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छठ पूजा 2018: नहाय खाय के साथ रविवार को शुरू होगा पर्व, इन बातों का जरूर रखें ध्यान

उत्तराखंड

देहरादून: उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार का प्रसिद्घ छठ पर्व रविवार से शुरू हो रहा है। छठ मनाने के लिए हजारों श्रद्घालु गंगा नगरी पहुंच गए हैं। रविवार को अनेक छोटी-छोटी छठ यात्राएं विभिन्न क्षेत्रों से निकलेंगी। यह सभी यात्राएं ललतारौ पुल पर आपस में मिलकर मुख्य यात्रा में परिवर्तित हो जाएंगी। हरकी पैड़ी पर सैकड़ों पूर्वांचल वासियों की ओर से मां गंगा का दुग्धाभिषेक किया जाएगा। इसी के साथ चार दिन चलने वाला छठ महोत्सव प्रारंभ हो रहा है।

छठ पर्व की शुरूआत घरों में पूजा बैठाकर होती है। शोभायात्रा निकालते हुए सैकड़ों महिलाएं अनेक कालोनियों एवं मोहल्लों से सिर पर मंगल कलश लेकर गीत गाते हुए रवाना होंगी। ललतारौ पुल पर सभी यात्राओं का मिलकर महायात्रा में बदल जाएंगी। हरकी पैड़ी पहुंचकर इस यात्रा में तीर्थ यात्री भी शामिल होंगे। हरकी पैड़ी पर पूर्वांचल वासी गंगा स्नान करेंगे और दूध से मां गंगा का अभिषेक किया जाएगा। यहां से सभी स्त्री पुरुष गंगाजल भरकर अपने-अपने घरों पहुंचेंगे। घरों के पूजा स्थल पर छठ पूजा के पवित्र डाले स्थापित कर दिए जाएंगे।

खरना के साथ छठ पूजा की शुरूआत एक बार फिर सोमवार को होगी। इस दिन घरों में अनेक प्रकार के पकवान बनाए जाएंगे। पहला भोजन लौकी और चावल का किया जाएगा। 12 नवंबर की रात से व्रत प्रारंभ हो जाएगा। 13 नवंबर को सायंकाल मुख्य पर्व होगा। इसी दिन हजारों महिलाएं पवित्र डाले लेकर गीत गाते हुए गंगा के तटों पर जाएंगी। वहां अस्त होते सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा। पर्व का समापन 14 नवंबर को सुबह उगते सूर्य को जल चढ़ाने के बाद होगा।

मान्यताओं के मुताबिक छठ पर्व के दौरान पीतल और तांबे से बने पात्र से अर्घ्य देना चाहिए। तांबे के पात्र में दूध डालकर अर्घ्य नहीं देना चाहिए। वेदाचार्यां के मुताबिक छठ खासकर शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है।

नहाय खाय से सप्तमी के पारण तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है जो श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं। वैसे तो यह पर्व साल में चैत्र शुक्ल षष्ठी और कार्तिक शुक्ल षष्ठी दो तिथियों में मनाया जाता है, लेकिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को मुख्य माना जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ माई पूजा और सूर्य षष्ठी पूजा नाम से जाना जाता है।

पूजा का महत्व
छठ पूजा या उपवास रखने में सबके अपने-अपने कारण होते हैं। लेकिन मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिए की जाती है। इनकी कृपा से सेहत अच्छी रहती है। घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। सूर्य जैसी श्रेष्ठ संतान के लिए भी इस दिन उपवास रखा जाता है।

कौन हैं देवी षष्ठी और कैसे हुई उत्पत्ति

छठ देवी को सूर्य देव की बहन बताया जाता है, लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई है। देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई है। यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता है। यदि आप संतान प्राप्ति की कामना करते हैं तो मेरी विधिवत पूजा करें। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को करने का विधान बताया गया है।

पौराणिक ग्रंथों में इसे रामायण काल में श्रीराम के अयोध्या आने के पश्चात मां सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है। महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र की प्राप्ति से भी इसे जोड़ा जाता है। सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था वह भी सूर्यदेव के बहुत बड़े उपासक थे। वे घंटों जल में रहकर सूर्य की पूजा करते थे। मान्यता है कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही। इसी वजह से लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिए कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करते हैं।

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