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अंधेरे और ख़ामोशी में लिपटी दुनिया की सबसे ख़तरनाक जगह

देश-विदेश

पिछले साल पश्चिम के देशों से चार हज़ार पर्यटक ‘डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया’ यानी उत्तर कोरिया गए थे.

अमरीका और उत्तर कोरिया में जारी तनाव के बीच पर्यटकों की संख्या में नाटकीय रूप से भारी कमी आई है. आख़िर बाक़ी की दुनिया के देशों से उत्तर कोरिया कितना अलग है?

वहां गए पर्यटकों का अनुभव कैसा रहा? बीबीसी रेडियो 4 ने अपने अर्काइव और पर्यटकों के इंटरव्यू के ज़रिए उत्तर कोरिया के जनजीवन की तस्वीर दिखाने की कोशिश की है.

बीबीसी रेडियो 4 के इस कार्यक्रम को हम यहां आपको हिन्दी में पढ़ने के लिए मुहैया करा रहे हैं. यहां हम बताने की कोशिश कर रहे हैं उत्तर कोरिया का रहस्य क्या है और कितना है?

फ्लाइट से उत्तर कोरिया पहुंचने पर

एक कोरियाई-अमरीकी पत्रकार ने 2016 में अपनी उत्तर कोरिया की यात्रा को याद करते हुए कई चीज़ों को साझा किया है. उन्होंने उत्तर कोरिया की एकमात्र एयरलाइंस एयर कोरयो से यात्रा की यादें भी बताई हैं. प्लेन की छोटी स्क्रीन पर लगातार मोरानबोंग बैंड की लड़कियां परफॉर्म कर रही हैं.

इस बैंड में केवल लड़कियां ही होती हैं और इनका चयन वहां के शासक के ज़रिए ही होता है. सारे गीत वैचारिक रूप से काफ़ी बोझिल थे. इसमें उत्तर कोरियाई शासक की प्रशंसा थी. मतलब साफ़ है कि उत्तर कोरिया की ज़मीन पर क़दम रखने से पहले ही आपको वहां शासक के प्रचार तंत्र का सामना करना होगा.

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प्लेन लैंड करने के बाद पैसेंजर्स के सामान की जांच की जाती है. बाइबल, दूसरे धर्मग्रंथ और मैगज़ीन लेकर नहीं आ सकते हैं. उस पत्रकार ने बीबीसी रेडियो 4 से बताया कि वो एयरपोर्ट की चमक देखकर हैरान रह गईं. उन्होंने कहा, ”सफ़ाई इस कदर की चारों तरफ़ मन मोहने वाली चमक थी. सारी चीज़ें इतनी व्यवस्थित कि कोई भी दांतों तले उंगली दबा ले.”

ज़मीन से उत्तर कोरिया आने पर

2004 में बीबीसी रेडियो 4 ने बीजिंग से रेल के ज़रिए उत्तर कोरिया गए एक ग्रुप को फॉलो किया था. पहली नज़र में तो सब कुछ बिल्कुल अलग लगा. होटल में जाने के लिए जो पेपरवर्क करना होता है वो काफ़ी मुश्किल होता है. पर्यटकों का कहना है कि वहां के होटल में रहते हुए ज़ू में किसी जानवर की तरह अहसास होता है.

पर्यटकों ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, ”हमलोग ट्रेन से उत्तर कोरिया के सीमाई शहर में उतरे. हम सभी वहीं होटल में रुके थे. मुझे याद है कि गेट की तरफ़ टहलते हुए और होटल के अहाते से देखने में ऐसा लगा कि लोग अतीत में चल रहे हैं.

लोगों से मिलने या बात करने की कोशिश की तो पूरी तरह से अवाक रह गया. उनकी आंखें भी नहीं मिलती हैं और ऐसा नाटक करते हैं कि वो यहां हैं ही नहीं.”

एक और ने अपना अनुभव बताया, ”यहां पूरी तरह से ख़ामोशी पसरी रहती है, क्योंकि यहां ट्रैफ़िक बिल्कुल नहीं है. लोग यहां हर जगह चलते हुए मिलते हैं. यहां चलने की अद्भुत आवाज़ आती है. ऐसा इसलिए भी है कि यहां के लोग चमड़े से बने जूते नहीं पहनते हैं. लोग कपड़े के जूते पहनते हैं.

राजधानी प्योंगयांग का प्रीमियर होटल

तायेदोंग नदी के यांग्गक द्वीप पर स्थित यांग्गाक्डो एक अंतरराष्ट्रीय होटल है. इसे राजधानी का सबसे बेहतरीन होटल कहा जाता है. यह एक विश्वस्तरीय होटल है.

उत्तर कोरिया की यात्रा में ज़्यादातर विदेशी इसी होटल में रहना चाहते हैं. यह 170 मीटर ऊंचा है. इस होटल की भव्यता देखते ही बनती है. इसके 47वें तले पर एक रिवॉल्विंग रेस्ट्रॉन्ट है.

लेकिन इस होटल की भव्यता और वहां के नागरिकों के रोज़मर्रा की ज़िंदगी के बीच काफ़ी फासला है. यह होटल पश्चिम के देशों में उत्तर कोरिया की सकारात्मक छवि पेश करने की एक शासकीय कोशिश है. एक विजिटर ने बिजली की कमी को याद करते हुए बताया कि केवल एक ही लिफ्ट काम करती है.

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ज़्यादातर लाइट बल्ब ऑफ़ रहते हैं और हर तरफ़ अंधेरा था. उन्होंने बताया, ”मेरे कमरे की लाइट काफ़ी कमज़ोर थी और हमलोग हेड टॉर्च से काम चला रहे थे. होटल की ऊंचाई से देखने पर पूरे शहर में अंधेरे का साम्राज्य फैला हुआ दिख रहा था. शायद ही कोई स्ट्रीट लाइट थी. ट्रैफिक के नामोनिशान नहीं थे. पूरी तरह से ख़ामोशी थी.

पाबंदियां

उत्तर कोरिया में आए विदेशियों को भी कड़े दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है. कोई भी बिना गाइड के होटल से अकेले नहीं निकल सकता है. ऐसे में शाम में टीवी देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है.

एक ने कहा, ”यहां उत्तर कोरिया का एकमात्र टेलीविजन स्टेशन है और इससे तीन तरह के कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं. पहला का देश के ग्रामीण क्षेत्रों की ख़ूबसूरती. इसमें पहाड़ों के दृश्य, झील और फूल होते हैं. दूसरा प्रोग्राम वहां के महान नेताओं के बारे में होता है. ज़ाहिर है इसमें वहां के शासक होते हैं. तीसरे कार्यक्रम में उन नेताओं के काम बताए जाते हैं.”

स्मारक से शुरू होती है उत्तर कोरिया की यात्रा

उत्तर कोरिया में आने के बाद किम इल-सुंग और किम जोंग-इल की विशाल मूर्तियों से कोई भी अनजान नहीं रह सकता है. राजधानी प्योंगयांग में यह उत्तर कोरिया के लोगों के लिए तीर्थस्थल की तरह है. यहां आने वाले विदेशियों को भी सबसे पहले ये मूर्तियां दिखाई जाती हैं. अगर कोई स्मारक पर जाने से इनकार करता है तो यह संगीन अपराध माना जाता है.

पर्यटकों को यहां ख़ामोशी से रहने के लिए कहा जाता है. लोग यहां फूल अर्पित कर श्रद्धांजलि देते हैं. टोनी प्लेट्स एक लेखक और ब्रॉडकास्टर्स हैं. उत्तर कोरिया जाने के बाद उन्होंने लिखा था, ”निश्चित तौर पर किम इल-सुंग उत्तर कोरिया के सेंटर में हैं. उनकी मूर्ति 60 मीटर ऊंची है. सुबह की रोशनी में इस मूर्ति से ग़ज़ब की चमक आती है.”

टावर ऑफ द जुचे आइडिया

प्योंगयांग में एक और महत्वपूर्ण स्मारक है. यह स्मारक वहां के हर गाइड के एजेंडे में होता है. यह है जुचे टावर. जुचे का मतलब वहां के गाइड ‘आत्मविश्वास’ बताते हैं. जुचे उत्तर कोरिया का दर्शन है जिसके जनक किम इल-सुंग माने जाते हैं. इसके शीर्ष पर एक विशाल मशाल है. देखने में यह नेल्सन स्तंभ की तरह लगता है. मशाल की रौशनी पूरी रात रहती है. यह मशाल उत्तर कोरिया की आज़ादी और स्वतंत्रता का प्रतीक है.

अंडरग्राउंड में जाते हुए

प्योंगयांग की मेट्रो शानदार है. एक पर्यटक ने उसके बारे में बताया, ”इसकी चमक देखते बनती है. इसका आकार रॉयल अल्बर्ट हॉल के जितना है. यहां चित्रकारी इतनी बेहतरीन है कि कोई भी देखते रह जाए. स्टेशनों के नाम में भी वीरता के स्वर को लाने की कोशिश की गई है. जैसे- ग्लोरी स्टेशन, विक्टरी स्टेशन, वॉर विक्टरी स्टेशन, यूनिफिकेशन आदि.”

दक्षिण कोरिया के साथ सरहद

बीबीसी की सारा जैने का कहना है कि बिना दक्षिण कोरिया से लगी सीमा पर गए उत्तर कोरिया की यात्रा पूरी नहीं होती है. यह वही जगह है जहां वामपंथ की मुलाक़ात पूंजीवाद से होती है. सरहद पर दीवार है. सीमा पार दक्षिण कोरिया के सैनिक डार्क सनग्लास लगाए दिखते हैं.

यहां दोनों देशों के बीच तनाव को कोई भी महसूस कर सकता है. ब्रॉडकास्टर एंडी कर्शाव ने अपना अनुभव बताते हुए कहा, ”यह दुनिया की सबसे ख़तरनाक जगह है. चप्पे-चप्पे पर सैनिक हैं. हालांकि इसके बावजूद यहां शोर नहीं है. ग़ज़ब की शांति है.”

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