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भारतीय राजनीति के लिए क्यों महत्वपूर्ण हो गए एनआरआई?

देश-विदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दिल्ली में प्रवासी सांसदों के सम्मेलन को संबोधित किया. यह सरकार का पहला ऐसा कार्यक्रम था. उन्होंने अपनी अधिकांश विदेश यात्राओं में एनआरआई (अनिवासी भारतीय) से मुलाकात की है. राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव से पहले अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों से मुलाकात की थी. सोमवार को राहुल ने बहरीन में भी भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया है. चुनाव आयोग ने एनआरआई को वोटिंग का अधिकार दे दिया है. क्या यह सब महज संयोग है या फिर कोई बड़ी रणनीति?

सरकारी कार्यक्रम के एक दिन बात यानी 10 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की ओर से अशोका होटल में एनआरआई सांसदों का सम्मेलन है. जानकार बता रहे हैं कि यह बड़ा चुनावी प्लान है. दोनों पार्टियां एनआरआई को लुभाकर अपने पक्ष में माहौल बनाना चाहती हैं. मई 2012 तक 1,00,37,761 एनआरआई थे. यह बहुत बड़ी संख्या है, जबकि एनआरआई अपनी बातों से ज्यादा लोगों को प्रभावित करने का दम रखते हैं.

एनआरआई के लिए भारत के राजनीतिक दलों की बढ़ती गतिविधियों के पीछे का कारण हमने डोनाल्ड ट्रंप के लिए कैंपेन कर चुकी कंपनी ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक अंबरीश त्‍यागी से जानने की कोशिश की. त्यागी ने कहा “यह मामला पूरी तरह से चुनावी है. पटेल एनआरआई ने गुजरात में बीजेपी के लिए कैंपेन किया था. आम आदमी पार्टी की शुरुआती फंडिंग सबसे ज्यादा एनआरआई की थी. इसीलिए सरकार एनआरआई सांसदों का सम्मेलन करवा रही है और राहुल गांधी भी दूसरे देशों में जाकर भारतीय मूल के लोगों से मिल रहे हैं.”
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हमने इस बारे में पूर्व विदेश सचिव शशांक से बातचीत की. उन्होंने कहा कि ” भारतीय मूल के लोगों ने भारतीय संस्कृति को पूरी दुनिया में मजबूती से फैलाकर रखा हुआ है. ये सांसद अपने-अपने समाज में प्रभावशाली लोग हैं वह भारतीय योगदान और भारतीयों की स्थिति अपने यहां बता सकते हैं. अगले 20-30 साल में भारत को काफी आगे बढ़ना है तो ऐसे में जो दूसरे देशों में भारतीय मूल के लोग हैं उन्हें साथ में लेकर चलना भी बहुत आवश्यक हो गया है. सरकार का यह कार्यक्रम इसी कड़ी में एक कदम है.”

Prime Minister Narendra modi addresses the inaugural session of PIO Parliamentary conference प्रवासी सांसदों के सम्मेलन को संबोधित करते नरेंद्र मोदी

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के सचिव श्याम परांदे बताते हैं कि “सरकार तो पहली बार प्रवासी सांसदों को बुला रही है लेकिन वह लोग इससे पहले भी दो बार कार्यक्रम करवा चुके हैं. पहला कार्यक्रम 1998 में जबकि दूसरा 2003 में हुआ था. पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश को छोड़कर दुनिया के 23 देशों में भारतीय मूल के हैं 275 सांसद हैं.”

परांदे के मुताबिक “ये सांसद सामाजिक, सांस्कृतिक तौर पर तो हमारा मान बढ़ाएंगे ही, सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए भी अपने देश में माहौल तैयार कर सकते हैं. वो हमारा योगदान समझेंगे और हम उनका.”

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