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मधुर भंडारकर अपनी फिल्म ‘इंदु सरकार’ किसी को नहीं दिखाना चाहते

मनोरंजन

मुंबई: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता मधुर भंडारकर अपनी आगामी फिल्म ‘इंदु सरकार’ को लेकर हर तरह के स्पष्टीकरण देकर थक गए हैं. यह फिल्म 1975 में देश में लगाए गए आपातकाल पर आधारित है. मुर की सीमक्षकों द्वारा सराही गई कई फिल्में पहले भी सेंसर बोर्ड की आपत्ति के दायरे में आ चुकी हैं.

सेंसर बोर्ड ने ‘इंदु सरकार’ में कई कट लगाने के सुझाव दिए हैं, वहीं मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने फिल्म को रिलीज करने से पहले इसे उनकी पार्टी को दिखाए जाने की मांग की है. लेकिन, निर्देशक ने यह साफ कर दिया है कि वह अपनी फिल्म किसी को भी, खासकर नेताओं को तो बिल्कुल नहीं दिखाएंगे.

भंडारकर ने यहां आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा, “मैं इस पूरे मामले का राजनीतिकरण नहीं करना चाहता. अतंत: फिल्म की कहानी राजनीति के बारे में नहीं है. यह आपातकाल के समय की है. हम इसे राजनीति से नहीं जोड़ना चाहते, हम इसकी रिलीज चाहते हैं, ताकि हर इंसान इस फिल्म के साथ जुड़ सके.”

फिल्म 28 जुलाई को रिलीज होने वाली है और भंडारकर रिलीज की यही तारीख रखना चाहते हैं. उन्होंने इस पर जोर देते हुए कहा, “मैं रिलीज तारीख को छोड़ना नहीं चाहता.” केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने नील नितिन मुकेश, कीर्ति कुलहरी और तोता रॉय चौधरी अभिनीत फिल्म में 12 कट लगाने और दो जगह डिस्क्लैमर के निर्देश दिए हैं.

फिल्म का तीन मिनट का ट्रेलर 16 जून को जारी हुआ. तब से यह फिल्म विवादों में हैं. एक कांग्रेस नेता ने तो भंडारकर का चेहरा काला करने वाले को इनाम देने तक की घोषणा कर डाली, वहीं संजय निरुपम ने सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाणित किए जाने से पहले विशेष स्क्रीनिंग में इसे कांग्रेसी नेताओं को दिखाने की मांग कर डाली.

भंडारकर (48) ने इस पर कहा, “मैं फिल्म नहीं दिखाऊंगा, अगर कोई फिल्म बाद में देखना चाहता है तो हम सोचेंगे. पहले अधिकारियों को फिल्म को पास करने दीजिए, तब तक मैं किसी को फिल्म नहीं दिखाऊंगा. सेंसर को फैसला लेने दीजिए. मुझे लगता कि पुनरीक्षण समिति कहीं अधिक उदार होगी.”

ट्रेलर को देखकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस फिल्म को ‘पूरी तरह से प्रायोजित’ बताया है, वहीं खुद को संजय गांधी की बेटी बताने वाली एक महिला ने उनकी (संजय) छवि को भ्रामक रूप से पेश करने का आरोप लगाते हुए उन्हें (भंडारकर) कानूनी नोटिस भेजा है.

झल्लाए भंडारकर ने सवालिया लहजे में कहा, “लोग कह रहे थे कि फिल्म प्रायोजित है, अब वे चुप क्यों हैं? मुझसे कट लगाने के लिए कहे जाने पर अब वे बात क्यों नहीं कर रहे हैं?”

पार्टी की छवि को लेकर चिंतित कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर ने फिल्मकार को पत्र लिखकर इसके पीछे किए गए शोध को देखने की मांग की है. उनकी चिंता फिल्म में एक ऐसे नकारात्मक चरित्र को लेकर है जो बजाहिर उनसे मिलता-जुलता है.

फिल्मकार ने कहा, “जगदीश टाइटलर फिल्म में साफ-सुथरी छवि चाहते हैं, लेकिन उन्होंने फिल्म नहीं देखी है, तो वह ऐसा कैसे कह सकते हैं? वे लोग उत्तेजित हैं जिसका कोई तुक नहीं है. क्या मैंने फिल्म में उनका (टाइटलर का) नाम लिया है? नहीं, फिर क्यों? पहले वह फिल्म देखें फिर फैसला करें.”

पद्मश्री से सम्मानित फिल्मकार ने इस बात पर हैरानी जताई कि ट्रेलर में सेंसर बोर्ड ने कुछ विशेष लाइनों को क्यों पास कर दिया, जबकि फिल्म में उन शब्दों पर आपत्ति जताई है. उन्होंने बताया कि सेंसर बोर्ड के अधिकारियों को फिल्म पसंद आई, लेकिन उन्होंने ‘आरएसएस’ और यहां तक कि ‘किशोर कुमार’ जैसे शब्दों को हटाने का सुझाव दिया है.

इस पर फिल्मकार ने कहा, “मैंने उनसे कहा, आप किस तरह का मापदंड इस्तेमाल कर रहे हैं? ट्रेलर पास हो चुका है. ‘अब इस देश में गांधी के मायने बदल चुके हैं’ जैसी लाइन ट्रेलर में पास हुई है, तो फिर आप फिल्म में इन शब्दों को रखने की अनुमति क्यों नहीं दे रहे हैं?” फिल्मकार ने कहा कि वह एक जिम्मेदार नागरिक हैं और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता व पद्मश्री हैं. वह फिल्में प्रचार पाने के लिए नहीं बनाते हैं.

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