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भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का राज्यपाल सम्मेलन-2017 में आरम्भिक उद्बोधन

48th Conference of Governors concludes at Rashtrapati Bhavan
देश-विदेश

नई दिल्ली: मैं आप सब का इस सम्मेलन में हार्दिक स्वागत करता हूँ। जो राज्यपाल और उप-राज्यपाल पहली बार इस सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं, उनका विशेष रूप से अभिनन्दन है। भारत के किसी भी भाग का इस सम्मेलन में प्रतिनिधित्व रह न जाए, इसलिए लक्षद्वीप; दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव के प्रशासकों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। वर्ष में एक बार, सभी राज्यपालों और उप-राज्यपालों के इस सम्मेलन में शामिल होकर विचारों का आदान-प्रदान करने का अच्छा अवसर मिलता है। इस अवसर का उपयोग करके हम कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श करते हुए उन क्षेत्रों में दिशा प्रदान कर सकते हैं।

सामान्यत: यह सम्मेलन वर्ष की शुरुआत में आयोजित होता है। परंतु कुछ अपरिहार्य कारणों से इस वर्ष यह सम्मेलन अक्टूबर में आयोजित किया जा सका है। मुझे आशा है कि अगले वर्ष से इस सम्मेलन को वर्ष की शुरुआत में आयोजित करने का प्रयास किया जाएगा।

आपने देखा होगा कि इस वर्ष के सम्मेलन की कार्य-सूची में थोड़ा बदलाव लाया गया है। आप लोगों से मिले सुझावों को ध्यान में रख कर इस सम्मेलन के मुख्य विषय निर्धारित किए गए है। कल राज्यपालों और उप-राज्यपालों के सचिवों और प्रधान सचिवों की बैठक हुई थी। मुझे बताया गया कि इस बैठक में भी कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा हुई है।

प्रधानमंत्री ने ‘टीम इंडिया’ की भावना को कार्यरूप देने के लिए Co-operative Federalism पर जोर दिया है और इसी आधार पर ‘नीति आयोग’ का गठन किया गया है। ‘नीति आयोग’ में केंद्र और राज्य मिलकर विचार-विमर्श करके नीतियां और विकास की प्राथमिकताएं तय करते हैं।

Co-operative Federalism के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राज्यपालों द्वारा “संविधान के परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण” तथा “जनता की सेवा और कल्याण में विरत रहने” का आपका संवैधानिक दायित्व और भी अहम हो जाता है। आप सब केंद्र और राज्यों के बीच सेतु की भूमिका निभाते हैं। संविधान की धारा 168 के अनुसार, राज्यपाल अपने प्रदेश की विधायिका के एक अहम अंग होते हैं।

भारतीय संविधान के अंतर्गत, राज्यपाल का ओहदा बहुत ऊँचा होता है। आप संवैधानिक आदर्शों और मर्यादाओं के प्रतीक हैं। कुछ विशेषाधिकार केवल राज्यपालों को ही उपलब्ध हैं। राज्य की जनता की निगाहें राजभवन पर टिकी रहती हैं। राजभवन का सभी पर अनुकरणीय प्रभाव पड़ता है। राजभवनों में मूल्यों और आदर्शों के स्थापित होने से सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए बुद्धिजीवी, स्वयं सेवी संस्थान और समाज के सभी वर्ग के लोग प्रेरणा लेते हैं।

मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति महोदय ने पिछले सम्मेलन में राज्यपालों द्वारा समयबद्ध तरीके से मासिक रिपोर्टें भेजने से लेकर राज्य के बाहर समय बिताने की अवधि-सीमा तय करने जैसे मुद्दों का विशेष उल्लेख किया था। इसके मूल में राजभवन की गरिमा को अक्षुण्ण रखने की भावना स्पष्ट होती है।

इस सम्मेलन का आयोजन एक विशेष पृष्ठभूमि में हो रहा है। 2022 में आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण संकल्प तय किये जा रहे हैं। इन संकल्पों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तैयारी की जा रही है। यह एक ऐसा अवसर है जब देश में भावी पीढ़ी के लिए हम कुछ महान कार्य कर सकते हैं। आजादी की लड़ाई के समय देशवासियों ने जिस तरह संघर्ष का बीड़ा उठाया था तथा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिस जज्बे का उन्होने परिचय दिया था उसी भावना से काम करने का आज यह उपयुक्त समय है।

सामान्यतया, ऐसे अवसरों पर उत्सव मनाने की अग्रिम तैयारियां होने लगती है, परन्तु, भारत सरकार ने तय किया है कि सन 2022 तक हमारा देश सुरक्षित, समृद्ध, शक्तिशाली, सबको समान अवसर उपलब्ध कराने वाला तथा आधुनिक विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में विश्व में एक अग्रणी देश बने, इसके लिए पूरे देश को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। इस प्रकार 2017 से 2022 तक के 5 वर्ष उस ‘न्यू इंडिया’ के निर्माण के लिए हैं, जहां भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और अस्वच्छता के लिए कोई स्थान नहीं होगा। साथ ही साथ, भावी पीढ़ी के सुंदर भविष्य के लिए मजबूत नींव भी डाली जाएगी।

इस सम्मेलन में विचार-विमर्श के लिए ‘Infrastructure for New India, ‘Public Services for New India, और ‘Higher Education in States and Skill Development to Make Youth Employable’ जैसे विषय लिए गए हैं। इन विषयों पर अगले दो दिनों तक, संवाद के जरिये हम ऐसे रास्ते तलाशेंगे जिनसे इन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके और साथ ही, इन लक्ष्यों के साथ जनमानस तथा समाज के हर वर्ग को जोड़ा जा सके।

फ़िज़िकल और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा पब्लिक सर्विसेज के द्वारा हर व्यक्ति को ऐसी भरोसेमंद सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं जिससे कि वह अपनी क्षमताओं का विकास कर सके और उसका जीवन-स्तर बेहतर हो सके। मोबाइल कनेक्टिविटी ने आर्थिक पायदान पर सबसे नीचे खड़े व्यक्ति को बाज़ार, बैंकिंग, खेती संबंधी जानकारी, रेलवे बुकिंग तथा अन्य सुविधाओं से जोड़ा है। पूरे विश्व में बदलते हुए विज्ञान, तकनीकी और आर्थिक परिप्रेक्ष्य को देखते हुए हमारे देश में सभी क्षेत्रों में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए नयी टेक्नोलॉजी और इन्नोवेशन का उपयोग किस ढंग से किया जाए, इस बारे में हमें सोचना है।

आज के डिजिटल युग में लोगों की यह अपेक्षा है कि सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध कराने के तरीके सरल हों, पारदर्शी हों और जवाबदेही के प्रावधान हों, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। हमारे देश के नागरिकों को विकसित देशों में उपलब्ध सार्वजनिक सुविधाओं के समकक्ष सुविधाएं मिलनी चाहिए।

नागरिकों की ऊर्जा को बेहतर कामों में लगाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने उन पर विश्वास जताते हुए अनेक प्रक्रियाओं को सरल बनाया है; उदाहरण के लिए affidavit और attestation की अनिवार्यता समाप्त की है, पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया सरल की है। नागरिकों का अधिकतर काम राज्य स्तर, ज़िला स्तर तथा पंचायतों या म्युनिसिपल बाडीज़ से होता है। इन स्तरों पर लोगों को पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ सार्वजनिक सेवाएँ मिलें, ऐसी व्यवस्था जरूरी है।

राष्ट्रीय लक्ष्यों को निश्चित समय सीमा में प्राप्त करने के लिए ‘टीम इंडिया’ एक ही दिशा में आगे बढ़े, यह सुनिश्चित करने के लिए राज्यपालों को अपने-अपने राज्यों के स्तर पर सभी स्टेकहोल्डर्स को राष्ट्रीय अभियानों से जोड़ने में सहायता करनी चाहिए।

युवाओं को राष्ट्र-निर्माण से जोड़ना अनिवार्य है। समाज में आ रही विकृतियों को दूर करने तथा नैतिक मूल्यों में गिरावट को रोकने की जरूरत है। देश का भविष्य युवा पीढ़ी की योग्यता, नैतिकता और संवेदनशीलता पर निर्भर करता है। वृद्धों की सेवा, स्वच्छता के प्रति आग्रह, पर्यावरण तथा जीव जंतुओं के प्रति सम्मान की भावना, सामाजिक व्यवहार में संवेदनशीलता तथा ईमानदारी के मूल्यों से युक्त नई पीढ़ी अपने ज्ञान और कौशल के बल पर  देश को नई ऊँचाइयों तक पहुंचा सकती है। इस संदर्भ में राज्य स्तर पर उच्च शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसीलिए सभी राज्यों में ऐसे शिक्षण संस्थानों की आवश्यकता है जो भावी पीढ़ी का निर्माण करने में समर्थ हों।

अनुमानतः देश के 69% विश्व-विद्यालय राज्य सरकारों की देख-रेख में हैं, जिनमें देश के 94% विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते हैं। ऐसी आम धारणा है कि केंद्र सरकार के संस्थानों और केंद्रीय विश्व-विद्यालयों के समकक्ष लाने के लिए राज्य स्तर के शिक्षण संस्थानों में और सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए राज्यपालों को कुलाधिपति के तौर पर शिक्षण संस्थानों के साथ नियमित संवाद को प्राथमिकता देने की जरूरत है। इससे उन संस्थानों के वातावरण में बदलाव आयेगा। विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में आप नैतिक और शैक्षणिक रूप से योग्य व्यक्तियों की समयबद्ध तरीके से नियुक्ति के रास्ते सुझा सकते हैं।

विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में समय पर कुलपतियों तथा अध्यापकों की नियुक्ति, पाठ्यक्रमों का update होना, शिक्षा के लिए अनुकूल वातावरण, ऑनलाइन एड्मिशन, समय पर परीक्षा एवं परिणाम की घोषणा, तथा समय पर दीक्षांत समारोह का आयोजन, यह अति आवश्यक है। इन सभी विषयों पर ध्यान देकर राज्य के शिक्षण संस्थानों को बेहतर बनाया जा सकता है। इन शिक्षण संस्थानों में खेल-कूद की अच्छी सुविधाएं हो तथा विद्यार्थियों को प्रोत्साहन दिया जाए ताकि अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के लिए विश्व स्तर के खिलाड़ी तैयार हो सकें। मुझे आशा है कि सभी राज्यपाल उच्च शिक्षा के सर्वांगीण सुधार के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करते रहेंगे।

उच्च शिक्षा के लिये भारत में मात्र 24.5% का Gross Enrollment Ratio विकसित देशों की तुलना में लगभग आधा है। इसे बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षा के स्तर को ऊंचा करना भी जरूरी है। मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा देश में 20 विश्व-स्तरीय उच्च शिक्षण संस्थानों के निर्माण की योजना है, जिनमें 10 निजी क्षेत्र में होंगे और 10 सरकारी क्षेत्र में। आप सब अपने राज्य में ऐसे संस्थानों के निर्माण के लिये दिशा और प्रेरणा दे सकते हैं।

Automation तथा artificial intelligence के बढ़ते हुए उपयोग के संदर्भ में हमें युवाओं के लिए नए अवसर तलाशने होंगे और उनके skills को बेहतर बनाना होगा। इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि vocational education और training पर ध्यान दिया जाए तथा university system में इसका समावेश हो। यह भी ज़रूरी है कि हर राज्य में वहाँ की स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कौशल विकास के क्षेत्र में प्राथमिकताएँ तय की जाएँ तथा उन्हे स्थानीय अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाए। साथ ही साथ युवाओं को बैंकिंग और मार्केटिंग की सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए जिससे वे अपने कौशल का उपयोग करके अपने पैरों पर खड़े हो सकें और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकें। प्राय: हर राज्य में Skill Development Mission गठित हो चुके हैं। उनके कार्यक्रमों को गति देने तथा उनको प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इस कार्य में आप सब की एक निर्णायक भूमिका है। यह मेरी अपेक्षा है कि आप अपने-अपने राज्यों में समाज के विभिन्न वर्गों के साथ इन विषयों पर संवाद स्थापित करके, इन्हे आगे बढ़ाएंगे।

इस सम्मेलन में सार्वजनिक हित के मुद्दों पर संवाद करके कुछ रास्ते निकलने चाहिए। ऐसे मुद्दों पर इस सम्मेलन में राज्यपालों व उप-राज्यपालों के बीच चर्चाएँ होंगीं, जिनमे विभिन्न मंत्रीगण उपस्थित रहेंगे। मेरा विश्वास है कि इन चर्चाओं के दौरान सभी राज्यपाल अपने-अपने राज्य के लिये कुछ दूरगामी लक्ष्य तय करेंगे।

कठिन और दूरगामी लक्ष्यों को प्राप्त करने में संवाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपने राज्यों में विधायिका का अहम अंग होने के नाते विधायकों के साथ संवाद स्थापित करके आप अपने राज्य के विकास को नए आयाम दे सकते हैं। राजभवन में उन्हें वर्ष में कम से कम एक बार बुलाकर विस्तृत संवाद करना चाहिए। इसी प्रकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के साथ भी समय-समय पर संवाद होना चाहिए। विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, शिक्षाविदों, समाजसेवियों तथा जागरूक नागरिकों से संवाद बना कर आप समाज और राज्य सरकार को सही दिशा दे सकते हैं। इस तरह आपके दायित्व बहु-आयामी हैं।

हमारे देश के जनमानस में कई तिथियों की विशेष छाप है। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस, 14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के जन्म दिवस, 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस, 5 सितम्बर को डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस, 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती तथा 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में, हम मनाते हैं। गाँधी जयंती को स्वच्छता के लक्ष्य से जोड़ कर, नागरिकों को स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया गया है। इसी तरह हम 14 अप्रैल के लिए समाज सुधार के कुछ लक्ष्य तय कर सकते हैं। 26 नवम्बर के दिन नागरिकों में संविधान के  प्रति जागरूकता, सम्मान और आस्था को मजबूत करने के लिए कार्यक्रम किये जा सकते हैं। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि इन दिवसों को राजभवन की प्रेरणा से सुचारु रूप से मनाया जाये तथा लक्ष्यों को लेकर जागरूकता और सक्रियता भी बनाई जाए।

देश के हर हिस्से में विकास के सन्दर्भ में संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचियों में शामिल आदिवासी क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उनकी संस्कृति और भाषा के संरक्षण के साथ-साथ उनके विकास को गति प्रदान करने के प्रयास में सम्बद्ध राज्यों के राज्यपाल अपना बहुमूल्य योगदान देते रहेंगे।

मुझे आशा है कि इस सम्मेलन में केंद्र और राज्य मिल कर देशवासियों के हित में, विशेषकर युवाओं के भविष्य के लिए एक-मत होकर दिशा तय करेंगे। इस तरह पूरे देश को विकास की दिशा में एक साथ लेकर चलने का मार्ग प्रशस्त होगा। जब प्रत्येक राज्य विकसित होगा तभी भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में देखने की कल्पना साकार होगी।

मुझे खुशी है कि उप-राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, गृह मंत्री तथा उनके वरिष्ठ सहयोगी अपने योगदान से इस सम्मेलन के विचार-मंथन को समृद्ध करेंगे।

इन शब्दों के साथ मैं 2017 के इस राज्यपाल सम्मेलन के आरम्भ की घोषणा करता हूँ।

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