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स्टार्ट अप और मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करें विश्वविद्यालयः राज्यपाल

उत्तराखंड

देहरादून: उत्तराखण्ड के राज्यपाल डाॅ0 कृष्ण कांत पाल ने कहा कि एक राष्ट्र की प्रगति सही मायने में आर्थिक आवश्यकताओं का विकास, प्रकृति व पर्यावरण के बीच संतुलन बनाकर की जा सकती है। सुधारात्मक नवोन्मेषण ही विकास के दीर्घकालिक चालक हैं। हमें कोई भी विकास पर्यावरण की कीमत चुका कर नहीं करना चाहिए।

राज्यपाल ने आज पैट्रोलियम और ऊर्जा शिक्षा विश्वविद्यालय, देहरादून के दीक्षांत समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि तेजी से औद्योगिकरण और विभिन्न क्षेत्रों में यांत्रिकरण के साथ ही कार्बन उत्सर्जन की मात्रा की जांच करना भी अनिवार्य होना चाहिए। उन्होंने आर्थिक जरूरतों, पर्यावरण, वैश्विक जलवायु परिवर्तन की बढ़ती समस्या का आदर्श तकनीकी समाधान खोजना चाहिए।

उन्होंने कहा कि पूरे राज्य में आई.आई.टी, रूड़की को छोड़कर यू.पी.ई.एस एक मात्र विश्वविद्यालय है जो देश के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों की सूची में स्थान बना पाया है। यह अच्छा गौरव का विषय है।

राज्यपाल ने पिछले पंद्रह वर्षों में इंजिनियरिंग, प्रबंधन और कानून के क्षेत्र में न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने वाला बल्कि गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा प्रदाता राज्यों की श्रेणी में उत्तराखण्ड का नाम शामिल करने पर अपनी प्रसन्नता जाहिर की।

राज्यपाल ने कहा कि यू.पी.ई.एस जैसे विश्वविद्यालयों को तकनीकी और रोजगार कुशलता सुधारने के लिए छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के विषय पर अधिक विचार किया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय प्रबंधन, शिक्षक, छात्रों को भविष्य व रोजगार की दिशा में छात्रों व युवाओं को ‘मेक इन इण्डिया’ योजना के सहारे उनके करियर को आगे बढ़ाने में मार्गदर्शक की भूमिका निभायें।

उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि युवाओं की प्रतिभा और रचनात्मकता को प्रोत्साहन देने के लिए ‘उद्यमी सेल’ का निर्माण विश्वविद्यालय द्वारा किया जाये जहाँ इन छात्रों की उद्यमशीलता को चैनलाइज किया जाये और उसी दिशा में उन छात्रों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाये।

उन्होंने कहा कि गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षित के रूप में छात्रों को तैयार करने के लिए विश्वविद्यालय छात्रों में आलोचनात्मक विचार, संवाद क्षमता, रचनात्मकता, समस्या निवारण तथा इनके कौशल विकास पर ध्यान केन्द्रित करें। औद्योगिक इंटर्नशिप को पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाया जाये। परीक्षा पद्वती को धीरे-धीरे टर्मिनल, वार्षिक, सेमेस्टर पद्वती से साल भर चलने वाली मूल्यांकन परीक्षा पद्वती में परिवर्तित किया जाना चाहिए जिससे सभी छात्रों के प्रदर्शन का निरन्तर व नियमित मुल्यांकन किया जा सके।

राज्यपाल ने कहा कि यू.पी.ई.एस कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में अनुसंधान को प्रोत्साहित कर राष्ट्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। हमारे देश में दुनिया का सबसे बड़ा कायेला भण्डार है, लेकिन हम उसका उचित दोहन करने में असमर्थ हैं क्योंकि कोयले से उत्सर्जित कार्बन डाई आॅक्साइड शोधन व भण्डारण करने की समस्या हमारे सामने बनी हुई है। हम ऊर्जा के लिए गैर पारम्परिक स्रोतों की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं। हमें कोयला ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कोयले से उत्पन्न प्रदूषण के सुरक्षित दोहन पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है जिससे हम कोयला भण्डार का उपयोग ऊर्जा निर्माण में निडर होकर कर सकें।

एक अन्य अनुसंधान का सुझाव देते हुए राज्यपाल ने कहा कि इलेक्ट्रिकल आॅटो इंजन या हाइब्रिड इंजन के लिए भण्डारण बैटरी का विकास किया जाये। उन्होंने कहा कि यू.पी.ई.एस को उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकास के जरिए राष्ट्रीय विकास में अपना योगदान करना चाहिए।

राज्यपाल ने विश्वविद्यालय द्वारा अनुसंधान के क्षेत्र में 13पेटेंट पंजिकृत कराये जाने की सराहना की। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का इटरफेंस भी सराहनीय है क्योंकि यह तकनीकी समस्याओं का समाधान करता है व छात्रों के प्लेसमेंट में भी मदद करता है।

राज्यपाल ने विश्विद्यालय द्वारा पांच राज्य सरकारों को नियमित रूप से वित्तीय सहायता देकर काॅर्पोरेट सोशल रिस्पाॅन्सिबिलिटी के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने की भी प्रशंसा की। वहीं राज्यपाल ने पिछले 14 वर्षों से अपने आस-पास के क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों का संचालन तथा ‘अभिलाषा’ परियोजना के तहत पिछले 12 वर्षों से आवासीय विद्यालय में शिक्षा दिए जाने की सराहना की।

राज्यपाल ने दीक्षांत समारोह में डिग्रियां प्राप्त करने वाले छात्रों, शिक्षकों, कुलपति और विश्वविद्यालय को बधाई दी। इस अवसर पर केंन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर, मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत सहित विश्वविद्यालय प्रबंधन के अधिकारी एवं शिक्षकगण उपस्थित थे।

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