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देहरादून के अक्षत जोशी ने जाइलोफोन पर अपनी प्रस्तुति देकर विरासत में लोगो का दिल जिता

उत्तर प्रदेश

देहरादून: विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के छठा दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। विरासत साधना कार्यक्रम के अंतर्गत देहरादून के 12 स्कूलों ने प्रतिभाग किया जिसमें कुल 17 बच्चों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत, गायन और नृत्य पर अपनी प्रस्तुतियां दी। विरासत अपने इस कार्यक्रम के माध्यम से युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़ना और भारतीय शास्त्रीय संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास कर रहा है। शो का मुख्य आकर्षण सेंट कबीर अकादमी के अक्षत जोशी थे जिन्होने जाइलोफोन पर अपनी प्रस्तुति देकर मैजुद दर्शको को आनंदित कर दिया। विरासत साधना कार्यक्रम मे छात्रों ने भरतनाट्यम और कथक नृत्य पर अपनी प्रस्तुति दी वही स्वर गायन में राग बागेश्री और राम का गुण गान जैसे गायन से छात्रों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। विरासत साधना में प्रतिभाग करने वाले स्कूलों में आईटी चिल्ड्रन एकेडमी-नृत्य किंकीनी, झंकार डांस स्कूल, ओलंपस हाई स्कूल, द ओएसिस, स्वामी वीणा महाराज म्यूजिक एंड डांस एकेडमी, गली म्यूजिक एकेडमी, तुलाज इंटरनेशनल स्कूल, दिल्ली पब्लिक स्कूल, सेंट जूड्स स्कूल, हिल फाउंडेशन स्कूल, सेंट कबीर अकादमी और ग्राफिक एरा ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।

सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं कालू राम बमानिया द्वारा लोक संगीत प्रस्तुत किया गया। कालू राम बमानिया मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के एक लोक गायक हैं और वे सूफी, भक्ति और पारंपरिक लोक गीत को गाना पसंद करते है। वे अपने अनोखे तरीके से कबीर भजन, मीरा, सूरदास, गोरखनाथ कि रचना भी गाते हैं। उनका मानना है कि कबीर एक संपूर्ण दर्शन है और भगवान सभी के भीतर हैं जो दूसरों के प्रति अच्छाई भगवान को सदेव जगाये रखता है।

वही सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में शिंजिनी कुलकर्णी द्वारा कथक नृत्य प्रस्तुत किया गया। शिंजिनी कुलकर्णी कालका बिंदादीन वंश की नौवीं पीढ़ी में जन्मी है एवं वे प्रसिद्ध कथक नर्तक स्व पं बिरजू महाराज की पोती हैं। उन्होंने कथक नृत्य का प्रशिक्षण अपने दादा से पांच साल की उम्र में सीखना शुरू किया था।

उन्होंने भारत में खजुराहो नृत्य महोत्सव, ताज महोत्सव, कालिदास महोत्सव, कथक महोत्सव आदि जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में अपने नृत्य का प्रदर्शन किया है। वही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को, ह्यूस्टन, मिनियापोलिस, बैंकॉक, तेहरान जैसे जगहो में भी अपनी प्रस्तुति दिए हैं। शिंजिनी कुलकर्णी को अपने दादाजी की नृत्यकलाओं जैसे नृत्य केली, होली उत्सव, कृष्णयन और लोहा का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला है। शिंजिनी कुलकर्णी ने आज के अपने प्रस्तुति को अपने गरू और नाना जी स्व प बिरजु महाराज को श्रद्धांजलि स्वरूप भेट किया जो 13 मातृ जैत ताला है। इस प्रस्तुति में सितार पर विशाल मिश्रा, वोकल में जकी खान, पदांत पर आर्यव आनंद एवं तबला पर शुभ महाराज थे।

आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतिम प्रस्तुतियों में आमिर अली खान द्वारा सरोद वादन कि प्रस्तुतियां हुई। आमिर अली खान भोपाल के संगीतकारों के एक प्रसिद्ध परिवार से हैं और वे अपने परिवार की सातवीं पीढ़ी के संगीतकार हैं। उन्होंने अपने दादा उस्ताद अब्दुल लतीफ खान से सरोद बजाना शिखा जो एक प्रसिद्ध सारंगी वादक थे। उनके पिता नफीज अहमद खान, एक तबला वादक हैं और जो अक्सर अपने बेटे के साथ जाते हैं।

आमिर अली खान जी को सरोद से लगाव तब हुआ जब उनके पिता ने उन्हें उस्ताद अमजद अली खान के संगीत कार्यक्रम में ले गए, जिनसे वे सरोद वादन सीखना चाहते थे, लेकिन चूंकि वे अपनी प्रतिबद्धताओं में व्यस्त थे, इसलिए आमिर ने अपने बड़े भाई उस्ताद के कुशल मार्गदर्शन में सरोद बजाना सीखा। आज के कार्यक्रम में उन्होंने जै उजाला, विलवत तीन ताल एवं मध्ले तीन ताल पर अपनी प्रस्तुति दी।

इस 15 दिवसीय महोत्सव में भारत के विभिन्न प्रांत से आए हुए संस्थाओं द्वारा स्टॉल भी लगाया गया है जहां पर आप भारत की विविधताओं का आनंद ले सकते हैं। मुख्य रूप से जो स्टाल लगाए गए हैं उनमें भारत के विभिन्न प्रकार के व्यंजन, हथकरघा एवं हस्तशिल्प के स्टॉल, अफगानी ड्राई फ्रूट, पारंपरिक क्रोकरी, भारतीय वुडन क्राफ्ट  एवं नागालैंड के बंबू क्राफ्ट के साथ अन्य स्टॉल भी हैं।

रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है।

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