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पारंपरिक खेती की अपेक्षा औद्यानिक खेती में अधिक आमदनी, किसानों को मिल रही सब्सिडी-दिनेश प्रताप सिंह

उत्तर प्रदेश

प्रदेश के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा अपनी स्वर्णिम यात्रा के 50 वर्ष पूरा करने के उपलक्ष्य में औद्यानिक फसलों को बढ़ावा देने एवं किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रदेश के मण्डलों में औद्यानिक उन्नयन गोष्ठियों का अयोजन किया जा रहा है। इसी क्रम में आज जनपद मेरठ में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के प्रेक्षागृह में मेरठ एवं सहारनपुर मण्डल की गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया तथा प्रदर्शनी भी लगायी गयी। इस गोष्ठी का शुभारम्भ उद्यान, कृषि विपणन, कृषि विदेश व्यापार एवं कृषि निर्यात राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री दिनेश प्रताप सिंह ने की।
उद्यान मंत्री ने कहा कि किसानों की आय वृद्धि हेतु सरकार द्वारा लगातार सकारात्मक प्रयास किये जा रहे हैं। किसान भाइयों को विभिन्न योजनाओं एवं कृषि प्रणालियों के तहत आशानुरूप इसका लाभ भी प्राप्त हो रहा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में बाजार की मांग को देखते हुए औद्यानिक खेती का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। मेरठ एवं सहारनपुर के किसानों द्वारा शहद उत्पादन के कारण हमारे उत्तर प्रदेश का सम्मान दुनिया में बढ़ा है। इतना ही नहीं प्रदेश के किसानों द्वारा औद्यानिक खेती के माध्यम से फूलों, मसालों आदि का भी उत्पादन बहुत ही बेहतरीन तरीके से किया जा रहा है। उद्यान मंत्री ने कहा कि शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी, फूलों, मसालों आदि की खेती में पारंपरिक खेती की अपेक्षा बेहतर आमदनी होती है। इन सभी की खेती करने पर प्रदेश सरकार किसानों को सहायता और अनुदान प्रदान कर रही है। हम संरक्षित खेती के लिए भी किसानों को सहायता राशि प्रदान कर रहे हैं। अगर किसानों के साथ सरकार है तो किसानों को भी पारंपरिक खेती के साथ ही नकदी या औद्यानिक खेती की ओर ध्यान देना चाहिए।
उद्यान मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के संकल्प को साकार करने के लिए मा0 मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में उद्यान विभाग उत्तरोतर प्रगति कर रहा है। उसी का परिणाम है कि आज उत्तर प्रदेश ‘खुशहाल किसान एवं समृद्ध प्रदेश’ की तरफ अग्रसर है। खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने के लिए प्रदेश सरकार सब्सिडी प्रदान कर रही है। इन इकाइयों की स्थापना करने के साथ ही किसान न सिर्फ उत्पादों में वैल्यू एडिशन कर सकते हैं, बल्कि इससे रोजगार देने वाले भी बन सकते हैं। टमाटर, हल्दी आदि की सेल्फ लाइफ बढ़ाने का काम खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के माध्यम से किया जा सकता है। इससे अलग-अलग तरीके से उत्पादों की वैल्यू बढ़ाने का काम किसान कर सकते हैं। किसान परम्परागत खेती के साथ-साथ औद्यनिक खेती को भी अपनायें। खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों, बागवानी, मसाला, पुष्प आदि फसलों को अपनाने से अपनी आय को और अधिक बढ़ा सकते हैं। किसान की समृद्धि से ही प्रदेश की प्रगति होगी।
इस अवसर पर मेरठ एवं सहारनपुर मण्डल के जनपदों द्वारा लगायी गयी प्रदर्शनी का मंत्री जी ने अवलोकन किया। इसके उपरान्त तकनीकी सत्र में विभिन्न जनपदों से आये हुए किसानों को बागवानी, मसाला, शाकभाजी, फल एवं सब्जी की खेती से संबंधित तकनीकी जानकारी दी गयी। सत्र में किसानों से औद्यानिक खेती में आने वाली समस्याओं पर फीडबैक लिया गया और उस पर चर्चा की गई। किसानों को बाजार आधारित खेती करने के लिए प्रेरित किया गया। इस अवसर पर दोनों मण्डलों से आये मा0 जनप्रतिनिधि एवं  निदेशक उद्यान डॉ0 बी0पी0 राम एवं विभागीय वरिष्ठ अधिकारियों सहित बड़ी संख्या में किसानों द्वारा प्रतिभाग किया गया।
उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व 50 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर राजधानी लखनऊ में 28 अप्रैल को आयोध्या, लखनऊ एवं देवीपाटन तथा जनपद वाराणसी में 14 मई को मिर्जापुर, वाराणसी, आजमगढ़ मण्डलों की औद्यानिक गोष्ठी का आयोजन किया जा चुका है।

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