहन उपकरणों में डीजल की खपत को प्रतिस्थापित करने के लिए द्रवीकृत प्राकृतिक गैस के उपयोग की भी बड़े पैमाने पर योजना बनाई गई है। एक कोयला कंपनी में पायलट परियोजना शुरू की गई है। कार्बन फुटप्रिंट में पर्याप्त कमी के लिए पहले चरण में कोयला परिवहन वाले डंपरों में जल्द ही इस तकनीक को दोहराया जाएगा ।

सामाजिक मोर्चे पर कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), सिंगरेनी कोल कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) और एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) की खनन सहायक कंपनियों के नियंत्रण क्षेत्र में और उसके आसपास की ग्रामीण जनसंख्या को सिंचाई के लिए खदान के पानी का लाभकारी उपयोग किए जाने और पीने के लिए उपचारित पानी उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दी गई है। खनन कार्य के दौरान छोड़े गए खदान के पानी की भारी मात्रा का उपयोग आंशिक रूप से खनन क्षेत्र में आंतरिक खपत के लिए कम्पनियों के आवासीय परिसर  में पीने के पानी, धूल को कम करने आदि के लिए किया जाता है। सीआईएल की कुछ सहायक कंपनियां पहले से ही सिंचाई के उद्देश्य से खदान का पानी और आसपास के गांवों को पीने का पानी उपलब्ध करा रही हैं। अगले 5 वर्षों में आसपास के गांवों को पीने और सिंचाई के उद्देश्य से 4600 लाख घन मीटर खदान का पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य हैI  इसमें लगभग 3.4 लाख एकड़ ग्रामीण भूमि की सिंचित क्षमता के साथ 16.5 लाख की ग्रामीण जनसंख्या को शामिल किया जाएगा।

स्वच्छ पर्यावरण के मोर्चे पर कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), सिंगरेनी कोल कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) और एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) की सभी सहायक कंपनियों में खनन क्षेत्र में 12 नए पर्यावरण (इको) -पार्क विकास के विभिन्न चरणों में हैं और अगले साल तक बन कर तैयार हो जाएंगे। वेस्टर्न कोलफील्ड्स (डब्ल्यूसीएल) ने नागपुर के पास अपने खनन क्षेत्र में पहले से ही एक विशाल इको-पार्क विकसित किया है और महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एमटीडीसी) के सहयोग से भारत में अपनी तरह का पहला ऐसा पर्यावरण-खान पर्यटन परिपथ (इको-माइन टूरिज्म सर्किट) चला रहा है, जहां लोग  खुली खदान और भूमिगत (ओपनकास्ट एंड  अंडरग्राउंड माइन) दोनों के खनन कार्यों को देखने के लिए आते हैं। इसी तरह के प्रारूप में विभिन्न कोयला कंपनियों में पर्यावरण संरक्षण में कोयला कंपनियों द्वारा किए गए प्रयासों को प्रदर्शित करने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के साथ जल्द ही पर्यावरण-खान पर्यटन परिपथ ( इको-माइन टूरिज्म सर्किट) शुरू होने जा रहे हैं। कोयला परिवहन सड़कों के किनारे और खदानों के किनारों पर बांस के रोपण से धूल प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी ।

      निर्माण कार्यों में उपयोग के लिए ओवर बर्डन (ओबी) डंप से रेत का निकालना सतत विकास के लिए एक और अनूठी पहल है। इससे न केवल घर और अन्य निर्माण कार्यों  के लिए जनता को सस्ती रेत की उपलब्धता में मदद मिलेगी बल्कि भविष्य की परियोजनाओं में ओबी डंप के लिए आवश्यक भूमि के आकार में भी भी कमी आएगी। ऐसा प्रयास वेस्टर्न कोलफील्ड्स (डब्ल्यूसीएल) में पहले ही शुरू हो चुका है जहां बड़े रेत प्रसंस्करण संयंत्र के माध्यम से उत्पादित रेत का उपयोग प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के अंतर्गत  कम लागत वाली आवास योजना के लिए और अन्य सरकारी और निजी एजेंसियों द्वारा निर्माण कार्यों के लिए भी किया जा रहा है। अगले 5 वर्षों में 1.3 करोड़ घन  मीटर से अधिक उत्पादन करने  वाले रेत संयंत्र विभिन्न कोयला और लिग्नाइट कंपनियों में लगाए जा रहे हैं।

इसके अलावा कार्बन फुट प्रिंट में कमी के लिए ऊर्जा दक्षता के उपाय भी किए जा रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न कोयला कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर नए पर्यावरण अनुकूल खनन उपकरण भी प्रस्तुत किए गए हैं।

इन सभी गतिविधियों से आने वाले पांच वर्षों में कोयला उद्योग द्वारा आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक मोर्चे पर बेहतर सतत विकास हेतु प्रयास और सीओपी 26 में की गई प्रतिबद्धता के अनुरूप बेंचमार्किंग का मार्ग प्रशस्त होगा ।

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