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बीते एक साल में ही वायुमंडल में इतनी कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ी है जो जल प्रलय लाने के लिए काफी है

बीते एक साल में ही वायुमंडल में इतनी कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ी है जो जल प्रलय लाने के लिए काफी है
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विश्व मौसम विज्ञान संगठन के ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के मुताबिक 2016 में कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ने की दर बीते लाखों वर्ष में सबसे ज्यादा थी

ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों के आकलन में कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर को लेकर चिंताजनक तस्वीर सामने आई है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार 2016 में वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा जिस रिकॉर्ड दर से बढ़ी है, वैसा विस्तार बीते पांच लाख वर्ष में नहीं देखा गया है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) के ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के अनुसार यह मात्रा समुद्र जल स्तर में 20 मीटर और तापमान में तीन डिग्री का इजाफा करने की क्षमता रखती है. 30 से 50 लाख वर्ष पहले कार्बन डाईऑक्साइड के इतने ही संकेद्रण स्तर के साथ समुद्र जल स्तर मौजूदा जल स्तर से 20 मीटर ऊपर था.

रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में मानव निर्मित सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाईऑक्साइड का संकेद्रण 403.3 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) पहुंच गया जो 2015 में 400 पीपीएम था. वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड के संकेद्रण दर औद्योगीकरण से पहले की मात्रा से 50 फीसदी ज्यादा हो चुकी है. ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के अनुसार वायुमंडलीय कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर पिछले आठ लाख वर्षों तक 280 पीपीएम था जो औद्योगिक क्रांति के बाद अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है. डब्लूएमओ के मुताबिक 2016 में कोयला, तेल, सीमेंट और वनों की कटाई जैसे स्रोतों से मानव निर्मित कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ गया. इसके अलावा अल-नीनो जैसी मौसमी परिस्थितियों ने भी कार्बन डाईऑक्साइड को बढ़ाने का काम किया.

डब्लूएमओ की रिपोर्ट दर्ज आंकड़े पृथ्वी पर वन, वनस्पतियों और समुद्र द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड को बड़े पैमाने पर अवशोषित कर लिए जाने के बाद के हैं. इसकी गंभीरता को देखते हुए डब्लूएमओ के महासचिव पेटेरी टलास ने चेतावनी दी है कि अगर कार्बन डाई ऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगती है तो इस सदी के अंत में पृथ्वी का तापमान अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगा. उनके मुताबिक यह बढ़ोतरी पेरिस जलवायु समझौते में तय लक्ष्य से कहीं ज्यादा होगी. डॉ पेटेरी टलास ने आगे कहा, ‘आने वाली पीढ़ियों को बहुत ज्यादा विपरीत परिस्थितियों वाली पृथ्वी नसीब होगी.’

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