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नई कृषि नीति में कृषकों की समृद्धि हेतु मृदा प्रबन्धन को उच्च प्राथमिकता

उत्तर प्रदेश
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने खेती को उपजाऊ बनाने तथा किसानों की खुशहाली एवं समृद्धि हेतु ठोस कदम उठाए है। नई कृषि नीति के तहत मृदा क्षरण कृषि के टिकाऊ उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने में मुख्य बाधा है। इस हेतु मृदा स्वास्थ्य सुधार अभियान को संचालित किए जाने को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है।

सुदूर संवेदी तकनीकों की सहायता से उपजाऊ एवं अनुपजाऊ क्षेत्रों को चिन्हांकित कर उपजाऊ जमीन का संरक्षण करते हुए इसके गैर कृषि उपयोग को रोका जाएगा। अपरिहार्य स्थिति में गैर कृषि उपयोग हेतु परिवर्तित कृषि योग्य जमीन की दशा में क्षतिपूर्ति के आधार पर उतनी ही कृषि योग्य बेकार भूमि को सुधार कर कृषि हेतु उपयोगी बनाया जाएगा। भू उपयोग प्रारूप का अनुश्रवण दूर संवेदी तकनीकों की सहायता से किया जाएगा एवं होने वाले परिवर्तनों को प्रत्येक पांच वर्ष अन्तराल पर अपटूडेट किया जाएगा। बेकार एवं क्षरित भूमि जो कि ऊसर, बंजर, बीहड़, परती एवं दियारा रूप में है को उपचारित किया जाएगा और उसका उपयोग कृषि, बागवानी, वनीकरण एवं चारागाह हेतु किया जाएगा।
यह जानकारी कृषि राज्यमंत्री श्री राजीव कुमार सिंह ने दी। उन्होंने कहा कि ऊसर सुधार एवं उसकी प्रबंध तकनीक को टिकाऊ और अधिक सस्ती बनाया जाएगा। लवण सहिष्णु प्रजाति की फसलों के प्रयोग द्वारा ऊपरी जल सतह के क्षेत्रों में ऊसर सुधार की लागत को कम किया जाएगा। भूमि सुधार हेतु जिप्सम, कागज मिलों का अपविष्ट, प्रेसमड (मैली) इत्यादि कृषकों को वहनीय मूल्य पर उपलब्ध कराया जागगा। मृदा स्वास्थ्य के सुधार एवं इसे बनाए रखने हेतु जैविक खेती तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। कृषकों को मृदा परीक्षण की सुविधाए उपलब्ध कराने हेतु निजी उद्यमियों के सहयोग से मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना को राज्य सरकार प्रोत्साहन करेगी। निजी क्षेत्र की मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को पंूजीनिवेश एवं अनुदान इत्यादि की आर्थिक सहायता देकर उनके संचालन को प्रभावी बनाया जाएगा। प्रत्येक तीन वर्ष पर मृदा नमूना देने एवं कुशल फसल पद्धति  तथा फसल पोषण प्रबंधन हेतु कृषकों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
श्री सिंह ने बताया कि मृदा प्रबन्धन हेतु ‘‘मृदा स्वास्थ्य सुधार अभियान‘‘ के रूप में संचालन किया जाएगा। ग्राम्य स्तर उर्वरता मानचित्र को  विकसिक कर इसके आधार पर उर्वरकों की आवश्यकता का मूल्यांकन एवं वितरण तथा गैर कृषि योग्य भूमि के परिवर्तन को रोकने हेतु दूर संवेदी तकनीक की सहायता से उपजाऊ भूमि एवं अनुपजाऊ भूमि का चिन्हांकन, संसाधन संरक्षण तकनीकों को प्रोत्साकित कर कुशलता यथा-उर्वरक एवं सिंचाई को भू-समतलीकरण द्वारा शस्य संरक्षण पद्धतियों मंे सुधार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मृदा के भौतिक एवं तत्व प्रास्थिति में सुधार हेतु फसल अवशेष/जैविक पदार्थ, हरी खाद, फसल चक्र, नैडेप एवं वर्मी कम्पोस्टिंग को बढ़ावा देना है। वातावरण की सुरक्षा एवं मृदा स्वाथ्स्य में सुधार हेतु फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगाना है। रीपर हारवेस्टर जैसे कृषि यंत्र के प्रयोग को प्रोत्साहित करना है। सूक्ष्म तत्व प्राथमिक एवं द्वितीय विश्लेषण हेतु मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना एवं सुदृढ़ीकरण किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विभाग, सहकारी एवं निजी क्षेत्रों के मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं के बीच समन्वय को सुदृढ़ कर धन एवं समय की बचत की जाएगी। भूमि सुधार हेतु जिप्सम, कागज, मिलों का अपविष्ट, प्रेसमड (मैली) इत्यादि कृषकों को वहनीय मूल्य पर उपलब्ध कराया जाएगा। व्यवसायिक केंचुआ उत्पादन एवं वर्मी कम्पोस्ट इकाईयों की स्थापना में यथोचित सहायता/अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा।

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