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व्यापार और जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन 2017 में पर्यावरण मंत्री का उद्घाटन सम्बोधन

व्यापार और जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन 2017 में पर्यावरण मंत्री का उद्घाटन सम्बोधन
कृषि संबंधितदेश-विदेश

नई दिल्ली: केन्द्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने व्यापार और जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (बीसीएस) 2017 में अपने संबोधन में कहा कि व्यापार और जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन 2017 के अवसर पर संबोधित करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मुझे खुशी है कि यह शिखर सम्मेलन जलवायु कार्रवाई के समर्थन में व्यापार समुदाय को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापार, निवेशकों और नीति-निर्माताओं को एक साथ लाया है।

पूरी दुनिया ने 2015 में आपस में मिलकर जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन के तहत पेरिस समझौते पर सहमति व्यक्त की थी। यह समझौता नवंबर 2016 में लागू हुआ और आज की तारीख तक 160 पक्षों ने इसकी पुष्टि की है। पेरिस समझौते की एक पार्टी के रूप में भारत इस समझौते के सफल कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है। यह बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक है कि विकसित देशों में क्योटो प्रोटोकॉल के तहत प्रि-2020 कार्रवाई के लिए बराबर ध्यान दिया गया है और उन्होंने विकासशील देशों के लिए वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है।

प्रि – 2020 कार्रवाई को मजबूत करने और उत्सर्जन के अंतराल को बंद करने के लिए, हमें क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि के प्रारंभिक समर्थन के लिए समयसीमा पर सहमत होने की भी जरूरत है। भारत ने 8 अगस्त, 2017 को क्योटो प्रोटोकॉल के दोहा संशोधन को स्वीकार करने की स्वीकृति दे दी है। यूएनएफसीसीसी को प्रि – 2020 अवधि में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए विकसित देशों के पक्षों को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।

पेरिस समझौते की मुख्य विशेषताओं में से एक विशेषता ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ है। भारत ने अपनी एनडीसी 2015 में प्रस्तुत कर दी थी। इसमें 8 लक्ष्य शामिल हैं, जिनमें से 3 मात्रा संबंधी हैं। इसमें 2005 के स्तर से 2030 तक जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 प्रतिशत तक घटाना शामिल है, इसके अलावा 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत संचयी विद्युत स्थापित क्षमता हासिल करना और 2030 तक अतिरिक्त वनों और वृक्षों के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन-डाइऑक्साइड के समतुल्य अतिरिक्त सिंक का निर्माण करना शामिल है। अन्य पांच लक्ष्य – स्वास्थ और स्थायी जीवनशैली, आर्थिक विकास के लिए जलवायु अनुकूल स्वच्छ पथ, जलवायु प्रौद्योगिकी पर क्षमता निर्माण और घरेलू और नए अतिरिक्त निधियों को जुटाने से संबंधित हैं।

हम अब अपनी एनडीसी के क्रियान्वयन के लिए एक रोडमैप विकसित करने पर काम कर रहे हैं और हमने प्रमुख मंत्रालयों और विभागों को शामिल करके एक कार्यान्वयन समिति और छह विषयगत उप-समितियों का गठन किया है।

लक्ष्यों को अर्जित करने के लिए, भारत सरकार जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) लागू कर रही है, जिसमें जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में प्रमुख लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुमुखी, दीर्घकालिक और एकीकृत रणनीति का प्रतिनिधित्व करने वाले आठ राष्ट्रीय मिशनों को शामिल किया गया है। सरकार की व्यापक नीतिगत पहलों को राज्य सरकारों की जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना के माध्यम से की गई कार्रवाई द्वारा मदद मिली है। इन प्रमुख क्षेत्रों में कृषि, जल, आवास, वानिकी, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन शामिल हैं।

भारत सरकार ने 2022 के अंत तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है और हमने अभी तक 58.3 गीगावाट नवीकरण ऊर्जा स्थापित क्षमता हासिल कर ली है।

ऊर्जा कुशल उपकरणों के वितरण सहित कई अन्य पहल भी की गई हैं, जिनमें हमने 23.39 करोड़ एलईडी लाइट्स का वितरण किया है; प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे महिलाओं को मुफ्त स्वच्छ खाना पकाने के गैस कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं और अभी तक 2.8 करोड़ एलपीजी कनेक्शन जारी किए जा चुके हैं। अमृत और स्मार्ट सिटी मिशन जैसे मिशनों के माध्यम से, हम अपने शहरों को कुशल और जलवायु के रूप में लचीला बनाने के लिए बदलाव कर रहे हैं। भारत सरकार 350 करोड़ रूपये की राशि से अपना राष्ट्रीय अनुकूलन कोष भी स्थापित कर रही है।

लगभग 360 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकालने और इससे भी अधिक संख्या में लोगों के जीवन स्तर को सुधारने की जिम्मेदारी के लिए प्रौद्योगिकी भारत जैसे देशों के लिए एक शक्तिशाली समाधानों में से एक है, जिससे जलवायु परिवर्तन और हमारे विकास की जरूरतों का भी समाधान भी हो सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, प्रधान मंत्री के नेतृत्व में, भारत ने फ्रांस की सरकार के साथ संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की शुरुआत की है। यह एक साझा मंच उपलब्ध कराता है, जिसमें द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संगठनों, कोरपोरेट, उद्योग और हितधारकों सहित विश्व समुदाय, सुरक्षित, सुविधाजनक, किफायती और टिकाऊ रूप से आईएसए सदस्यों देशों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के साझा लक्ष्यों के लिए सकारात्मक योगदान कर सकता है। अभी तक 36 देशों ने आईएसए पर हस्ताक्षर किए हैं और 7 देशों ने इसकी पुष्टि की है।

निजी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन पर भारत की कार्रवाई का एक अभिन्न हिस्सा है। निजी क्षेत्र ने अनेक स्वैच्छिक कार्रवाई शुरू की है। भारतीय उद्योग ने स्वैच्छिक कार्बन प्रकटीकरण कार्यक्रमों में भाग लिया है, जिसमें उन्होंने कार्बन प्रबंधन की रणनीति और जीएचजी उत्सर्जनों के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

भारत विश्व बैंक की सहायता से एक स्वैच्छिक कार्बन बाजार स्थापित करने की योजना बना रहा है जिसमें बकाया क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। राजनीतिक नेताओं और जनता के प्रतिनिधियों के रूप में आगे बढ़कर देश के नागरिकों और विश्व के प्रति हमारी प्रमुख भूमिका और जिम्मेदारियां हैं। हमें विज्ञान की आवाज को गंभीरता से सुनना चाहिए और जलवायु परिवर्तन द्वारा पेश किए जा रहे जोखिमों के खिलाफ अपने लोगों की रक्षा के लिए कार्य करना चाहिए।

स्थिरता सदियों से भारत में जीवनशैली का एक तरीका रही है। भारतीय लोकाचार और मूल्यों को सरल जीवन, जीवन और प्रकृति के प्रति सम्मान को बढ़ावा देते हैं। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। इस असाधारण जीवनशैली के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार ने धीरे-धीरे हमारे पारंपरिक मूल्यों को कम कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप लोगों की जीवनशैली में गिरावट आना शुरू हो गया है।

स्वच्छ हवा, जल और जीने योग्य जलवायु अपरिहार्य मानव अधिकार हैं। इस संकट का समाधान केवल राजनीतिक सवाल नहीं है। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। हमारे पास केवल एक ही ग्रह है और हमारे सामूहिक घर को विनाश से बचाने के लिए मानव जाति को व्यापक स्तर पर अधिक जवाबदेह बनना चाहिए। इस ग्रह पर हमारे भविष्य की सुरक्षा हमारी जातियों के सचेत विकास पर निर्भर करती है। जलवायु परिवर्तन की वैश्विक प्रकृति एक सामूहिक जिम्मेदारी का आह्वाहन करती है। भारत यूएनएफसीसीसी के तहत बहुपक्षीय वार्ताओं में सकारात्मक, रचनात्मक और प्रगतिशील तरीके से सक्रिय रूप से भाग ले रहा है, जो शिखर सम्मेलन और पेरिस समझौते में शामिल सामान्य, लेकिन विभेदित उत्तरदायित्वों और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों पर आधारित है।

हम जैसे पेरिस समझौते के क्रियान्वयन के बारे में काम करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो हमारा विश्वास है कि आगामी सीओपी-23 प्रेसीडेंस ऑफ फिजी तथा और यूएनएफसीसीसी सचिवालय एक सफल बैठक की मेजबानी करेंगे, जिसमें निकले निष्कर्ष पर सभी पक्ष अपनी सहमति प्रदान करेंगे।

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