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Protect preserve and celebrate Indian culture and traditions: Venkaiah Naidu

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New Delhi: The Vice President of India, Shri M. Venkaiah Naidu has advised the youth to protect preserve and celebrate Indian culture and traditions and youth that are both present and future of this country can achieve their life’s goals with hard work and dedication. He was addressing the gathering after releasing a Book titled ‘Bhavdiye’ based on Compilation of Letters written by Shri Kedar Nath Sahani, here today. The Union Minister for Science & Technology, Earth Sciences and Environment, Forest & Climate Change, Dr. Harsh Vardhan and other dignitaries were present on the occasion.

The Vice President said that Shri Kedar Nath Sahani was a writer, freedom fighter, social reformer and an icon who inspired others all over his life. He further said that during his long public life, he ensured freedom to his writers or scholars while he was an editor.

The Vice President said that that compilation of letters of Shri Kedar Nath Sahai is an important source of research for younger generation. The Compilation allows to get the author’s unbiased personal views on the then political, social scene, he added.

The Vice President said that the problem of Kashmir is still a challenge for the country and everyone will have to make a collective effort for a peaceful environment.

The Vice President lauded the efforts of Shri Sahni in empowering the downtrodden and weaker sections of society and said that he had planned a forum for providing affordable capital to entrepreneurs belonging to downtrodden and weaker sections.

Following is the text of Vice President’s address in Hindi:

डॉ. मुकर्जी स्मृति-न्यास द्वारा केदारनाथ साहनी जी के पत्रों का संकलन ‘भवदीय’ प्रकाशित करने के लिए, प्रधान संपादक श्री भगत सिंह कोश्यारी जी, संपादक अवनिजेश अवस्थी और सहसंपादक रूद्रेश नारायण मिश्र एवं प्रकाश चंद्र को शुभकामनायें और बधाई देता हूँ।

मुझे ज्ञात हुआ है कि प्रकाशन की प्रेरणा माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से मिली।

मुझे यह भी ज्ञात हुआ है कि पत्रों का संकलन एक कठिन प्रयास रहा जिसके लिए संपादकीय टीम को सुदूर लेह लद्दाख तक यात्रा कर, पत्रों का संकलन करना पड़ा। इन महान प्रयासों के लिए मैं संपादकीय टीम को भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं केदारनाथ साहनी जी के उन सभी सहयोगी साथियों को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने इस प्रकाशन के लिए केदारनाथ जी के पत्रों को उपलब्ध करवाया और इस संकलन को समृद्ध बनाया।

अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में केदारनाथ जी प्राय: संगठन से जुड़े रहे। उन्होंने अप्रवासी भारतीयों को, उनके पूर्वजों के देश से जोड़ने के लिए ‘ओवरसीज फ्रेंडस आफ बीजेपी’ संस्था के साथ व्यापक कार्य किया। वे इस संस्था के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। इस क्रम में उन्होंने विदेश में रहने वाले प्रवासी भारतीयों से व्यापक पत्राचार किया था। मुझे हर्ष है कि इंग्लैंड, अमेरीका, केन्या आदि सुदूर देशों से भी साहनी जी के सहयोगियों ने पत्रों को साझा किया है।

पत्रों को विषयों के आधार पर 17 अध्यायों में संकलित किया गया है। इसके अतिरिक्त, साहनी जी द्वारा अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में हस्तलिखित पत्रों की प्रतिलिपियाँ भी संकलन में सम्मिलित की गई हैं। संकलन के दौरान, सहायक संपादकों को साहनी जी के ऐसे सहयोगी भी मिले जिन्होंने साहनी जी से संबंधित मार्मिक संस्मरण सुनाए। ये ऐसे संस्मरण हैं जिनका कोई दस्तावेज नहीं है। फिर भी साहनी जी के विराट व्यक्तित्व, उनकी कार्यशैली और ऐसी विषम परिस्थितियाँ जिनमें उन्होंने कार्य किया, उनका परिचय कराने के लिए इन संस्मरणों को पुस्तक में सम्मिलित किया गया है, जिससेयह संकलन और समृद्ध हो गया है।

कम लोगों को ज्ञात होगा कि साहनी जी के पिता तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर थे। पिता की भाँति पुत्र ने भी भारतीय वायुसेना में कमीशन प्राप्त किया परंतु देश में तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक विप्लव को देखते हुए, वे सेना की नौकरी छोड़ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बन गये।

साहनी जी के लंबे सार्वजनिक जीवन का आयाम भी विस्तृत था। उनके सार्वजनिक जीवन का प्रारंभ जम्मू से हुआ। देश के विभाजन और उसके बाद कश्मीर पर कबायलियों के आक्रमण के समय वे जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देशसेवा के कार्यों में तत्पर रहे। मुझे ज्ञात हुआ है कि तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के आग्रह पर संघ के सरसंघचालक गोलवलकर जी के साथ साहनी जी भी कश्मीर के महाराजा हरि सिंह से मिले थे और कश्मीर के भारत विलय के विषय में चर्चा की थी।

यद्यपि साहनी जी का जन्म रावलपिंडी में हुआ था, तथापि अपने सार्वजनिक जीवन के आरंभ से ही वे जम्मू कश्मीर से बड़ी निकटता से जुड़े रहे। इसलिए स्वाभाविक है कि इस संकलन में सर्वाधिक पत्र जम्मू-कश्मीर से संबंधित हैं या फिर संगठनात्मक विषयों पर हैं।

1954 में साहनी जी दिल्ली आ गये थे और दिल्ली में संगठन का कार्य करते रहे। 1959 के चुनावों के बाद, साहनी जी दिल्ली के उपमहापौर बने, जबकि श्रीमती अरूणा आसफ अली महापौर बनीं।

1977 के बाद साहनी जी दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद बने। इसी दौरान दिल्ली को विकट बाढ़ ने ग्रस्त किया। बांध टूटने से पूर्वी दिल्ली के डूबने का खतरा था। ऐसे में मुख्य कार्यकारी पार्षद के तौर पर साहनी जी ने पूर्वी दिल्ली के निचले इलाकों से आबादी को विस्थापित किया। बांध तो टूटा परंतु समय रहते विस्थापन होने के कारण जानमाल की हानि होने से बच गई।

अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में, साहनी जी भारत प्रकाशन के मानद महाप्रबंधक भी रहे। महाप्रबंधक के रूप में साहनी जी ने विद्वान संपादकों की विद्वत् स्वतंत्रता में कभी हस्तक्षेप नहीं किया।

इतिहास के शोधकर्ताओं की तरह मेरा भी मानना है कि इस प्रकार के पत्रों का संकलन इतिहास शोध का महत्वपूर्ण स्रोत है जिसमें लेखक द्वारा तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक परिदृश्य पर उसके बेबाक निजी विचार होते हैं। साथ ही यह भी ज्ञात होता हे कि लेखक के सहयोगियों के उन विषयों पर क्या विचार थे।

मैं चाहूँगा कि इस विषय पर शोध करने वाले इस पत्राचार को विद्वत् समाज के सामने लाएं।

इस संकलन में साहनी जी द्वारा लिखे गये ऐसे अनेक पत्र हैं जिनमें उन्होंने कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल, मुख्यमंत्री, तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री का ध्यान कश्मीर में पनप रही हिंसा, सुरक्षा बलों की भूमिका, विस्थापितों का पलायन तथा उनकी दयनीय स्थिति जैसे विषयों पर बार-बार आकर्षित किया है।

साहनी जी संगठन के कार्य से प्राय: जम्मू कश्मीर का दौरा करते थे। संवेदनशील राज्य में अपने व्यापक दौरों के दौरानजमीनी तथ्यों को संकलित कर उन्होंने समय-समय पर राज्य तथा केंद्र के नेतृत्व को अवगत कराया। साहनी जी ने राज्य में अपने सहयोगियों और मित्रों का एक विस्तृत दल बनाया था जो समय-समय पर साहनी जी को वहाँ की स्थिति से अवगत कराता था तथा उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करता रहता था। उनका यह पत्राचार जम्मू-कश्मीर की स्थिति समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

मित्रों, आज भी कश्मीर की समस्या हमारे लिए एक चुनौती है। वहाँ शांतिपूर्ण वातावरण के लिए हम सभी को सामूहिक प्रयास करने होंगे। साहनी जी जैसे कर्मठ और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की पुण्यस्मृति में यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

साहनी जी ने दलित एवं कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण के लिए सराहनीय प्रयास किये। उन्होंने दलित और कमजोर वर्ग के उद्यमियों को सस्ती पूँजी उपलब्ध कराने के लिए ‘चौपाल’ नामक योजना प्रारंभ की थी, जिससे इन उद्यमियों को लघु और माइक्रो ऋण 1-2% की मामूली दर पर उपलब्ध कराया जाता था। इस योजना से हजारों उद्यमी लाभान्वित हुए।

इस योजना के लिए पूँजी एकत्रित करने के लिए साहनी जी ने अपने शुभचिंतक सहयोगियों को पत्र लिख कर सहयोग देने का अनुरोध किया। ऐसे कुछ पत्र इस संकलन में सम्मिलित भी किये गये हैं जिनसे इस योजना के पीछे उनके महान मानवतावादी विचार का पता चलता है।

आज जब देश में लघु उद्यमिता और Start Up जैसे कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ऐसे में पूँजी उपलब्ध कराने में साहनी जी की ‘चौपाल’ योजना का माडल कारगर सिद्ध हो सकता है।

यह संकलन 80 के दशक के बाद के पत्रों का ही है, जबकि साहनी जी का सार्वजनिक जीवन 1947 के विभाजन के दौर से ही प्रारंभ हो गया था। इस संकलन में 1950 से 70 के दशक तक, जब वे कश्मीर और फिर दिल्ली में कार्यरत रहे, उस महत्वपूर्ण दौर के पत्र सम्मिलित नहीं हैं। अगर संभव हो तो उस कालखंड पर साहनी जी के विचार और दृष्टिकोण का संकलन करने का प्रयास करें।

मैं आदरणीय साहनी जी की पुण्य चिरस्मृति में उनके पत्रों के संकलन ‘भवदीय’ का लोकार्पण करता हूँ। धन्यवाद।

जय हिंद!”

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