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बेलगाम,बेजुबान आतंकियों से बचाओ

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: राजधानी समेत सूबे की हर घनी बस्ती में बंदरों, कुत्तों, आवारा गाय-सांड़ों का जबर्दस्त आतंक है | वहीं गांवों, खेत-खलिहानों में नील गाय से लेकर तेंदुए हमलावर हैं | इधर इन आतंकियों ने सरेआम बच्चों से लेकर बूढों तक की हत्याएं करनी शुरू कर दी हैं , मगर इनके लिए कोई क़ानून नहीं है, कोई सजा नहीं है, कोई जेल नहीं है और न ही कोई सुधार गृह ? ये आतंकी कुत्ते सीतापुर में लगातार 5 दिनों में आधा दर्जन मासूम बच्चों को मौत के घाट उतार चुके हैं और एक सैकड़ा से अधिक को घायल कर चुके हैं | इनको पकड़ पाने के तमाम जतन बेमानी साबित हो रहे हैं | वहीं गोंडा में तेंदुए को लकडबग्घा बताये जाने की तर्ज पर पशु प्रेमी संस्थाएं कुत्तों को सियार,लकडबग्घा साबित करने के साथ प्रशासन पर जबरिया अपना दबाव बनाकर पीड़ितों की अनदेखी कर रही हैं | उनकी हां में हां मिलाने का काम एनिमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य भी कर रहे हैं | बता दें ये पशु प्रेमी संस्थायें एनजीओ के नाम पर पशुओं के लिए कोई सार्थक काम न करके महज हल्ला-गुल्ला मचाकर मीडिया की सुर्खियां पाने भर तक सीमित रहते हैं | यही नहीं अभिनेत्रियों,मॉडलों की देखा-देखी खाए-पिए अघाए लोगों की तस्वीरें उनके पपी के साथ अक्सर सोशल मीडिया पर दिख जाती हैं, जबकि इन्ही की बिरादरी पशु प्रेम का हल्ला मचाने में सबसे आगे दिखती है

अकेले लखनऊ में पिछले साल भर में कुत्तों ने एक दर्जन से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया और एक सैकड़ा से अधिक को घायल किया है | अस्पतालों के प्रसूति गृह, पोस्टमार्टम हाउसों से लेकर दुधमुहों के शवों के नोचने की दसियों घटनाएं राजधानी से छपने वाले अखबारों में सुर्खियाँ पा चुकी हैं | इनके हिंसक होने के कई तर्क इसी साल फरवरी में तब दिए गये थे जब लखनऊ के लगभग हर इलाके में कुत्तों के आतंकी हमलों की बाढ़ आ गई , जो आज भी रुकी नहीं है | पशु चिकत्सक विशेषज्ञों का कहना है कि सामजिक बदलाव व पशु वधशालाओ से निकलने वाले अवशेषों के न मिलने से हिंसक हो रहे हैं कुत्ते | दिन हो या रात गली-मोहल्लों से राजपथ तक इनके हमलावर दस्ते देखे जा सकते हैं | हुसैनगंज (विधानसभा मार्ग) चौराहे पर दो दर्जन कुत्तों से अधिक की टोली के साथ उनके शहंशाह को कभी भी गश्त करते देखा जा सकता है |

बंदरों के आतंक की खबरें भी गजब दहलाने वाली हैं , कहीं उनके डर से रात में सोता हुआ आदमी छत से नीचे गिर कर मर जाता है,कहीं स्कूलों में घुस कर बच्चों को काट कर घायल कर देते है, कहीं युवतियों के हॉस्टलों में घुस कर उत्पात ही नहीं मचाते बल्कि उनके साथ शोहदई तक करते हैं | पिछले दिनों अखबारों में सुर्खियां थीं, शाहजहांपुर की कचेहरी में बंदरों ने ठंढे पानी की मशीन का पाइप तोड़ दिया जिसके कारण तीन दिनों तक 8 सौ वकील,कर्मचारी,हवालाती कैदी उनके मुलाकाती और वादाकारी समेत हजारों लोग प्यास से भटकते रहे, तिस पर सरकारी नल सरकार की तरह बेहाल ! दूसरी खबर गोरखपुर नगर निगम की फाइलों की बंदरों द्वारा जांच-पड़ताल की और तीसरी खबर बरेली रोडवेज बस अड्डे पर बन्दर के रोडवेज बस लेकर भागने ने खासी सुर्खियां पाई थीं | इन आतंकवादियों का खौफ और हमलावर नजारा चारबाग रेलवे स्टेशन पर कभी भी देखा जा सकता है |

ऐसा नहीं है कि नगर निगम व वन विभाग के पास इनसे निपटने के लिए बजट नहीं है या संसाधन नहीं हैं मगर आरामतलबी,काम न करने की कार्यशैली और रिश्वतखोरी आड़े आ जाती है | हालांकि मुख्यमंत्री ने पिछले महीने ही अपनी शैली में प्रदेश को रेबीज मुक्त बनाने व आवारा कुत्तों पर नियंत्रण पाने के आदेश अधिकारियों को दिए थे | यही नहीं साल की ऐन शुरुआत पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने महाभारतकाल के उदाहरण के साथ  बड़ी-बड़ी बातें करते हुए देश भर के आवारा कुत्तों को प्रशिक्षण देकर इन्हें सुरक्षा के लिए तैयार किया जाए और इसके लिए एक वाच डॉग बनाया जाएगा , डॉग यूनिवर्सिटी बनाई जायेगी | उन्होंने पशु प्रेमियों से इसके लिए  सुझाव मांगे थे , नये  नियम बनाने की बात कही थी लेकिन 5 महीने बीत रहे हैं न सुझाव , न नियम और ये आतंकी खुलेआम हत्याएं कर रहे हैं |

बताते चलें कि अमेरिका में हुए एक शोध में साबित हो चुका है कि बंदरों की चिम्पैंजी प्रजाति जहां मलेरिया फैलाने में सहायक हैं, वहीं शहरों में घूम रहे बंदरों के मल-मूत्र से पैदा हो रहे कीटाणुओं से संक्रामक रोग फैलने  से रोकने के गम्भीर प्रयास करने होंगे | कुत्तों के एक ग्राम मल में 2 करोड़ से अधिक इ कोली सेल होते हैं और लाखों कुत्तों का मल-मूत्र हवा में कीटाणु ही नही घोल रहे बल्कि भूजल के जरिये गम्भीर बीमारियां फैलाने में सहायक हैं | नगर निगम के अधिकारी पशु क्रूरता निवारण  नियम की दुहाई देकर अपने हाथ खड़े कर लेते हैं तो वन विभाग के अधिकारी इसे अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर बता कर पल्ला झाड़ लेते हैं | अकेले राजधानी में इन आतंकियों की संख्या लाखों में है | बतादें राजधानी में करीब 50 बीघे में बना कान्हा उपवन सफेद हाथी की तरह मौजूद है, वहां मौजूद गायों,आवारा जानवरों के चारे तक का सही इंतजाम नहीं है | एक कांग्रेसी नेता का सवाल है कि मासूम बच्चों की असमय मौत का ठेका इस सरकार ने हासिल कर लिया है ? पहले गोरखपुर के अस्पताल में, फिर फर्रुखाबाद के अस्पताल में,कुशीनगर बस-ट्रेन हादसे में और अब कुत्तों के हमले में मासूमों की जाने जा रही हैं ! बहरहाल बंद करनी होगी बातों के बताशे बांटने की कवायद और सुननी होगी नागरिकों की पुकार |

-राम प्रकाश वरमा

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