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चेंबूर में शिवसेना दफ्तर में तोड़फोड़,कल महाराष्ट्र बंद का ऐलान

देश-विदेश

पुणे: पुणे जिले में भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर आयोजित एक कार्यक्रम में दो गुटों के बीच हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई है और कई लोग घायल बताए जा रहे हैं। भड़की हिंसा का असर महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों में भी देखा जा रहा है, महाराष्ट्र के कई इलाकों में बसों में तोड़फोड़ की गई है तो वहीं मुंबई के आज कई इलाकों में दलित संगठन आरपीआई से जुड़े लोगों ने पुणे हिंसा को लेकर ‘रास्ता रोको’ प्रदर्शन किया है, जहां-जहां प्रदर्शन हुआ है वो इलाके हैं बीड, परभणी, सोलापुर, जालना और बुलढाणा, लोगों ने इस हिंसा के लिए स्थानीय प्रशासन को भी जिम्मेदार ठहराया है। लोगों के प्रदर्शन की वजह से आज ऑफिस और स्कूल जाने वाले लोगों को काफी परेशानी हुई क्योंकि इससे पूरा ट्रैफिक प्रभावित हुआ।

खबर है कि राज्य के 8 जिलों में धारा 144 लगा दी गई है, तो वहीं मुंबई के चेंबूर में सुरक्षा बढ़ाई गई। जातीय हिंसा के बाद कई हाईवे जाम, चेंबूर में शिवसेना दफ्तर में तोड़फोड़ भी खबर आ रही है। यहां पथराव में कुछ पुलिस कर्मियों के भी घायल होने की खबर है, तो वहीं भारिप बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश आंबेडकर ने कल महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया है।

आपको बता दें कि जिस जगह ये विवाद हुआ है वो पुणे से करीब 30 किलोमीटर दूर है, ये बवाल पुणे-अहमदनगर हाइवे में पेरने फाटा के पास हुआ। लोगों ने हाईवे पर करीब 100 गाड़ियों में तोड़फोड़ और आगजनी की।इस बारे में महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर करीब तीन लाख लोग आए थे, हमने पुलिस की 6 कंपनियां तैनात की थी, कुछ लोगों ने माहौल बिगाड़ने के लिए हिंसा फैलाई है, इस तरह की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मृतक के परिवार वालों को 10 लाख के मुआवजा दिया जाएगा।

ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को पराजित किया था

गौरतलब है कि आज से करीब 200 साल पहले हुई भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को पराजित किया था, इस जीत का जश्न दलित नेता मनाते हैं क्योंकि इतिहास के मुताबिक ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से महार समुदाय के सैनिकों ने युद्द लड़ा था क्योंकि वो उस वक्त वे अछूत माने जाते थे, उन्हें समाज में काफी तिरस्कार भरी नजरों से देखा जाता था, हालांकि इस कार्यक्रम का विरोध दक्षिणपंथी समूहों की ओर से किया जाता रहा है, उन्हें ‘ब्रिटिश जीत’ के जश्न पर आपत्ति है।

oneindia

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