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गाय का दूध अमृत, आयुर्वेद की अधिकांश दवाएं गाये के दूध से बनती हैं: दुग्ध विकास मंत्री

गाय का दूध अमृत, आयुर्वेद की अधिकांश दवाएं गाये के दूध से बनती हैं: दुग्ध विकास मंत्री
उत्तर प्रदेश

लखनऊ: प्रदेश के दुग्ध विकास मंत्री श्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहा कि गाय के दूध को केवल दुग्ध वसा के आधार पर क्रय करने की पद्वति से गाय के दूध के उत्पादन में बढोत्तरी नही होगी। गाय के दूध को क्रय करने के लिए इसकी क्रय की नयी नीति बनानी पडेगी। गाय के दूध को प्रथक रूप से पैक करके इसे ग्राहको को उपलब्ध कराना होगा। उन्होने कहा कि गाय का दूध अमृृत समान है । इस बात को भी जानमानस तक पहुचाना आवश्यक है। ग्रीष्म माहों में गाय के दूध का छाछ अत्यन्त लाभकारी है। आर्योवेद की कई औषधियॉं बनाने में गाय के दूघ तथा गाय के दूध से निर्मित घी का प्रयोग होता है। गौ-पालन को आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने के लिए गाय के दूध से लाभ का प्रचार-प्रसार आवश्यक है।

श्री चौधरी आज यहां गन्ना संस्थान सभागार में आयोजित कामधेनु डेयरी इकाईयों के पशुपालकों/लाभार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रदेश में उच्च उत्पादक क्षमता वाले गोवंशीय एवं महिषवंशीय दुधारू पशुओ के उत्पादन में वृद्धि करने तथा पषुपालकों को भविष्य में प्रदेश में ही उच्च गुणवत्ता के पशुओं की उपलब्धता सुनिष्चित कराने के उद्देष्य से कामधेनु डेयरी योजना प्रारम्भ की गयी। उन्होंने कहा कि योजनान्तर्गत आधुनिक तकनीकी आधारित गोवंषीय एवं महिषवंषीय उच्च उत्पादक पषुओं के उत्पादन के साथ-साथ उन्नत डेयरी इकाईयों की स्थापना की जा रही है।

दुग्ध विकास मंत्री ने बताया कि कामधेनुु इकाइयों की स्थापना का मुख्य उद्देष्य प्रदेष में इन इकाईयों को उच्च उत्पादक आनुवांषिक क्षमता के पषुओं के सेण्टर आफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित किया जाना है। कामधेनु योजनान्तर्गत तीन प्रकार की कामधेनु इकाईयां यथा 100 दुधारू गोवंषीय/महिषवंषीय पषुओं की कामधेनु डेयरी इकाई, 50 उन्होंने बताया कि गोवंषीय/महिषवंषीय पषुओं की मिनीकामधेनु इकाइयों की स्थापना की योजना ली गयी। पषुपालकों की छोटी इकाइयों की व्यापक मॉग पर 25 गोवंषीय/महिषवंषीय पषुओं की माइक्रो कामधेनु डेयरी योजना अगस्त 2015 से प्रारम्भ की गयी थी। जिसके अन्तर्गत पषुपालकों द्वारा लिए गये बैंक ऋण पर 12 प्रतिषत वार्षिक ब्याज की दर से पांच वर्षो (60 माह) तक ब्याज की प्रतिपूर्ति किये जाने का प्राविधान है।

दुग्ध विकास मंत्री ने कहा कि कामधेनु योजना (100 दुधारु पशुओं) में एक इकाई की स्थापना हेतु व्याज प्रतिपूर्ति के रूप में अधिकतम रू0 32.82 लाख की प्रतिपूर्ति की व्यवस्था है। इसी प्रकार मिनी कामधेनु योजना (50 दुधारु पशुओं) हेतु अधिकतम रू0 13.66 लाख तथा माइक्रो कामधेनु योजना (25 दुधारु पशुओं) हेतु अधिकतम रू0 7.29 लाख की सीमा तक ब्याज प्रतिपूर्ति की व्यवस्था है।दुधारू पशुओ में संकर जर्सी, संकर एच.एफ. अथवा साहिवाल प्रजाति की गायों की इकाई तथा भैसो मे ंकेवल मुर्रा प्रजाति की भैसों की इकाई स्थापित की जा सकेगी। पशुपालक अपनी इच्छानुसार इकाई में गाय अथवा भैस अथवा दोनो रख सकते है किन्तु इकाई में समस्त पषु एक ही प्रजाति के रखने होते हैं। गोवंशीय पशुओं के उन्नतशील प्रजाति के विकास के दृष्टिगत सिर्फ गाय की डेयरी स्थापित करने वाली इकाईयों को प्रोत्साहन स्वरूप अलग से कामधेनु, मिनी कामधेनु एवं माइक्रोकामधेनु इकाइयों हेतु क्रमशः रू0 5.00 लाख, 2.50 लाख एवं रू0 1.25 लाख अनुदान देने की भी व्यवस्था है। अब तक प्रदेष में कामधेनु इकाइयों से 841700 लीटर अतिरिक्त दुग्ध उत्पादन प्रतिदिन हो रहा है। प्रदेष में प्रथम बार इस प्रकार की पषुपालक एवं पषुधन विकासोन्मुखी योजना के संचालन के दृष्टिगत वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेष को देष में ‘‘ बेस्ट एनीमल हसवेंड्री’’ स्टेट एवार्ड प्रदान किया गया है।

बैठक में कामधेनु पशुपालकों द्वारा डेयरी इकाइयों के संचालन में आने वाली समस्याओं के बारे में अवगत कराया गया साथ ही मांग की गयी कि कामधेनु की तीनों योजनाओं में आपस में परिवर्तन के विकल्प पर विचार किया जाय एवं गोबर व गोमूत्र से निर्मित जैविक खाद एवं अन्य उत्पाद हेतु उचित प्रोत्साहन की व्यवस्था भी की जाय। पशुपालकों द्वारा दूध का उचित समर्थन मूल्य निर्धारण करने, सब्सिडी दर पर पशु आहार एवं दाना उपलब्ध कराने, निःषुल्क प्रषिक्षण, गाय के बछड़ों के संवर्धन की कार्ययोजना बनाने, पशु बीमा अवधि को तीन वर्ष के स्थान पर एक वर्ष करने, प्रत्येक जिले में आदर्ष गौषाला स्थापित करने के लिए कामधेनु पशुपालकों का चयन, गुजरात राज्य की भॉंति मिल्क पार्लर स्थापित करने, निःषुल्क दवा उपलब्ध कराने तथा कामधेनु पशुपालकों को कृषक का दर्जा देते हुए सम्पूर्ण बैंक ऋण माफ किए जाने की मांग रखी गयी। पशुपालकों द्वारा कामधेनु डेयरी इकाइयों के दूध के उचित मूल्य न मिलने के कारण एवं अन्य समस्याओं के कारण डेयरी इकाइयों के घाटे में जाने के बारे में भी अवगत कराया गया।

कार्यक्रम में राज्य मन्त्री पशुधन श्री जय प्रकाष निषाद, प्रमुख सचिव पशुधन, दुग्ध विकास एवं मत्स्य डा0 सुधीर एम0 बोबडे, निदेषक पशुपालन (प्रषासन एवं विकास) डा0 चरण सिंह यादव, निदेषक पशुपालन (रोग नियन्त्रण एवं प्रक्षेत्र) डा0 अमरेन्द्र नाथ सिंह एवं अन्य विभागीय वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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