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काकोरी कांड के बाद चन्द्रशेखर आजाद साथियों के साथ यहां ली थी शरण

Chandrashekhar Azad kakori scandal took refuge here with peers
उत्तर प्रदेश

देहरादून: उत्तराखंड में बहुत से ऐसे स्थान हैं जो ऐतिहासिक, व्यापारिक दृष्टि से जंग-ए-आजादी की लड़ाई के दौरान काफी महत्वपूर्ण रहे हैं. लेकिन समय ने उन स्थानों को आजादी के बाद हाशिये पर ऐसे धकेला कि आज वही स्थान अपनी पहचान के लिए जद्दोजहद कर रहें हैं.

कोटद्वार से 15 किलोमीटर की दूरी पर दुगड्डा बाजार आज भले ही हाशिये पर चला गया हो, लेकिन जंग-ए-आजादी की लड़ाई के दौरान इस कस्बे से पूरे गढ़वाल में क्रांतिकारी आंदोलनों की लौ जला करती थी. स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों के प्रचार-प्रसार के प्रमुख केन्द्रों में से एक दुगड्डा ही वह केंद्र हुआ करता था, जहां पूरे गढ़वाल के क्रांतिकारी आपस में मिल कर जंग-ए-आजादी की योजना बनाया करते थे.

इस नगर दुगड्डा की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पर आजादी की लड़ाई के दौरान केवल दो बार जवाहरलाल नेहरू स्वंतत्रता संग्राम आंदोलनों का नेतृत्व करने पहुंचे बल्कि चन्द्रशेखर आजाद ने भी अपने साथियों के साथ काकोरी कांड के बाद यहां पहुंच कर शरण ली थी.

इतना ही नहीं, इतिहासकार राम अवतार गर्ग की मानें तो जंगआजादी की लड़ाई के दौरान दुगड्डा पूरे गढ़वाल क्षेत्र की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी भी हुआ करती थी और यहां का व्यापार तिब्बत तक हुआ करता था. दुगड्डा नगर की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी से पहले ही 1945 में इसको टाउन एरिया का दर्जा दे दिया गया था.

स्थानीय व्यापारी शिव दयाल और दुगड्डा पालिकाध्यक्ष दीपक बडोला ने कहा कि आज इस ऐतिहासिक नगरी दुगड्डा की पहचान को बनाए रखने की जरूरत है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी यह जानकारी मिल सके कि जिस आजादी की खुली हवा में आज हम सांस ले रहे हैं उसमें दुगड्डा का क्या योगदान था.

कविन्द्र पयाल
ब्यूरो चीफ
उत्तराखण्ड

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